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रूस की अक्टूबर क्रान्ति की 96वीं वर्षगांठ पर
बुझी नहीं है अक्टूबर क्रान्ति की मशाल!
अक्टूबर की तूफ़ानी हवाओं को फिर ललकारो!!
7 नवम्बर वह दिन है जब मज़दूरों ने सम्राटों, रौबदार मंत्रियों, अकड़ू अफ़सरों के ऐय्याशी के अड्डों को नष्ट कर दिया। मज़दूरों ने पार्टी के नेतृत्व में संगठित होकर अपने फौलादी लोहमुष्ठ से पूँजी के जटिल तानेबाने को चकनाचूर कर दिया। इस तारीख़ से जुड़ी कहानी हर मज़दूर की कहानी है जो हमें जाननी ही होगी। रूस देश में 7 नवम्बर 1917, (पुराने कलेण्डर के हिसाब से 25 अक्टूबर) को मज़दूरों ने पूँजीपतियों की सरकार को उखाड़ फेंका और पूरे देश में कायम किया मज़दूर राज! फांसी और लाठी की मुनाफाखोर अर्थव्यवस्था को तहस-नहस कर दिया गया। अक्टूबर क्रान्ति ने दुनिया के मज़दूरों को मुक्ति का रास्ता दिखाया। अक्टूबर क्रान्ति के बाद बने सोवियत रूस में मज़दूरों की पंचायतें ही पुलिस, कोर्ट-कचहरी यानि राजकाज के काम देखती थीं और फैक्टरी, खेतों यानि उत्पादन को संचालित कर रही थीं। यह वह देश है जहाँ न तो कोई बच्चा कुपोषित था, न वैश्यावृत्ति, न अशिक्षा और न ही मज़दूर सड़कों पर सोते थे। यह वह देश था जहाँ सबके रहने के लिए घर था। फैक्टरियों में कोई मालिक नहीं था। यह कोई शेखचिल्ली का सपना नहीं मज़दूरो की वह कहानी है जिसे मज़दूरों ने कामयाब कर दिखाया था। यह कैसे हुआ? यह न कोई टीवी बतायेगा और न ही कोई रेडियो और न ही स्कूल की किताब बतायेगी। यह गाथा हम बतायेंगे क्योंकि इतिहास की इस शिक्षा को जानकर ही हम आने वाले इतिहास को बदल सकते हैं।
मजदूरों के पास पाने के लिए सारी दुनिया और खोने के लिए केवल अपनी बेड़ियाँ होती हैं!
आज से करीब 120 साल पहले रूस में क्रान्ति के बीज क्रान्तिकालीन यूरोप से पड़े। क्रान्ति का तूफान यूरोप से गुजरता हुआ रूस तक पहुँच गया। इस समय रूसी समाज बेहद पिछड़ा था। रूस का राजा जार सबसे बडा ज़मींदार था। रूस में बहुसंख्यक मेहनतकश किसान आबादी भुखमरी, कुपोषण और बीमारियों से ग्रस्त थी। ज़ार और उसकी विराट राजशाही किसानों को जमकर लूटती थी। रूस के मुख्य शहरों में औद्योगीकरण हो रहा था। फैक्टरियाँ भी मज़दूरो के लिए नरक थीं और रूसी पूँजीपति मज़दूरो को मन-मर्जी पर खटाते थे। परन्तु जहाँ दमन-उत्पीड़न होता है वहीं विद्रोह पैदा होता है! मज़दूरों ने अपने सामूहिक हथियार हड़ताल का जमकर प्रयोग करना शुरू किया। क्रान्तिकारी नेता लेनिन के नेतृत्व में क्रान्तिकारियों ने फैक्टरियों की हालत पर पर्चे, हड़ताल के पर्चे और ट्रेड यूनियन संघर्ष चलाया व मज़दूर अध्ययन मण्डल संगठित किये। लेनिन और अन्य क्रान्तिकारियों ने मिलकर मज़दूर अखबार ‘इस्क्रा’ (चिंगारी) निकालना शुरू किया जिसने पूरे मज़दूर आन्दोलन को एक सूत्र में पिरोने का काम किया। इसी अखबार ने मज़दूर वर्ग की इस्पाती बोल्शेविक पार्टी की नींव रखी। बोल्शेविक पार्टी ने मज़दूर अखबार प्राव्दा (सत्य) भी निकाला। संघर्षों में लगातार डटे रहने के कारण मज़दूर और गरीब किसान बोल्शेविकों के