कॉमरेड अमर नदीम को क्रान्तिकारी श्रद्धांजलि
9 अगस्त की शाम ह्रदय गति रुकने के कारण हिन्दी के कवि, शायर, अनुवादक और हमारे प्रिय कॉमरेड अमर नदीम का देहान्त हो गया। कॉमरेड अमर की वाम प्रतिबद्धता जीवनपर्यन्त अक्षुण्ण रही। कॉमरेड अमर का प्रारम्भिक जीवन उत्तर प्रदेश के हाथरस जि़ले में बीता। उनका जन्म 1 अगस्त 1955 को हाथरस में हुआ। अपनी प्रारम्भिक शिक्षा पूरी करने के बाद वे उच्च शिक्षा के लिए आगरा चले आये। उन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी में एमए किया। हालाँकि किशोरावस्था से ही कॉमरेड अमर का साहित्य के प्रति रुझान था और अपने छात्र जीवन के दौरान ही उन्होंने कविताएँ लिखनी शुरु कर दी थीं। एक जगह उन्होंने लिखा है – “कविता मेरे लिए हमेशा से ही मन की बात कहने का माध्यम रही है, मुझे लगता है कि कविता के माध्यम से कही गयी बात अक्सर सही पते पर पहुँच जाती है…”
कॉमरेड अमर साहित्य की दुनिया से होते हुए राजनीति की ओर आकर्षित हुए। उनका संवेदनशील मन वर्ग समाज की विसंगतियों और उसके अत्याचार-अनाचार के विरुद्ध रास्ता तलाशने के लिए किशोरावस्था से ही उन्हें विवश किया करता था। अन्ततः मार्क्सवाद के क्रान्तिकारी दर्शन और राजनीति में उन्हें वह रास्ता मिल गया, जिस पर वे ताउम्र चलते रहे, कभी पल-भर के लिए भी नहीं डिगे। संयोग कुछ ऐसा बना कि 1984 में कॉमरेड अमर सीपीएम (मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी) में शामिल हुए और पहले युवा मोर्चा और फिर किसान सभा में सक्रिय हुए। लेकिन जल्दी ही कॉमरेड अमर को यह महसूस होने लगा कि सीपीएम का नेतृत्व कथनी में भले ही मार्क्सवाद की दुहाई देता हो, लेकिन आचरण में वस्तुतः सामाजिक जनवादी और संशोधनवादी व्यवहार ही करता है। वर्ष 1987 तक आते-आते उन्होंने सीपीएम से इस्तीफ़ा दे दिया। उन्होंने स्पष्ट महसूस किया कि सीपीएम का नेतृत्व और उनसे जुड़े अधिकांश बुद्धिजीवी गुटबन्दियों, अवसरवाद और समझौतापरस्ती में आकण्ठ डूबे हुए हैं। उन्होंने देखा कि पार्टी में बहस-मुबाहसे से लेकर मार्क्सवाद के अध्ययन और राजनीतिक सरगर्मियों की संस्कृति को हतोत्साहित किया जाता है। कानपुर में चल रही एक पार्टी बैठक का वाक़या याद करते हुए उन्होंने एक बार बताया था कि पार्टी की चुनावी रणनीति के सम्बन्ध में जब उन्होंने कुछ असहज करने वाले प्रश्न उठाये तो उनका तर्कपरक जवाब देने के बजाय मंचासीन नेताओं ने उनके प्रश्नों से किनारा कर लिया। ठीक इसी तरह एक बार जि़ला कमेटी की बैठक में जब उन्होंने स्थानीय नेतृत्व से सम्बन्धित कुछ प्रश्न उठाये तो एक कॉमरेड ने उनका कुर्ता खींचते हुए उन्हें चुपचाप बैठने की सलाह दी। ज़ाहिरा तौर पर कॉमरेड अमर ने ऐसी नामधारी कम्युनिस्ट पार्टी में काम करने से इंकार कर दिया। सीपीएम से अपने जुड़ाव के कुछेक वर्षों के दौरान वे नियमित रुप से किसान सभा की बैठकों, पार्टी मीटिंगों में भाग लेने के साथ-साथ पोस्टर चिपकाने, पर्चा बाँटने, दीवार-लेखन जैसे प्रचारात्मक कार्य भी नियमित तौर पर किया करते थे।
