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आर्काइव
मजदूर बिगुल – मार्च 2018
आर्काइव
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सावधान! श्रम क़ानूनों में बदलाव करके स्थायी रोज़गार को ख़त्म करने की दिशा में क़दम बढ़ा चुकी है सरकार
बैंक घोटाले, भ्रष्ट मोदी सरकार और पूँजीवाद
महाराष्ट्र में किसानों और आदिवासियों का ‘लाँग मार्च’ : आन्दोलन के मुद्दे, नतीजे और सबक़
दिल्ली में बेरोज़गारी के गम्भीर हालात बयान करते आँकड़े
मारुति मानेसर प्लाण्ट के मज़दूरों की सज़ा के एक वर्ष पूरा होने पर पूँजीवादी न्याय-व्यवस्था द्वारा पूँजी की चाकरी की पुरज़ोर नुमाइश
त्रिपुरा विधानसभा चुनाव के नतीजे और संसदीय वाम का संकट
हरियाणा में आँगनवाड़ी महिलाकर्मियों का आन्दोलन : सीटू और अन्य संशोधनवादी ट्रेड यूनियनों की इसमें भागीदारी या फिर इस आन्दोलन से गद्दारी?!
लगातार बढ़ती मज़ूदरों की असुरक्षा
एल.जी. के मज़दूरों का संघर्ष ज़िन्दाबाद!
देश के विभिन्न राज्यों में ज़ोरों-शोरों से चलाया जा रहा है ‘भगतसिंह राष्ट्रीय रोज़गार गारण्टी क़ानून’ अभियान
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मजदूर बिगुल – फरवरी 2018
आर्काइव
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बढ़ते जन असन्तोष से तिलमिलाये भगवाधारी :विकास का मुखौटा धूल में, नफ़रत से सराबोर ख़ूनी चेहरा सबके सामने
बजट और आर्थिक सर्वेक्षण : झूठ का एक और पुलिन्दा
बढ़ती बेरोज़गारी और सत्ताधारियों की बेशर्मी
बेरोज़गारी क्यों पैदा होती है और इसके विरुद्ध संघर्ष की दिशा क्या हो
हथियारों का जनद्रोही कारोबार और राफ़ेल विमान घोटाला
सोवियत संघ में सांस्कृतिक प्रगति – एक जायज़ा
बढ़ते घपले-घोटाले और पूँजीवाद
मुक्तिबोध की कहानी :समझौता
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जनवरी 2018
आर्काइव
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नये साल में मज़दूर वर्ग के सामने खड़ा चुनौतियों का पहाड़
कड़कड़ाती ठण्ड और ‘स्मॉग’ के बीच मज़दूर वर्ग का जीवन
न्यायिक व्यवस्था का संकट और फ़ासिस्ट आतंक राज
भीमा कोरेगाँव की लड़ाई के 200 साल का जश्न – जाति अन्त की परियोजना ऐसे अस्मितावाद से आगे नहीं बल्कि पीछे जायेगी!
यमन संकट और अन्तरराष्ट्रीय मीडिया की साज़िशी चुप्पी
बेहिसाब बढ़ती आर्थिक और सामाजिक असमानता
नये साल का पहला ही दिन चढ़ा जातिगत तनाव की भेंट जाति-धर्म के नाम पर बँटने की बजाय हमें असली मुद्दे उठाने होंगे
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अक्टूबर-दिसम्बर 2017
आर्काइव
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गुजरात चुनाव और उसके बाद – फासीवाद से निजात पाने के आसान रास्तों का भ्रम छोड़ें और भरपूर ताक़त के साथ असली लड़ाई की तैयारी में जुटें
गौरक्षा का गोरखधन्धा – फ़ासीवाद का असली चेहरा
70 साल की आज़ादी का हासिल : भूख और कुपोषण के क्षेत्र में महाशक्ति
उन्मुक्त स्त्री / रामवृक्ष बेनीपुरी
मौजूदा दौर के किसान आन्दोलनों की प्रमुख माँगें बनाम छोटे किसानों, मज़दूरों और सर्वहारा वर्ग के साझा हित
वाम गठबंधन की भारी जीत के बाद : नेपाल किस ओर?