साथ जुड़ते चले गए। राजनीतिक हड़तालों, प्रदर्शनों ने जो कि सीधे बोल्शेविक पार्टी के नेतृत्व में चल रहे थे जार सरकार की चूलें हिला दी। औद्योगिक मज़दूरों की यूनियनों, गाँवों और शहरों में खड़े जन-दुर्ग, क्रान्तिकारी पंचायतें (सोवियतें) मिलकर जार की पुलिस और शासन का सामना कर रहे थे। पहला विश्व युद्ध छिड़ने पर बोल्शेविकों ने सैनिको के बीच इस साम्राज्यवादी युद्ध के खिलापफ़ जमकर पर्चे बांटे और रोटी, ज़मीन और शान्ति के नारे के साथ समस्त रूस को एकताबद्ध किया। आखिरकार फरवरी, 1917 में ज़ार का तख्ता पलट दिया गया पर उसकी जगह सत्ता पर पूँजीपतियों के प्रतिनिधि और मज़दूर वर्ग के गद्दार मेन्शेविक पार्टी के नेता बैठ गये। मज़दूर वर्ग की क्रान्तिकारी पंचायतों ने बोल्शेविक पार्टी के नेतृत्व में एकजुट होकर 7 नवम्बर (25 अक्टूबर) 1917 को पूँजीपतियों की सरकार का भी तख्ता पलट दिया। पेत्रेग्राद शहर में युद्धपोत अव्रोरा के तोप की गड़गड़ाहट ने इतिहास की पहली सचेतन सर्वहारा क्रान्ति कि घोषणा की! तोप के निशाने और मज़दुरों की बगावत के सामने राजा के महल में छिपे पूँजीपतियो की सरकार के नेता घुटने टेक चुके थे। मज़दूर वर्ग के नारों की हुँकार पूरी दुनिया में गूंज उठी। पूँजीपतियो के ‘‘स्वर्ग पर धावा’’ बोला गया और उसे जीत लिया गया। मज़दूर वर्ग ने इतिहास की करवट बदल दी। रूस में मज़दूर वर्ग की जीत दुनिया भर के शोषितों की जीत थी और शासको-लुटेरों की हार।
मज़दूरों, गरीब किसानों की सरकार!
पूरे देश में फैक्टरियों, खेतों, सैन्य व अन्य सरकारी दफ्तरों पर क्रान्तिकारी पंचायतों (सोवियतों) द्वारा कब्जा कर लिया गया। बहस बाजी के अड्डों, संसदीय संस्थाओं को ध्वस्त कर सही मायने में जनता का जनवाद कायम हुआ। अब खेतों में पैदा हो रहा अनाज, फैक्टरियों में बन रहे कपड़े, जूते, बर्तन यानि ज़रूरत के सभी सामान के उत्पादन का निर्णय और उत्पादों का बँटवारा पहली बार सबको उनकी मेहनत के हिसाब से होने लगा। मज़दूरों ने सत्ता को संभाला और इस सोच को पूरी तरह गलत साबित किया कि बिना निजी मालिकों के, समाज नहीं चल सकता! काम चला नहीं, बल्कि दौड़ा और अद्भुत और चमत्कारी रफ्तार से दौड़ा!! उत्पादन और विकास के सारे रिकॉर्ड छोटे पड़ गए! व्यापारियों, सट्टेबाजों, नौकरशाहों, भूस्वामियों की व्यवस्था को खारिज कर खान मज़दूरों, फैक्टरी मज़दूरों, खेतिहर किसानों की सरकार ने मानव इतिहास में पहली बार देश से कुपोषण, अशिक्षा, बेरोजगारी, वैश्यावृत्ति को खत्म कर दिया। उत्पादन और विज्ञान व सांस्कृतिक प्रगति में भी 1917 से 20 साल पहले बेहद पिछड़ा रूस (आज के भारत से भी पिछड़ा) दुनिया की महाशक्ति बन गया! यह सब जनता के सामूहिक मालिकाने (यानि मेहनतकशों की राज्यसत्ता के अन्तर्गत राष्ट्रीयकरण) और खेती का सामूहिकीकरण करके (यानि खेतो में काम करने वाले सभी किसानों के सामूहिक फॉर्म खड़े करके) हासिल किया गया। जिस समय पूरी पूँजीवादी दुनिया महामन्दी में डूबी हुई थी उस समय रूसी अर्थव्यवस्था छलांगे मारते हुए आगे बढ़ रही थी! सन् 1940 में दूसरे विश्व युद्ध में जब