अलीगढ़ काफ़ी पहले से ही हिन्दू फासीवादियों का गढ़ रहा है। फासिस्टों के बारे में उनकी पक्की धारणा थी कि वे बेहद क़ायर होते हैं और तभी हमलावर होते हैं जब झुण्ड में होते हैं। बातो-बातों में एक ऐसी ही घटना का जि़क्र करते हुए उन्होंने बताया था कि अलीगढ़ के जवाहर भवन में एक गोष्ठी के दौरान भाजपा के एक नेता ने कुछ फासिस्ट गुण्डों को साथ लेकर कार्यक्रम को तितर-बितर करने की कोशिश की और आयोजकों पर हमला किया। कॉमरेड अमर और वहाँ मौजूद कुछ अन्य कॉमरेडों ने साहस और सूझबूझ से काम लेते हुए तुरन्त जवाबी हमला किया और सदन में बैठे लोगों को भी ललकारा। इसका नतीजा यह हुआ कि भाजपायी गुण्डों के पैर वहाँ से तुरन्त उखड़ गये और उन्हें मारपीट कर भगा दिया गया।
एक समय ऐसा भी था, जब कॉमरेड अमर संजीदगी से पूर्णकालिक कार्यकर्ता की भूमिका अपनाना चाहते थे, लेकिन सीपीएम के संशोधनवादी चरित्र को देखकर उन्होंने अपना इरादा बदल दिया। 1987 में पार्टी छोड़ने के बाद वे लम्बे समय तक विकल्पहीनता के अन्धेरे में भटकते रहे लेकिन मार्क्सवाद से उनका भरोसा तनिक भी नहीं डिगा। वर्ष 2005 में एक भीषण सड़क दुर्घटना के कारण उनका चलना-फिरना बेहद सीमित हो गया और उन्हें बैंक की नौकरी भी छोड़नी पड़ी। इन बेहद कठिन हालातों में भी उन्होंने हार नहीं मानी और अध्ययन, अनुवाद तथा कविता कर्म को जारी रखा। इस बीच उनकी ग़ज़लों के संकलन ‘आँखों में कल का सपना है’ और ‘मैं ना कहता था’ प्रकाशित हुए। साथ ही साथ उन्होंने अंग्रेज़ी के अपने कवि मित्र सुरेन्द्र भूटानी की कविताओं का हिन्दी अनुवाद भी किया। हाल के कुछ वर्षों में उन्होंने कार्ल मार्क्स की जेल्डा कोट्स लिखित सुप्रसिद्ध जीवनी का अनुवाद भी किया। लैंगस्टन ह्यूज़ की कविताओं का उनके द्वारा किया गया अनुवाद ‘स्थगित स्वप्न’ के नाम से प्रकाशित हुआ और इन दिनों वे राहुल फ़ाउण्डेशन के लिए मार्क्स-एंगेल्स के बारे में उनके समकालीनों के संस्मरणों के एक दुर्लभ संकलन के अनुवाद में अपनी जीवनसाथी अर्चना के साथ व्यस्त थे।
कॉमरेड अमर को व्यक्तिगत तौर पर जानने वाले लोग बता सकते हैं कि कॉमरेड अमर न केवल सहृदय एवं संवेदनशील व्यक्तित्व के धनी थे बल्कि वे साहसी, और ग़लत को ग़लत बोलने का माद्दा रखने वाले व्यक्ति भी थे। मार्क्सवाद के प्रति उनकी अडिग निष्ठा का इससे बड़ा प्रमाण क्या होगा कि सीपीएम के संशोधनवाद को समझने के बाद उपजी हताशा-निराशा और विकल्पहीनता तथा दुर्घटना के बाद पैदा हुई शारीरिक अशक्तता के बावजूद उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और क्रान्तिकारी मार्क्सवाद में उनकी अटूट आस्था बनी रही। उनकी अन्तिम इच्छा के अनुरूप उनके मृत शरीर को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज को सौंप दिया गया।
कॉमरेड अमर का जीवन और उनकी जिजीविषा हमें क्रान्तिकारी परिवर्तन के साझा लक्ष्य की ओर लगातार बढ़ते रहने की हमेशा प्रेरणा देती रहेगी। कॉमरेड अमर हमारे संकल्पों में हमेशा जीवित रहेंगे।
मज़दूर बिगुल,अगस्त 2017
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