दिल्ली स्थित इज़रायली दूतावास के बाहर प्रदर्शन
क्या फ़िलिस्तीनी जनता के मुक्ति संघर्ष का समर्थन करना और वहाँ जारी जनसंहार के ख़िलाफ़ बोलना हमारे देश में अपराध है?
बिगुल संवाददाता
फ़िलिस्तीन में जारी बर्बर इज़रायली नरसंहार के ख़िलाफ़ दुनियाभर में लोग सड़कों पर उतरकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। हमारे देश के भी कई राज्यों में इंसाफ़पसन्द छात्र-नौजवान व नागरिक फ़िलिस्तीन की मुक्ति के लिए अपनी आवाज़ उठा रहे हैं। भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी (RWPI), फ़िलिस्तीन के साथ एकजुट भारतीय जन (IPSP), दिशा छात्र संगठन, नौजवान भारत सभा व कई अन्य संगठनों द्वारा फ़िलिस्तीन की मुक्ति के समर्थन में देशभर में अभियान चलाया जा रहा है और बीडीएस अभियान के अन्तर्गत उन कम्पनियों व आउटलेट्स के बाहर विरोध प्रदर्शन भी किये जा रहे हैं जो इज़रायल के साथ मुनाफ़े के सौदे के लिए किसी भी तरह का सम्बन्ध बनाये हुए हैं। इसी सिलसिले में 23 जून की शाम को IPSP द्वारा दिल्ली में स्थित इज़रायली दूतावास के सामने विरोध प्रदर्शन आयोजित किया गया था। इस शान्तिपूर्ण प्रदर्शन के ज़रिए छात्र-नौजवान मोदी सरकार से यह माँग कर रहे थे कि वह ज़ायनवादी इज़रायल के साथ अपने सभी राजनायिक,अकादमिक, वाणिज्यिक आदि सम्बन्ध को ख़त्म करे। इस विरोध प्रदर्शन के दौरान लोगों ने हत्यारे नेतन्याहू के साथ इज़रायली झण्डे तथा इस जनसंहार में मददगार अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की तस्वीरें जलाकर अपने ग़ुस्से को व्यक्त किया।
इज़रायली दूतावास के बाहर प्रदर्शन शुरू होते ही दिल्ली पुलिस द्वारा प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए बुरी तरह बल प्रयोग किया गया। पुलिस ने शान्तिपूर्ण प्रदर्शन का बर्बरता से दमन किया। पुरुष पुलिसकर्मियों ने महिला प्रदर्शनकारियों के साथ मारपीट व बदतमीज़ी की, उनके बाल खींचे गये और यहाँ तक कि कुछ लोगों के कपड़े फाड़ दिये गये। प्रदर्शन में शामिल एक छात्र, जो दृष्टिबाधित हैं, उन्हें भी दिल्ली पुलिस ने ज़मीन पर गिराकर उनके साथ मारपीट की। इस हाथापाई में दिल्ली पुलिस ने मीडियाकर्मियों को भी नहीं बख़्शा, उनके साथ ज़ोर-ज़बरदस्ती के अलावा उनके कैमरा-फ़ोन-मेमोरी कार्ड तक छीन लिये गये। इसके बाद प्रदर्शनकारियों को जबरन हिरासत में लिया गया और अलग-अलग गाड़ियों में भरकर कुछ लोगों को तुग़लक़ रोड थाने और कुछ लोगों को मन्दिर मार्ग थाने ले जाया गया। पुलिस की ज़ोर-ज़बरदस्ती की वजह से कई लोगों की तबियत बिगड़ गयी, एक छात्रा को तो अस्पताल में भर्ती कराने की नौबत आ गयी। हिरासत में लिये गये प्रदर्शनकारियों को रात के 1 बजे तक ग़ैरक़ानूनी रूप से थाने में रखा गया। इसी दौरान IPSP से