अक्टूबर क्रान्ति के नये संस्करणों की रचना के लिए – सजेंगे फिर नये लश्कर! मचेगा रण महाभीषण!
‘‘अब हम समाजवादी व्यवस्था का निर्माण शुरू करेंगे!’’ : जॉन रीड
”यह सबकुछ जनता की सम्पत्ति है!” : अल्बर्ट रीस विलियम्स
हथौड़े की मार : राहुल सांकृत्यायन (‘सोवियत भूमि’ पुस्तक का अंश)
“मैं आश्चर्य से भर जाता हूँ”: रवीन्द्रनाथ टैगोर
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सितम्बर 2017
आर्काइव
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जनता में बढ़ते असन्तोष से घबराये भगवा सत्ताधारी
जीडीपी की विकास दर में गिरावट और अर्थव्यवस्था की बिगड़ती हालत
मौजूदा दौर के किसान आन्दोलन और स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट लागू करने का सवाल
बुलेट ट्रेन के लिए क़र्ज़ देने वाले जापान के भारत प्रेम की हक़ीक़त क्या है?
राष्ट्रीय परीक्षा एनईईटी की वेदी पर एक मज़दूर की बेटी की बलि!
‘भारत में आय असमानता, 1922-2014 : ब्रिटिश राज से खरबपति राज?’
क्रांतिकारी लोकस्वराज्य अभियान : भगतसिंह का सपना, आज भी अधूरा, मेहनतकश और नौजवान उसे करेंगे पूरा
आइसिन मज़दूरों का बहादुराना संघर्ष और ऑटोमोबाइल सेक्टर के मज़दूरों लिए कुछ ज़रूरी सबक़
दोस्तो, हम सभी को एक साथ मिलकर लड़ना चाहिए
गौरी लंकेश का आख़िरी सम्पादकीय – फ़र्ज़ी ख़बरों के ज़माने में
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अगस्त 2017
आर्काइव
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गोरखपुर में मासूमों की मौत – अब भी चेत जाओ वरना हत्यारों-लुटेरों का यह गिरोह पूरे समाज की ऑक्सीजन बन्द कर देगा!
‘आज़ादी कूच’ : एक सम्भावना-सम्पन्न आन्दोलन के अन्तरविरोध और भविष्य का प्रश्न
दिल्ली आँगनवाड़ी महिलाओं का लम्बा और जुझारू संघर्ष!
राष्ट्र सेविका समिति के ज़रिये स्त्रियों को आज्ञाकारी आधुनिक दासियों में बदलने की आरएसएस की कोशिशें
गटर साफ़ करने के दौरान सफ़ाईकर्मियों की मौतों का जि़म्मेदार कौन?
“संस्कारी देशभक्तों” के कुसंस्कारी शोहदे – सत्ता की शह पर बेख़ौफ़ गुण्डे!
अर्थव्यवस्था में सुधार के हवाई दावों की हक़ीक़त
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जुलाई 2017
आर्काइव
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बेहिसाब बढ़ती महँगाई यानी ग़रीबों के ख़िलाफ सरकार का लुटेरा युद्ध
जीएसटी : कॉरपोरेट पे करम, जनता पे सितम का एक और औज़ार
मुस्लिम आबादी बढ़ने का मिथक
गाय के नाम पर ”गौ-रक्षक” गुण्डों के पिछले दो वर्षों के क़ारनामों पर एक नज़र
उड़ती हुई अफ़वाहें, सोती हुई जनता!
दिल्ली आँगनवाड़ी की महिलाओं की हड़ताल जारी है!
अख़बार केवल सामूहिक प्रचारक और सामूहिक आन्दोलनकर्ता ही नहीं बल्कि सामूहिक संगठनकर्ता का भी काम करता है / लेनिन
साम्प्रदायिकता और संस्कृति / प्रेमचन्द
आधार पर सरकारी ज़बर्दस्ती की वजह क्या है?
