सोवियत संघ में सांस्कृतिक प्रगति – एक जायज़ा (पहली किश्त)
एक ऐसा देश जहाँ क्रान्ति से पहले हालत भारत जैसी ही थी, जहाँ 60% से ज़्यादा लोग अनपढ़ थे वह सिर्फ़़ 36 सालों में सांस्कृतिक लिहाज़ से (इस मामले में ख़ास किताबों की संस्कृति) इतना आगे निकल जाता है कि भारत अपने 70 सालों के ‘आज़ादी’ के सफ़र के बाद भी उसके आगे बेहद बौना नज़र आता है? और यह सब वह क्रान्ति-पश्चात चले तीन वर्षों के गृह-युद्ध को सहते हुए, सत्ता से उतारे शोषक वर्गों की ओर से पैदा की जा रही अन्दरूनी गड़बड़ियों के चलते और नाज़ी फ़ासीवादियों के ख़िलाफ़ चले महान युद्ध का नुक़सान उठाते हुए हासिल किया जिस युद्ध में कि सोवियत संघ की आर्थिकता का बड़ा हिस्सा तबाह और बरबाद हो गया था, 2 करोड़ से ज़्यादा नौजवानों को लामिसाली कुर्बानियाँ देनी पड़ीं थीं।