आपस की बात
एक आस्तिक की पुकार

दिव्या, हौज़री मज़दूर, लुधियाना

हे भगवान,
तू ये क्या कर रहा है
इतने नास्तिकों को क्यों
पैदा कर रहा है
अब ये तेरी ही क़ब्र
खोदने में लग गये हैं

पार्वती के खसम
ये तेरी तीसरी आँख
और तेरे तांडव से भी
ख़ौफ़ नहीं खाते
कृष्ण के चक्र की बात करो
तो ये कृष्ण विवर के भेद बताते हैं
तेरे बाबाओं-स्वामियों की
ये पोल-पट्टियाँ खोल रहे हैं
तेरी भव्यता, विराटता,
असीमता की तो
ये चिन्दियाँ-चिन्दियाँ करके
उड़ा रहे हैं

पाप और पुण्य की बात करो
तो ये सबके कारनामे गिनाने लगते हैं
जन्म-जन्मान्तर के भेद खोलो
तो इस जन्म में ला पटकते हैं
और ख़ाली कनस्तर दिखाते हैं
न मानो
तो ख़ाली थैला पकड़ा देते हैं
हे ऊपरवाले तूने ये क्या कर दिया
इतने नास्तिकों को क्योंकर पैदा किया

एक नास्तिक एक बार
मुझसे भिड़ गया था
या कहो कि
मैंने ही उसे पकड़ लिया था
तो मैंने उसे नर्क दिखाया
स्वर्ग से ललचाया
इस जीवन को सुधारने का मंत्र दिया
तो नास्तिक बोला –
तेरा भगवान क्रान्ति कर
सकता है क्या
और वो मुझे एक पर्चा थमा गया

हे ईश्वर तूने ये क्या किया –
एक-आध को पैदा कर लेता
चार-छः सौ से ही मन बहला लेता
लेकिन ये क्या बात हुई
तू हर जगह पैदा कर रहा है
दुनिया का कोई कोना नहीं छोड़ रहा
सब जगह नास्तिकों की भीड़ बढ़ती जा रही है
अब तो ये 13 नंबर से भी नहीं डरते
बिल्ली के रास्ता काटने पर भी
नहीं रुकते
मन्दिर-मस्जिद-चर्च-गुरद्वारे के आगे सजदा भी नहीं करते
सच बताऊँ भगवान
इन्हें ऐसे करता देखकर
मेरा तो ख़ून बहुत खौलता है

लेकिन तू ये बता!
नास्तिकों के घर नास्तिकों को
पैदा करे
तब भी बात समझ में आती है
लेकिन तू तो
आस्तिकों के घर भी नास्तिक पैदा कर रहा है
तिलकधारियों, जनेऊधारियों,
ख़तना-फ़तवाधारियों,
क्रॉस और डबल-क्रॉस धारियों
तू सबके घर नास्तिक पैदा कर रहा है
क्यों तू इन आस्तिकों के किये-धरे पर
पानी फेर रहा है
तू चाहता क्या है
क्यों तू ऐसा कर रहा है

वैसे तू इतने नास्तिकों को
पैदा कहाँ से कर रहा है
किसी दूसरे ग्रह से
या किसी दूसरी आकाशगंगा से
इम्पोर्ट कर रहा है क्या
हमारी पृथ्वी की आबादी इतनी तो नहीं थी
इतनी सारी आत्माएँ –
क्या तू क्लोनिंग से पैदा कर रहा है
चलो तू जिससे भी पैदा कर रहा हो
लेकिन तू इतने नास्तिक पैदा क्यों कर रहा है
अच्छा तू ये बता
क्या वास्तव में इनको
इन नास्तिकों को
जीने के लिए तेरी ज़रूरत नहीं
फिर ये जीते कैसे हैं
ये जीते क्यों हैं
तू इन्हें ज़िलाता क्यों है

मेरे कष्टों को दूर कर भगवान
इन नास्तिकों को ख़त्म कर
नहीं तो जिस ‘गति’ से
तू इन्हें पैदा कर रहा है
ये तो धीरे-धीरे तुझे ही ख़त्म कर देंगे
अरे मेरी नहीं
अपनी तो सोच
क्यों तू इतने नास्तिकों को पैदा कर रहा है
आखि़र क्यों, क्यों

मज़दूर बिगुल, फरवरी 2015

 

 

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