पूरे विश्व को जर्मन फासीवाद तबाह कर रहा था तब भी सोवियत रूस कि जनता ने अकूत कुर्बानियां देकर पूरे विश्व को फासीवाद के खतरे से मुक्ति दिलायी थी। इस युद्ध में हिटलर की 254 में से 200 सैन्य डिवीजनों से अकेला सोवियत रूस मुकाबला कर रहा था और ब्रिटेन, अमरीका और फ्रांस इस युद्ध के दर्शक बने बैठे थे। इस प्रकार मज़दूर राज ने दिखाया कि जनता की ताकत बड़े से बड़े चमत्कार कर सकती है। अक्टूबर क्रान्ति की तोपों के धमाकों ने दुनिया भर के मज़दूरों को लुटेरों की सत्ता के खिलाफ लड़ने की प्रेरणा दी और कईं देशो में मज़दूरों ने पूँजीपतियों की सत्ता उखाड़ कर अपनी सत्ता भी कायम की। परन्तु मालिक और लुटेरे हर-हमेशा मज़दूर सत्ता के ख़िलाफ़ षड़यंत्र करते हैं और अपना खोया ‘‘स्वर्ग’’ वापस चाहते हैं। इन्ही षड़यंत्रे के चलते सोवियत रूस की मज़दूर सरकार पर वापस पूँजीपतियो ने कब्जा जमा लिया और मेहनतकशों की गर्दन पर फिर से मुनाफे के जुवे को टिका कर अपनी तिजोरियां भरनी शुरू कर दीं।
बुझी नहीं है अक्टूबर क्रान्ति कि मशाल
अक्टूबर क्रान्ति के बीज नयी क्रान्तियो को जन्म देंगे!
आज मज़दूर वर्ग पर पूँजी की ताकत चौतरफा हमला कर रही है, मज़दूरों के संघर्षों को पुलिस की लाठियों और गोलियों से दबा दिया जाता है। मज़दूर वर्ग का प्रतिरोध छिटपुट और बिखरा हुआ है। परन्तु मज़दूरों के गुस्से से फूटने वाला विद्रोह इस पूँजीवादी व्यवस्था को खत्म नहीं कर सकता है! जब तक कि मज़दूर क्रान्ति के विज्ञान को नहीं समझ लेते हैं उनकी जिन्दगी की हालत नहीं बदल सकती है। हमें अक्टूबर क्रान्ति से सीखना होगा! अक्टूबर क्रान्ति से सीख लेने का मतलब क्या है? अक्टूबर क्रान्ति की शिक्षाएँ क्या हैं? अक्टूबर क्रान्ति की सबसे बुनियादी शिक्षा यह है कि हमें आज देश स्तर पर एक क्रान्तिकारी पार्टी खड़ी करनी होगी जो हर शोषण, दमन और उत्पीड़न के खिलाफ मज़दूरों को संगठित करे। दूसरी, सबसे जरूरी शिक्षा यह है कि मज़दूरों की पार्टी बोल्शेविक पार्टी जैसी अनुशासित हो जो क्रान्ति के विज्ञान से डिगे बिना मज़दूर वर्ग को एकजुट करे। इसके लिए जरूरी है कि हमें आज मज़दूर वर्ग की तमाम गद्दार पार्टियों भाकपा, माकपा, भाकपा (माले) के सही चरित्र को पहचानना होगा। साथ ही हमें बोल्शेविक पार्टी द्वारा क्रान्ति पूर्व जनता से जुड़ने के तरीकों को भी समझना होगा। ट्रेड यूनियन के संघर्षो से लेकर जनवादी अधिकार के मुद्दों पर मेहनतकश जनता को संगठित करना होगा। उन कारणों को भी जानना होगा जिनकी वजह से सोवियत रूस के महान प्रयोग के बावजूद वहाँ पूँजीवाद की फिर से स्थापना हो गयी। यही वे शिक्षाएँ हैं जिन्हें ध्यान में रखकर ही मज़दूर वर्ग फिर से पूँजीवाद के जंगल राज में क्रान्तियों के दावानल भड़का कर इसे खत्म कर सकता है। हम मज़दूर वर्ग के शौर्य को फिर ललकारते हैं जो अक्टूबर क्रान्ति के नये संस्करण रचेंगे। हम अक्टूबर क्रान्ति के सच्चे वंशजो को ललकारते हैं कि वे नयी शुरुआत करने के लिए उठ खड़े हों।
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मज़दूरों के महान नेता लेनिन