बोलते आँकड़े चीखती सच्चाइयाँ
- वर्ल्ड बैंक के अनुसार मौजूदा संकट 2009 में 5 करोड़ 30 लाख और लोगों को 2 अमेरिकी डॉलर की रोजाना आमदनी से भी कम, यानी गरीबी में धकेल देगा। इसकी वजह से लोगों को अपनी आजीविका के साधन बेचने पड़ सकते हैं, अपने बच्चों की पढ़ाई छुड़वानी पड़ सकती है, और वे कुपोषण का शिकार हो सकते हैं।
- वित्तीय संकट का नतीजा 2009 से 2015 के बीच औसतन 2 लाख से लेकर 4 लाख नवजात शिशुओं की अतिरिक्त मौत के रूप में सामने आने का अनुमान है। और अगर संकट जारी रहा तो कुल मिलाकर 14 लाख से लेकर 28 लाख शिशुओं के असमय मरने का अनुमान है। सकल घरेलू उत्पाद में एक इकाई की कमी होने का नतीजा लड़कियों के लिए 1,000 में से 7.4 प्रतिशत औसत मृत्युदर, जबकि लड़कों के लिए 1,000 में से 1.5 प्रतिशत औसत मृत्युदर होती है।
- विश्व खाद्य कार्यक्रम के मुताबिक दुनिया के कुल भूखे लोगों में से आधे भारत में हैं।
- इसी रिपोर्ट के मुताबिक भारत की 35 प्रतिशत आबादी या लगभग 35 करोड़ लोग खाद्य-सुरक्षा के लिहाज से असुरक्षित हैं, और उन्हें न्यूनतम ऊर्जा जरूरतों का 80 प्रतिशत से भी कम मिल पा रहा है।
- इकोनॉमिक पॉलिसी इंस्टीट्यूट के अनुसार अमेरिका में फरवरी 2008 में हर सात में से एक कर्मचारी यानी लगभग 2 करोड़ 30 लाख लोग बेरोजगार हैं। रोजगारशुदा आबादी का प्रतिशत भी दिसम्बर 2006 के 63.4 प्रतिशत के मुकाबले 60.3 प्रतिशत पर आ गया है।
- यू.एस. जनगणना ब्यूरो के मुताबिक 3 करोड़ 59 लाख अमेरिकी फिलहाल गरीबी रेखा के नीचे रह रहे हैं।
वर्ल्ड सोशलिस्ट वेबसाइट के अनुसार
- कम से कम एक चौथाई अमेरिकी कामगार बेरोजगार हैं, जबकि सरकारी आंकड़े सिर्फ 7 प्रतिशत बता रहे हैं।
- जनवरी 2007 से कर्ज पर लिये घरों को ज़ब्त कर लिये जाने से 20 लाख से ज्यादा अमेरिकी अपने घर खो चुके हैं। रोजाना 12,000 घरों को ज़ब्त किया जा रहा है।
- बैंकों द्वारा कर्ज पर ली गयी संपत्तियों पर कब्जा करने की दर 2007 से 2008 में 129 प्रतिशत बढ़ गयी है।
बिगुल, मार्च 2009
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