भारतीय रेल किराये में “मामूली” बढ़ोत्तरी : जनता से पैसे वसूलने का ग़ैर-मामूली तरीक़ा
वृषाली
1 जुलाई से भारतीय रेल के किराये में “मामूली” बढ़ोत्तरी लागू हुई है। मोदी जी ने देश की जनता पर घनघोर कृपा की बरसात की है! पूरे “गोदी मीडिया” में इसी बात की चर्चा है कि यह अब तक की सबसे कम बढ़ोत्तरी है! भारतीय रेल ने ग़ैर-एसी मेल/एक्सप्रेस ट्रेनों के लिए यात्री किराये में 1 पैसे प्रति किलोमीटर, एसी क्लास के लिए 2 पैसे प्रति किलोमीटर व जनरल के सेकण्ड क्लास में 0.5 पैसे प्रति किलोमीटर की बढ़ोतरी की है। इस बढ़ोत्तरी से रेलवे को प्रति वर्ष तक़रीबन 990 करोड़ की अतिरिक्त आमदनी होगी। रेलवे ने हवाला दिया है कि इस बढ़ोत्तरी से सेवाओं और रेलवे के ढाँचे को बेहतर किया जाएगा जिससे “फ़ायदा” यात्रियों का होगा।
अव्वलन तो यह बात कि बेशक़ यह बढ़ोत्तरी बेहद “मामूली” नज़र आ सकती है, लेकिन इस “मामूली” रक़म से सरकार के पास करोड़ों का राजस्व इकट्ठा होगा। वहीं रेलवे में सफ़र करने वाली आम जनता को किराये में बढ़ोत्तरी से “लाभ” मिलने के उदाहरण तो आज तक नज़र आये नहीं हैं। इससे पहले भाजपा सरकार ने “आपदा में अवसर” ढूँढते हुए 2020 में कोविड के दौरान किराये में 4 पैसे प्रति किलोमीटर की बढ़ोत्तरी की थी, बुज़ुर्ग यात्रियों को मिलने वाली छूट ख़त्म कर दी गयी थी। यही नहीं, “बहुत हुई महँगाई की मार, अबकी बार मोदी सरकार” का शिगूफ़ा उछाल कर 2014 में सत्ता पर क़ाबिज़ हुई भाजपा ने सरकार में आते ही रेलवे किराये में बेतहाशा बढ़ोत्तरी की थी — यात्री किराये में 14.2 प्रतिशत और माल भाड़े में 6.5 प्रतिशत। ये तो वे बढ़ोत्तरियाँ हैं जो सीधे तौर पर नज़र आती हैं। इसके अलावा मोदी सरकार ने किया यह भी है कि पैसेंजर ट्रेनों के नाम बदलकर उन्हें सुपरफ़ास्ट ट्रेन घोषित कर दिया – यानी ट्रेन वही पर वसूली नयी! यही नहीं, मोदी सरकार ने वसूली का एक नया सिस्टम “डाइनैमिक फ़ेयर” के नाम पर भी निकाला। यह वसूली सिस्टम राजधानी, दुरन्तो और शताब्दी जैसी ट्रेनों में लागू किया की गयी। यानी इन ट्रेनों में टिकट का किराया सीटों की उपलब्धता के अनुसार बढ़ता जाता है। हर 10 फ़ीसदी सीट बुक होने के साथ किराये में 10 फ़ीसदी की बढ़ोत्तरी होती जाती है और अधिकतम 1.5 गुना हो जाती है।
मोदी जी वन्दे भारत ट्रेनों और अमृत भारत रेलवे स्टेशनों का उद्घाटन कर रहे हैं और जनता को (अ)मृत रेल यात्राओं की सुविधा दे रहे हैं! ‘द हिन्दू ’ की अक्टूबर 2024 की एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले 5 सालों में 200 बड़े रेल हादसे हुए जिनमें 351 लोगों की मौत हो गयी और 970 ज़ख्मी हुए। आधिकारिक आँकड़ों के कहना है कि ट्रेन संचालन के दौरान होने वाली दुर्घटनाओं में 2001 से 2023 में कमी हुई है – 0.44 दुर्घटना प्रति ट्रेन किलोमीटर से 0.1 दुर्घटना प्रति ट्रेन किलोमीटर। एक वेबसाइट के अनुसार इस दावे के पीछे की सच्चाई यह है – देश में हर दिन तक़रीबन 23,000 ट्रेनें चलती हैं, 14,000 रेलगाड़ी व 9,000 मालगाड़ी। यदि यह मान लिया जाये कि ये सभी ट्रेनें हर दिन 500 किलोमीटर का सफ़र तय करती हैं तब हर दिन, औसतन, 0.115 करोड़ ट्रेन किलोमीटर का संचालन। इस अनुसार हर 10 दिन पर, कहीं न कहीं, किसी न किसी स्तर पर, कोई न कोई हादसा होता है।
