तेलंगाना की फ़ार्मा-केमिकल फ़ैक्ट्री में भीषण आग
मालिक के मुनाफ़े की भट्ठी में जलकर ख़ाक हो गये 52 मज़दूर
हैदराबाद संवाददाता
तेलंगाना के संगारेड्डी ज़िले में स्थित सिगाची फ़ार्मा-केमिकल फ़ैक्ट्री के मज़दूर गत 30 जून की सुबह जब हर रोज़ की तरह फ़ैक्ट्री की पहली शिफ़्ट में काम करने जा रहे थे तो उन्हें यह अन्दाज़ा भी नहीं था कि वे मौत के मुँह में जा रहे हैं। जिस फ़ैक्ट्री में वे रोज़ हाड़तोड़ मेहनत करके मालिक के मुनाफ़े की ख़ातिर रसायन बनाते थे वही फ़ैक्ट्री उस दिन एक मौत की भट्टी साबित होने वाली थी। फ़ैक्ट्री में काम शुरू होते ही क़रीब 9 बजे अचानक एक भीषण विस्फोट हो जाता है जिसकी आवाज़ कई किलोमीटर दूर तक सुनायी दी। धमाका इतना तेज़ था कि उसकी वजह से कई मज़दूर 100 मीटर की दूरी तक जा गिरे। देखते ही देखते फ़ैक्ट्री की तीन मंज़िला इमारत मलबे के ढेर में तब्दील हो गई। इस मलबे में फ़ैक्ट्री में काम करने वाले दर्जनों मज़दूरों के शरीर कुछ इस तरह से ग़ुम हो गये कि उनकी पहचान करना मुश्किल था। मज़दूरों के जले-कटे और क्षत-विक्षत शरीर के हिस्सों की डीएनए जाँच के बाद ज़िला प्रशासन ने 10 जुलाई तक 44 मज़दूरों की मौत की पुष्टि की। परन्तु अभी भी 8 मज़दूरों का कहीं कोई अता-पता नहीं है। इसके अलावा क़रीब 34 मज़दूर गम्भीर रूप से ज़ख़्मी हैं और उनका इलाज़ विभिन्न अस्पतालों में चल रहा है। इस हादसे ही भयावहता को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि यह तेलंगाना ही नहीं देश की सबसे भीषण औद्योगिक दुर्घटनाओं में से एक है। हर ऐसी दुर्घटना की ही तरह प्रधानमन्त्री से लेकर मुख्यमन्त्री तक ने ट्वीट के ज़रिये घड़ियाली आँसू बहाए और हर बार की ही तरह आर्थिक मुआवज़े की घोषणा करके इतने बड़े पैमाने पर मज़दूरों की मौत के लिए किसी भी प्रकार की जवाबदेही से किनारा कर लिया गया है।
प्रारम्भिक जाँच के अनुसार, विस्फोट एक बड़े स्प्रे ड्रायर में हुआ जिसका उपयोग माइक्रोक्रिस्टलाइन सेल्युलोज़ (एमसीसी) नामक रसायन के उत्पादन के लिए किया जाता है जिससे कई क़िस्म की दवाएँ बनायी जाती हैं। स्प्रे ड्रायर के ज़रिये एक रासायनिक घोल को पाउडर में तब्दील किया जाता है। इस ड्रायर के भीतर बड़े-बड़े पंखे लगे होते हैं, जिनके ज़रिये तापमान को नियन्त्रित किया जाता है। लेकिन कम्पनी में नियमित रखरखाव की कमी के कारण इन पंखों ने काम करना बन्द कर दिया, जिससे तापमान में तेज़ और अनियन्त्रित वृद्धि हुई, जो 700 डिग्री सेल्सियस से भी अधिक पहुँच गया जिसकी वजह से यह भीषण हादसा हुआ। ‘द हिन्दू’ अख़बार में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार हादसे में मारे गये एक मज़दूर के बेटे ने संगारेड्डी पुलिस के पास एफ़आईआर किया है कि उसके पिता और कई अन्य मज़दूरों ने कई बार उपकरण की ख़राब हालत की शिकायत कम्पनी से की थी, लेकिन फिर भी कम्पनी की ओर से कोई क़दम नहीं उठाया गया। इससे स्पष्ट है कि कम्पनी के मालिक और शीर्ष प्रबन्धन सीधे तौर पर मज़दूरों की मौत के लिए ज़िम्मेदार हैं और ये मुनाफ़े की हवस मे की गई निर्मम हत्याएँ हैं। पूँजीवाद जो मुनाफ़े की हवस पैदा करता है उसको पूरा करने के लिए ही मज़दूरों की बलि चढ़ाई गई है।