जुड़े प्रियम्वदा और विशाल को पूछताछ के नाम पर प्रताड़ित किया गया। आईबी, सीआईडी और स्पेशल ब्रांच के अधिकारियों ने डिटेंशन के दौरान ग़ैरक़ानूनी तरीक़े से देर रात तक पूछताछ जारी रखी और यह भी बताते रहे कि फ़िलिस्तीन का मसला एक ख़ास धर्म का मसला है इसलिए हमें फ़िलिस्तीन को लेकर चुप रहना चाहिए। पूछताछ के दौरान उन्हें यह भी हिदायत दी गयी कि इज़रायल के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन करके और इज़रायली झण्डा जलाकर हमने ठीक नहीं किया है और अगर हमने अपना आन्दोलन जारी रखा तो हमें गम्भीर क़ानूनी परिणाम भुगतने होंगे।
थाने के अन्दर भी पुलिस द्वारा अलग-अलग तरीक़े से नौजवानों को डराया-धमकाया जा रहा था मगर उनपर धमकियों का कोई असर न होता देख पुलिस ने प्रदर्शनकारियों के ख़िलाफ़ झूठे आरोपों के तहत एफ़आईआर दर्ज कर दी जिसमें बीएनएस की धारा 121(1), 132, 221 और 223(a) के तहत शिकायत दर्ज की गयी है।
विरोध की हर आवाज़ को रोकने के लिए दिल्ली पुलिस आये दिन लोगों के ऊपर फ़र्ज़ी एफ़आईआर करके उन्हें डराने-चुप कराने का काम करती है। इज़रायली नरसंहार के ख़िलाफ़ बोलने पर पुलिस द्वारा की गयी बर्बरता ऐसी थी जैसे कि वह इज़रायल जैसे हत्यारे सेटलर कोलोनियल प्रोजेक्ट की तरफ़दारी के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। उनकी मुस्तैदी और दमन से ऐसा प्रतीत हो रहा था कि वे ज़ायनवादी इज़रायल की सुरक्षा में तैनात हैं।
पुलिस के इस दमनकारी रवैये के विरोध में आवाज़ उठाते हुए और यह सवाल पूछते हुए कि – क्या एक ग़ुलाम मुल्क की आज़ादी की बात करना आज हमारे देश में अपराध हो गया है? – IPSP द्वारा प्रेस क्लब ऑफ़ इण्डिया, दिल्ली में 27 जून को प्रेस वार्ता आयोजित की गयी। इस प्रेस वार्ता में IPSP की ओर से विशाल और प्रियम्वदा ने बात रखी। प्रेस वार्ता को जाने-माने बुद्धिजीवियों और जनवादी तथा मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने भी सम्बोधित किया। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता और ‘ह्यूमन राइट्स लॉ नेटवर्क’ के सदस्य कोलिन गोंज़ाल्वेस, दिल्ली विश्वविद्यालय की सेवानिवृत्त प्रोफ़ेसर नन्दिता नारायण, जेएनयू में एसोसिएट प्रोफ़ेसर सौम्यब्रत चौधरी और सीपीआई (एमएल) न्यू डेमोक्रेसी के मृगांक ने भी बात रखी। वक्ताओं ने फ़िलिस्तीन के समर्थन में जारी जन आन्दोलन के साथ अपनी एकजुटता व्यक्त की और लोकतांत्रिक संस्थाओं पर फ़ासीवादी मोदी सरकार द्वारा जारी हमले और देश में हर असहमति की आवाज़ को चुप कराने के रवैये की निन्दा करते हुए इसके ख़िलाफ़ साथ आने की अपील की।
वक्ताओं ने कहा कि आज फ़िलिस्तीन के साथ खड़ा होना इन्सानियत की कसौटी है और दिल्ली पुलिस द्वारा शान्तिपूर्ण प्रदर्शन पर की गयी यह दमनकारी कार्रवाई कुछ और नहीं बल्कि फ़ासीवादियों और ज़ायनवादियों के घिनौने गठजोड़ को दिखाती है।
