कैसा है यह लोकतन्त्र और यह संविधान किनकी सेवा करता है? (समापन किस्त)
भारतीय पूँजीवादी लोकतन्त्र के छलावे का विकल्प भी हमें सर्वहारा जनवाद की ऐसी ही संस्थायें दे सकती हैं जिन्हें हम लोकस्वराज्य पंचायतों का नाम दे सकते हैं। ज़ाहिर है ऐसी पंचायतें अपनी असली प्रभाविता के साथ तभी सक्रिय हो सकती हैं जब समाजवादी जनक्रान्ति के वेगवाही तूफ़ान से मौजूदा पूँजीवादी सत्ता को उखाड़ फेंका जायेगा। परन्तु इसका यह अर्थ हरगिज़ नहीं कि हमें पूँजीवादी जनवाद का विकल्प प्रस्तुत करने के प्रश्न को स्वतः स्फूर्तता पर छोड़ देना चाहिए। हमें इतिहास के अनुभवों के आधार पर आज से ही इस विकल्प की रूपरेखा तैयार करनी होगी और उसको अमल में लाना होगा। इतना तय है कि यह विकल्प मौजूदा पंचायती राज संस्थाओं में नहीं ढूँढा जाना चाहिए क्योंकि ये पंचायतें तृणमूल स्तर पर जनवाद क़ायम करने की बजाय वास्तव में मौजूदा पूँजीवादी व्यवस्था के सामाजिक आधार को विस्तृत करने का ही काम कर रही हैं और इनमें चुने जाने वाले प्रतिनिधि आम जनता का नहीं बल्कि सम्पत्तिशाली तबकों के ही हितों की नुमाइंदगी करते हैं। ऐसे में हमें वैकल्पिक प्रतिनिधि सभा पंचायतें बनाने के बारे में सोचना होगा जो यह सुनिश्चित करेंगी कि उत्पादन, राजकाज और समाज के ढाँचे पर, हर तरफ़ से, हर स्तर पर उत्पादन करने वालों का नियन्त्रण हो – फ़ैसले लेने और लागू करवाने की पूरी ताक़त उनके हाथों में केन्द्रित हो। यही सच्ची, वास्तविक जनवादी व्यवस्था होगी।