ग़ौरतलब है कि सिगाची इण्डस्ट्रीज़ देश में एमसीसी के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक है, जिसकी फ़ैक्ट्रियाँ तेलंगाना के अलावा गुजरात में भी स्थित हैं। तेलंगाना की फ़ैक्ट्री दुर्घटना के बाद 90 दिनों के लिए बन्द कर दी गई है और उत्पादन के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए गुजरात की दो फ़ैक्ट्रियों में उत्पादन बढ़ा दिया गया है जिसका नतीजा कम्पनी की गुजरात स्थित दो फ़ैक्ट्रियों में मज़दूरों पर बढ़ते कार्य दबाव के रूप में सामने आएगा। ज्ञात हो कि तेलंगाना के पाटनचेरू औद्योगिक क्षेत्र के पशमिलारम एस्टेट में स्थित इस कम्पनी की फ़ैक्ट्री में आग लगने की यह कोई पहली घटना नहीं थी। सितंबर 2019 में भी इसी फैक्ट्री में एक तकनीकी त्रुटि की आग लगी थी, जिसमें बहुत ज़्यादा आर्थिक नुकसान हुआ था। इसके अलावा एक सुरक्षा निरीक्षण रिपोर्ट के अनुसार 30 जून के विस्फोट से कुछ महीने पहले ड्रायर यूनिट में आग बुझाने की यन्त्र, सुरक्षात्मक उपकरणों, और इमरजेंसी एग्ज़िट की कमी सामने आई थी। बाद में कम्पनी ने एक अनुपालन रिपोर्ट भी जमा की, लेकिन उसके बाद कोई निरीक्षण नहीं किया गया। यह तथ्य प्रमाणित करता है कि इस फ़ैक्ट्री के मालिकान और प्रबन्धन से कोई पूछने वाला कोई नहीं है कि वे कैसे अपने मनमर्जी से मज़दूरों की जान जोख़िम में डालकर मुनाफ़ा कमा रहे हैं।
हैदराबाद की परिधि पर स्थित मौत और मायूसी के कारख़ाने
हैदराबाद शहर अपनी चमक-दमक और ऐतिहासिक इमारतों के लिए जाना जाता है। लेकिन, कम लोग ही इस चकाचौंध के पीछे छिपी मज़दूरों की अँधेरी दुनिया की बेरहम सच्चाई से वाक़िफ़ हैं। इस शहर की परिधि पर पुराने और नये औद्योगिक क्षेत्रों का जाल-सा बिछा हुआ है जिनमें मज़दूरों की ज़िन्दगी से खेलकर मुनाफ़ा कमाने का धन्धा दिन-रात बेरोकटोक चलता रहता है। शहर के केन्द्र से क़रीब 50 किमी दूर उत्तर-पश्चिमी दिशा में तेलंगाना के संगारेड्डी ज़िले में स्थित पाटनचेरू औद्योगिक क्षेत्र में फ़ार्मा और केमिकल कम्पनियों की भरमार है। यह क्षेत्र औद्योगिक दुर्घटनाओं के लिए कुख्यात है। यहाँ आए दिन आग लगने और बॉयलर फटने जैसी दुर्घटनाएँ होती रहती हैं। फिर भी मज़दूरों की सुरक्षा को लेकर शासन-प्रशासन का उदासीन रवैया बदलने का नाम नहीं लेता। इन बेरहम रहनुमाओं के लिए मज़दूरों की ज़िन्दगी का कोई मोल नहीं है। सिगाची फ़ैक्ट्री में विस्फोट के समय फ़ैक्ट्री परिसर में लगभग 150 मज़दूर मौजूद थे, जिनमें ज़्यादातर उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, ओडिशा और पश्चिम बंगाल से आने वाले प्रवासी मज़दूर थे। प्रवासी मज़दूरों के प्रति सरकारी अमला और भी ज़्यादा उदासीन और उपेक्षापूर्ण रहता है। ग़ौरतलब है कि तेलंगाना के औद्योगिक क्षेत्रों में औसतन हर दो दिन में एक अग्निकाण्ड होता है। सिगाची फ़ैक्ट्री में हुए विस्फोट के अगले ही दिन मेडचल स्थित एक फ़ैक्ट्री में एक बॉयलर फट गया, जिसमें एक मज़दूर की मौत हो गई।
आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2021–2022 के दौरान तेलंगाना के औद्योगिक क्षेत्रों में 600 से अधिक दुर्घटनाएँ दर्ज की गईं, जिनमें से अधिकांश हैदराबाद के निकट स्थित जीडीमेटला, आईडीए बोलारम, पशमिलारम और पाटनचेरू जैसे औद्योगिक इलाक़ों में हुईं। दुर्घटनाओं के लिहाज़ से, तेलंगाना ने वर्ष 2021 से 2023 के बीच फै़क्ट्रियों, गोदामों आदि में आग लगने से जुड़ी घटनाओं में 1100 से ज्यादा मौतें हुई थीं। ग़ौरतलब है कि ये आँकड़े सिर्फ़ पंजीकृत फ़ैक्ट्रियों के हैं। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि अनौपचारिक क्षेत्र में हुई उन दुर्घटनाओं में कितनी मौतें होती होंगी जिनका कोई रिकॉर्ड नहीं होता। इसी वर्ष जनवरी–फ़रवरी में ही प्रदेश में 55 औद्योगिक दुर्घटनाएँ दर्ज की गईं। पिछले दो वर्षों में हैदराबाद की परिधि में स्थित छह प्रमुख औद्योगिक क्षेत्रों में 125 दुर्घटनाएँ हुई हैं, जिनमें 133 लोगों की जान गई और 350 से अधिक लोग गम्भीर रूप से घायल हुए हैं।
तेलंगाना में रेवन्त रेड्डी नीत कांग्रेस सरकार देशी-विदेशी पूँजीपतियों को रिझाने के लिए ‘ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस’ (धन्धा करने की सहूलियत) के नाम पर उन्हें भाँति-भाँति के प्रलोभन दे रही है। रेवन्त रेड्डी पूँजीपतियों को यह यह आश्वासन देते आए हैं कि उनके राज्य में भाजपा शासित राज्यों के मुक़ाबले लूट-खसोट के ज़्यादा मौक़े मुहैया कराएगी। परन्तु राज्य में बढ़ती औद्योगिक दुर्घटनाएँ सरकार की मज़दूर-विरोधी नीतियों की कलई खोलकर रख देती हैं। मालिकों को लूट व शोषण की खुली छूट देने के लिए सुरक्षा मानकों को कमज़ोर किया जा रहा है और सरकारी निगरानी को बिल्कुल ही ढीला किया जा रहा है, ताकि पूँजीपतियों को अधिक मुनाफ़ा कमाने का अवसर दिखाकर रिझाया जा सके। इसका सीधा नतीजा यह हुआ है कि कार्यस्थल की परिस्थितियाँ बेहद ख़तरनाक हो गई हैं, जिसका प्रमाण हमें औद्योगिक दुर्घटनाओं में आई बढ़ोतरी में मिलता है। सरकारी आँकड़ों के मुताबिक तेलंगाना में 4130 उच्च-जोखिम वाली फ़ैक्ट्रियाँ हैं, परन्तु सुरक्षा मानकों को सुनिश्चित करने के लिए प्रदेश में मात्र 20 इंस्पेक्टर और ज्वाइंट इंस्पेक्टर हैं। नतीजतन फ़ैक्ट्रियों का निरीक्षण बमुश्किल साल-दो साल में एक बार हो पाता है। ग़ौरतलब है कि ग़ैर-क़ानूनी रूप से चलने वाली फ़ैक्ट्रियाँ इन आँकड़ों में नहीं शामिल हैं।
