हिन्दुस्तान यूनीलीवर, हरिद्वार में मज़दूरों का शोषण

राजू कुमार, सिडकुल, हरिद्वार

हरिद्वार सिडकुल में फेस वॉश, बॉडी वॉश, कॉस्मेटिक्स सामग्री बनाने वाली कई कम्पनियाँ हैं। इसमें हिन्दुस्तान यूनिलीवर लिमिटेड भी एक है। इस कम्पनी में कई प्रकार के शैम्पू, साबून और क्रीम का उत्पादन होता है। पिछले एक महीने से मैं भी इस कम्पनी में ठेका मज़दूर के तौर पर काम कर रहा हूँ। कम्पनी में हज़ारों मजदूर काम करते हैं लेकिन इसमें ज्यादातर ठेका मज़दूर ही हैं जिनकी भर्तियाँ ठेकेदार अपने मनमानी शर्तों पर करता है। ठेका मज़दूरों को वेतन के तौर पर पहले ही बता दिया जाता है कि उन्हें 30 दिन के 9400 रुपये मिलेंगे!

साप्ताहिक छुट्टी का भी अधिकार मज़दूरों से भर्ती के समय ही ले लिया जाता है। अगर आपको छुट्टी चाहिए तो एक दिन पहले ठेकेदार को बताना होता है। ठेकेदार आपको छुट्टी के लिए मना भी कर सकता है और अगर आप बिना बताये या ठेकेदार द्वारा छुट्टी न देने के बावजूद छुट्टी कर लिये तो काम से निकाले जाने का खतरा बना रहता है।

इस बेरोज़गारी के माहौल में मज़दूर काम पाने के लिए ठेकेदारों की शर्तों पर भर्ती तो हो जाता है। मगर कम्पनी में एक बार काम पकड़ लेने के बाद उनके साथ ज्यादतियाँ चालू हो जाती हैं। जैसे कम्पनी तो आठ-आठ घण्टे की तीन शिफ्टों में चलती है लेकिन ठेका मज़दूरों को अपनी आठ घण्टे की शिफ्ट खत्म करने के बाद भी जबरन काम करने के लिए मज़बूर किया जाता है। जिससे बहुत सारे मज़़दूर बीमार पड़ जाते हैं। अगर बीमारी के दौरान छुट्टियाँ ज्यादा हो गयीं तो भी काम से हाथ धोना पड़ता है। काम से निकाले जाने और दूसरी जगह जल्दी काम न मिलने के कारण मज़़दूर सोलह-सोलह घण्टे काम करने को मजबूर होते हैं। इस कम्पनी में ठेका मज़दूरों से कभी भी कोई भी काम लिया जा सकता है। उससे लोडिंग-अनलोडिंग से लेकर मशीन पर, पैकिंग में या असेम्बली लाइन पर लगाया जा सकता है। इस कंपनी में आठ प्लाण्ट हैं, जिनमें किसी भी प्लाण्ट में ठेका मज़दूरों को कभी भी भेजा जा सकता है। ज्यादातर ठेका मज़दूरों को तीन-चार दिन बाद एक काम छोड़कर दूसरे काम या प्लाण्ट में भेज दिया जाता है।

कंपनी में ठेका मज़दूरों की चाय के लिए भी उचित व्यवस्था नहीं है। पर्मानेंट मज़दूरों के चाय लेने के बाद अगर चाय बच जाती है तो ही वो ठेका मज़दूरों को दी जाती है। कंपनी में जो पर्मानेंट मजदूर हैं उन्हें ठेका मज़दूरों से थोड़ी ज्यादा सुविधा दे दी जाती है। इस कारण ठेका और पर्मानेंट मज़दूरों में एक दूरी बन जाती है। इन थोड़ी सुविधाओं को देकर कंपनी मालिक ठेका और पर्मानेंट मज़दूरों के बीच भेद को बढ़ाने में सफल हो जाते हैं। ठेका मज़दूरों को लगता है कि पर्मानेंट मज़दूर हमसे बेहतर स्थिति में है और पर्मानेंट मज़दूरों को लगता है कि मालिक कुछ सुविधाएं तो उनको ज्यादा ही दे रहा है! बाकियों की स्थिति तो हमसे बदत्तर ही है! हम मज़दूरों को मालिकों के इस साजिश को समझना आज सबसे जरूरी है। तभी हम सभी मज़दूर संगठित होकर अपने हक़ के लिए संघर्ष कर सकते हैं।

मज़दूर बिगुल, जून 2023


 

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