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जून 2017
आर्काइव
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भारतीय अर्थव्यवस्था का गहराता संकट और झूठे मुद्दों का बढ़ता शोर
किसान आंदोलन : कारण और भविष्य की दिशा
कय्यूर के चार शहीदों की गाथा जिन्होंने देश की आज़ादी के लिए संघर्ष में अपना जीवन न्योछावर कर दिया
ख़ूबसूरत चमड़ी का बदसूरत धन्धा
घातक तथा व्यापक प्रभाव डालने वाले समाचार
ऐसे बनता है आपका मोबाइल फ़ोन
विश्व स्तर पर सुरक्षा ख़र्च और हथियारों के व्यापार में हैरतअंगेज़ बढ़ोत्तरी
अफ्रीका में ‘आतंकवाद के ख़िलाफ़ युद्ध’ की आड़ में प्राकृतिक ख़ज़ानों को हड़पने की साम्राज्यवादी मुहिम
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मई 2017
आर्काइव
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श्रम क़ानूनों में ”सुधार” के नाम पर सौ साल के संघर्षों से हासिल अधिकार छीनने की तैयारी में है सरकार
एमसीडी चुनावों में ‘क्रान्तिकारी मज़दूर मोर्चा’ की भागीदारी : एक राजनीतिक समीक्षा व समाहार
इलेक्ट्रोनिक व सोशल-मीडिया पर चल रहे कारनामे
आइसिन ऑटोमोटिव के मज़दूर कम्पनी प्रबन्धन के शोषण के ख़िलाफ़ संघर्ष की राह पर
अर्थव्यवस्था चकाचक है तो लाखों इंजीनियर नौकरी से निकाले क्यों जा रहे हैं?
आरएसएस का “गर्भ विज्ञान संस्कार” – जाहिल नस्लवादी मानसिकता का नव-नाज़ी संस्करण
बैंक कानून में संशोधन अध्यादेश : हज़ारों करोड़ कर्ज़ लेकर डकार जाने वालों की भरपाई का बोझ उठाने के लिए जनता तैयार रहे
मज़दूर संघर्षों के साथी नितिन नहीं रहे… साथी नितिन को अन्तिम लाल सलाम
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अप्रैल 2017
आर्काइव
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लुटेरों के झूठे मुद्दे बनाम जनता के वास्तविक मुद्दे – सोचो, तुम्हें किन सवालों पर लड़ना है
राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 और मज़दूर वर्ग पर उसका असर
उत्तर प्रदेश – क़र्ज़-माफ़ी के टोटके से खेती-किसानी का संकट नहीं हल हो सकता
गौरक्षा के नाम पर मानव हत्याएँ, जनसेवा के नाम पर अडानी-अम्बानी की सेवा – यही है फासीवादी संघी सरकार का असली चेहरा
अमेरिका है दुनिया का सबसे बड़ा आतंकवादी!
क्या रेलवे में दो लाख से ज़्यादा नौकरियाँ कम कर दी गयी हैं…
लेनिन – ग़रीबी दूर करने का एक ही रास्ता – समाजवादी व्यवस्था
नया वित्त विधेयक : एक ख़तरनाक क़ानून
बेरोज़गारी ख़त्म करने के दावों के बीच बढ़ती बेरोज़गारी!
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मजदूर बिगुल - मार्च 2018
सावधान! श्रम क़ानूनों में बदलाव करके स्थायी रोज़गार को ख़त्म करने की दिशा में क़दम बढ़ा चुकी है सरकार
बैंक घोटाले, भ्रष्ट मोदी सरकार और पूँजीवाद
महाराष्ट्र में किसानों और आदिवासियों का ‘लाँग मार्च’ : आन्दोलन के मुद्दे, नतीजे और सबक़
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मारुति मानेसर प्लाण्ट के मज़दूरों की सज़ा के एक वर्ष पूरा होने पर पूँजीवादी न्याय-व्यवस्था द्वारा पूँजी की चाकरी की पुरज़ोर नुमाइश
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