प्रियम्वदा ने कहा, “फ़ासीवादी मोदी सरकार और उसकी कठपुतली दिल्ली पुलिस के दमनकारी हथकण्डों से IPSP के कार्यकर्ता डरने वाले नहीं है। हम न केवल अपने ऊपर लगाये गये झूठे आरोपों के ख़िलाफ़ अदालत का रुख करेंगे बल्कि IPSP के कार्यकर्ताओं और महिला प्रदर्शनकारियों पर किये गये क्रूर हमले, उत्पीड़न और उन पर की गयी लैंगिक टिप्पणियों, दलित प्रदर्शनकारियों को दी गयी जातिवादी गालियों के ख़िलाफ़ हम दिल्ली पुलिस पर एफ़आईआर भी दर्ज करायेंगे।
विशाल ने कहा कि , “सत्ता में बैठी भाजपा सरकार अपने आईटी सेल और गोदी मीडिया के दम पर जानबूझकर फ़िलिस्तीनी मुक्ति संघर्ष को साम्प्रदायिक रंग दे रही है, ताकि वह देश में मुसलमानों को और अधिक व बड़े दुश्मन के रूप में पेश कर सके।” फ़िलिस्तीन के मुक्ति संघर्ष के धर्मनिरपेक्ष चरित्र पर ज़ोर देते हुए विशाल ने कहा कि “इज़रायल-फ़िलिस्तीन का मुद्दा यहूदियों और मुसलमानों के बीच धार्मिक संघर्ष का मुद्दा नहीं है। यह एक उत्पीड़ित राष्ट्र का अपनी मुक्ति के लिए संघर्ष है, उस उपनिवेशवादी राज्य के ख़िलाफ़ जिसने फ़िलिस्तीनी लोगों को 77 साल से अधिक समय से बेड़ियों में जकड़े रखा है। भारत भी कभी ग़ुलाम देश था और भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु जैसे हमारे शहीद क्रान्तिकारियों ने हमें सभी प्रकार के राष्ट्रीय उत्पीड़न और उपनिवेश के ख़िलाफ़ लड़ना सिखाया है। फ़िलिस्तीन के मुक्ति आन्दोलन का समर्थन करने और इज़रायल द्वारा जारी नरसंहार का विरोध करने का सवाल कोई धार्मिक सवाल नहीं है, बल्कि यह इन्सानियत और विवेक की कसौटी बन गया है। जिस व्यक्ति में थोड़ी भी इन्सानियत और विवेक है, वह ग़ज़ा में फ़िलिस्तीनी बच्चों के बर्बर नरसंहार का समर्थन नहीं कर सकता।”
अक्टूबर 2023 के बाद से अब तक हत्यारे इज़रायल द्वारा ग़ज़ा में 60,000 से ज़्यादा फ़िलिस्तीनियों का नरसंहार किया जा चुका है जिसमें 20,000 से ज़्यादा मासूम बच्चे हैं। अब कुछ रिपोर्टों में यह आशंका व्यक्त की जा रही है कि मरने वालों की तादाद इससे कई गुना ज़्यादा हो सकती है। ग़ज़ा की 80% से अधिक इमारतें मलबे के ढेर में तब्दील हो चुकी हैं, अधिकतर स्कूलों व अस्पतालों को तबाह कर दिया गया है। इज़रायल फ़िलिस्तीनियों को एक तरफ़ बम, मिसाइल और बन्दूक से मार रहा है तो दूसरी तरफ़ राहत सामग्री पर रोक लगाकर, जो लोग इससे बच जा रहे हैं उन्हें भूख से मरने के लिए मजबूर कर रहा है।