हैदराबाद और इसके आसपास के क्षेत्रों में कई फ़ार्मास्युटिकल और केमिकल फ़ैक्ट्रियाँ पिछले तीन से चार दशकों से संचालित हो रही हैं, जो अब भी पुरानी और जर्जर मशीनों पर निर्भर हैं, और उनमें से अधिकांश अपनी निर्धारित कार्य-आयु पार कर चुकी है। ये मशीनें आधुनिक सुरक्षा सुविधाओं जैसे इण्टरलॉक्स, सेंसर्स और इमरजेंसी शटडाउन सिस्टम से लैस नहीं हैं, जिससे वे मेकैनिकल फ़ेल्योर और प्रेशर वृद्धि के प्रति बेहद संवेदनशील हो जाती हैं, जो विस्फोट का कारण बन जाते हैं। अधिक मुनाफे़ की लालसा में कई कम्पनियाँ अप्रशिक्षित कर्मचारियों से जटिल और जोख़िम भरे काम करवाती हैं, जिससे दुर्घटनाओं की सम्भावना और भी बढ़ जाती है। इसके अलावा, महत्वपूर्ण सुरक्षा उपकरण जैसे तापमान और दबाव अलार्म, जो सम्भावित ख़तरों के प्रति ऑपरेटरों को चेतावनी दे सकते हैं, अक्सर प्रमुख निगरानी स्थलों — जैसे कि शिफ़्ट-इनचार्ज की डेस्क — पर लगाए ही नहीं जाते। यह जानबूझकर की गई उपेक्षा उत्पादन की लागत कम करने की एक रणनीति है, जो मज़दूरों की सुरक्षा को गम्भीर रूप से ख़तरे में डालती है।
जैसाकि हर औद्योगिक दुर्घटना के बाद होता है, सिगाची फ़ैक्ट्री में विस्फोट की ख़बर मीडिया में फैलते ही सरकारी अमला हरकत में आ गया। मीडिया में बाइट देने के लिए नेता-मन्त्रियों ने घटना स्थल पर दौरा करना शुरू कर दिया। राज्य सरकार ने फौरन जाँच आयोग गठित करके मामले को रफ़ा-दफ़ा करने का पूरा इन्तज़ाम कर लिया है। मृत मज़दूरों के परिजनों के ग़ुस्से को ठण्डा करने के लिए उनको आर्थिक मुआवज़ा देने का आश्वासन भी दे दिया गया है, हालाँकि मज़दूरों के परिजनों को अभी भी सही जानकारी पाने के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा है। मीडिया के कैमरे भी अब इलाक़े से जा चुके हैं। इस बीच पाटनचेरू की फ़ैक्ट्रियों के मालिकों के मुनाफ़े की मशीनरी बदस्तूर जारी है और सिगाची फ़ैक्ट्री में मारे गये मज़दूरों की चीखें मशीनों की आवाज़ के सामने दब चुकी हैं।
जो हालात तेलंगाना के हैं कमोबेश वही हालात देश के अन्य हिस्सों के भी हैं। सरकारी आँकड़ों के मुताबिक, पिछले 10 वर्षों में भारत में 269 से अधिक केमिकल फ़ैक्टरियों, कोयला खदानों और निर्माण स्थलों पर बड़े औद्योगिक हादसे हुए हैं। इन सभी हादसों की जड़ में मुनाफ़े पर टिकी पूँजीवादी व्यवस्था ही है। ये बढ़ती औद्योगिक दुर्घटनाएँ पूँजीवाद के मानवद्रोही चरित्र को सरेआम उजागर कर देती हैं। आज मज़दूरों के सामने सवाल यह है कि वे आख़िर कब तक पूँजीपतियों के मुनाफ़े की भट्टी में झोंके जाने को बर्दाश्त करते रहेंगे? इससे पहले कि पूँजीवाद हमारी ज़िन्दगी और हमारे सपनो को जलाकर ख़ाक कर दे हमें पूँजीवाद को ख़ाक में मिलाने के लिए कमर कसनी होगी।
मज़दूर बिगुल, जुलाई 2025