मोदी जी ने 2017 में ही कहा था कि “जो हवाई चप्पल पहनकर घूमता है, वह हवाई जहाज में भी दिखना चाहिए, यह मेरा सपना है।” लेकिन मोदी राज में आम जनता की हालत रेल में सफ़र करने लायक भी नहीं बची है। ‘आर्टिकल 14’ की 2024 की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2013-14 के मुक़ाबले 2022-23 में रेलवे में सफ़र करने वाले यात्रियों की संख्या में 32 फ़ीसदी की कमी आयी है; 2021-22 में रेलवे का सफ़र सभी यात्रियों के लिए कुलमिलाकर 108 फ़ीसदी महँगा हो गया था, 2022-23 तक सेकण्ड क्लास श्रेणियों की सीटों में 13 फ़ीसदी की कमी कर दी गयी थी। सेकण्ड क्लास में सफ़र करने वाले यात्रियों (आम मेहनतकश-मज़दूर) की संख्या में 2013 से हर साल औसतन 5 प्रतिशत की कमी आयी है। 2013 में जहाँ 380 करोड़ लोगों ने रेलवे के सेकण्ड क्लास में सफ़र किया, यही संख्या 2023 में घट कर 230 करोड़ हो गयी। 2014 से 2023 के बीच द्वितीय श्रेणी की सीटों में 14 फ़ीसदी की बढ़ोत्तरी हुई। इसी दौरान एसी सीटों में 141 फ़ीसदी की बढ़ोत्तरी की गयी। 2005 में 23 प्रतिशत एसी कोच थे और 77 प्रतिशत स्लीपर व जनरल कोच जबकि 2023 में स्लीपर व जनरल कोच 46 प्रतिशत ही रह गये और एसी कोच की संख्या बहुत बढ़ गई है। 2012 से 2022 के बीच स्लीपर का किराया मेल और एक्स्प्रेस ट्रेनों में क्रमशः 343 प्रतिशत और 413 प्रतिशत बढ़ा है। रेलवे की कमाई का बोझ स्लीपर, सेकण्ड क्लास और अनारक्षित में सफ़र करने वालों पर ज़्यादा है और एसी में सफ़र करने वालों पर कम। रेल में रोज़ाना सफ़र करने वाले 2 करोड़ 40 लाख लोगों में सबसे ज़्यादा संख्या जनरल और स्लीपर में चलने वालों की होती है लेकिन उनकी सुविधा पर सबसे कम ध्यान दिया जाता है। 2023 में अप्रैल से अक्टूबर के बीच कुल 390.2 करोड़ रेल यात्रियों में से 95.3 फीसदी ने जनरल और स्लीपर क्लास में यात्रा की थी।
मोदी सरकार के कार्यकाल में रेलवे की हालत बद से बदतर हो गयी है। रेलवे के किराये में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही और दूसरी तरफ़ आम जनता भेड़ बकरियों की तरह रेलवे में सफ़र करने को मजबूर की जा रही। रेल देश में परिवहन का सबसे बड़ा साधन है, इसे लगातार बर्बाद करके, किराये में बढ़ोत्तरी करके इसे ग़रीब विरोधी बनाया जा रहा है। सार्वजनिक परिवहन तन्त्र को पूरी तरह बर्बाद करके निजी हाथों में सौंपने की तैयारी जारी है। इसका एक हालिया दूसरा उदाहरण मुम्बई की बेस्ट बस सर्विस भी है। आम जनता की जेबों से किराया बढ़ोत्तरी, टैक्स, जीएसटी वसूलने में कोई कमी-कोताही नहीं है, लेकिन बुनियादी सुविधाओं के नाम पर उनकी न्यूनतम ज़रूरतें भी पूरी नहीं।
क़ायदे से जनता के ऊपर एक पैसा प्रति किलोमीटर भी कर वृद्धि नहीं की जानी चाहिए। क्योंकि यह आम जनता अपनी मेहनत के बूते पहले ही इस देश को चला रही है, सबकुछ बना रही है, सबकुछ पैदा कर रही है। सरकार को सार्वजनिक कामों के लिए अपने राजस्व के लिए अमीर वर्गों और पूँजीपतियों पर अतिरिक्त कर लगाने चाहिए। लेकिन 1990 में शुरू हुए नवउदारवाद के दौर में और ख़ास तौर पर 2014 से मोदी सरकार के दौर में उल्टी गंगा बह रही है। अमीरज़ादों को करों से छूटें दी जा रही हैं, उनके लिए हर चीज़ को सस्ता किया जा रहा है, जबकि जनता के लिए ज़रूरी चीज़ों को, सेवाओं को महँगा किया जा रहा है और उन पर जीएसटी व पेट्रोलियम उत्पादों पर लगने वाले करों और शुल्कों के ज़रिये टैक्सों का बोझ़ बढ़ाया जा रहा है। मोदी सरकार के नारे ‘सबका साथ’ का अर्थ है, देश की उन्नति में मज़दूरों-मेहनतकशों की मेहनत को निचोड़ना और ‘सबका विकास’ का अर्थ है देश के धन्नासेठों और पूँजीपतियों का विकास।
मज़दूर बिगुल, जुलाई 2025