आज़ादी के बाद से ही हमारे देश की सरकारें हमेशा से फ़िलिस्तीन के मुक्ति संघर्ष की समर्थक रही हैं। लेकिन आज फ़ासीवादी मोदी सरकार क़ागज़ पर तो फ़िलिस्तीन का समर्थन करती है लेकिन अलग-अलग मौक़े पर ज़ायनवादियों के साथ मोदी सरकार का नाजायज़ सम्बन्ध सबके सामने आ ही जाता है। हमारे देश की गोदी मीडिया, आईटी सेल, और सरकार फ़िलिस्तीन और इज़रायल के मुद्दे को मुसलमान बनाम यहूदी का मुद्दा बता रहे हैं, लेकिन जो लोग फ़िलिस्तीन का इतिहास जानते हैं उन्हें पता है कि 1948 से पहले इज़रायल नामक कोई देश नहीं था। इज़रायल कोई देश या राष्ट्र नहीं बल्कि फ़िलिस्तीन पर जबरन क़ब्ज़ा करने की एक सेटलर औपनिवेशिक परियोजना है। यह पश्चिमी साम्राज्यवाद द्वारा बनायी गयी एक औपनिवेशिक बस्ती है, जिसका इस्तेमाल वह फ़िलिस्तीनियों के दमन, विस्थापन व हत्या के लिए और साथ ही मध्य-पूर्व में पश्चिमी साम्राज्यवाद के हितों की सुरक्षा में इस्तेमाल की जाने वाली सैन्य चौकी के रूप में करता है। न तो फ़िलिस्तीन का मसला कभी धर्म का मसला था और न ही यह आज है। यह एक ग़ुलाम बनाये गये मुल्क की आज़ादी के लिए जारी लड़ाई है। ऐसे में आज दुनिया के हर इन्साफ़पसन्द इन्सान का कर्तव्य है कि वह फ़िलिस्तीन के साथ खड़ा हो।
IPSP देश के अलग-अलग हिस्सों में फ़िलिस्तीन के मुक्ति संघर्ष को लेकर लोगों को जागृत और संगठित कर रहा है और अवाम के बीच इस सच को लेकर जा रहा है कि फ़िलिस्तीन का मसला न तो किसी धर्म का मसला है ना ही वहाँ के लोगों के संघर्ष को किसी आतंकवादी कार्रवाई के साथ जोड़कर देखा जाना चाहिए। फ़िलिस्तीनी जनता की लड़ाई औपनिवेशिक ताक़तों के ख़िलाफ़ अपने मुल्क की आज़ादी की लड़ाई है और आज फ़िलिस्तीन के साथ खड़ा होना इंसान होने की शर्त है।
इसके साथ ही, IPSP द्वारा भारत में बीडीएस (बहिष्कार, निवेश वापसी, प्रतिबन्ध) आन्दोलन चलाया जा रहा है जिसके माध्यम से फ़िलिस्तीनी में जनसंहार में शामिल इज़रायली कम्पनियों तथा इज़रायल को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मदद करने वाली कम्पनियों के पूर्ण बहिष्कार की अपील की जा रही है। मुनाफ़े के लिए आज जिन कम्पनियों ने इज़रायल के साथ रिश्ते बनाये हुए हैं उनके पूर्ण बहिष्कार के साथ-साथ अनेक संस्थानों, बैंकों इत्यादि पर भी यह दबाव बनाया जा रहा है कि वे इज़राइल से अपने हर तरह के निवेश को वापस लें और इज़रायाली उपनिवेशवादियों पर प्रतिबन्ध लगायें।
प्रेस वार्ता में आईपीएसपी के कार्यकर्ताओं ने फ़िलिस्तीन के मसले पर मोदी सरकार के दोमुँहेपन का पर्दाफ़ाश किया और हत्यारे इज़रायल के साथ उसके मधुर सम्बन्ध को भी उजागर किया। उन्होंने कहा कि वे दिल्ली पुलिस के झूठे मुक़दमे, शान्तिपूर्ण प्रदर्शन पर कायराना हमले व बर्बर दमन से डरने वाले नहीं हैं और वह अपने अभियान को अधिक से अधिक लोगों तक लेकर जाने के लिए संकल्पबद्ध हैं । IPSP, फ़िलिस्तीन अवाम के साथ मज़बूती से खड़ा है और उनके मुक्ति संघर्ष का पूर्ण समर्थन करता है।
मज़दूर बिगुल, जून 2025