चिन्मय स्कूल प्रशासन की आपराधिक लापरवाही से प्रिन्स की मौत
फिर भी स्कूल प्रशासन को बचाने में लगी दिल्ली पुलिस
लता
पिछली 3 दिसम्बर को दक्षिण दिल्ली के वसन्त विहार में स्थापित चिन्मय स्कूल में छठी कक्षा में पढ़ने वाले एक मासूम गरीब दलित बच्चे की मौत हो गई। कक्षा में किसी अन्य सह-पाठी के साथ मार-पीट में दूसरे सहपाठी ने प्रिन्स का गला कुछ पल के लिए दबाया। गला दबने के बाद प्रिन्स एक-दो कदम चला और ज़मीन पर गिर गया। उसके ज़मीन पर गिरने पर किसी बच्चे ने शिक्षकों को सूचित किया। शिक्षिकाएँ आयीं, घबराकर इधर-उधर भागती रहीं लेकिन उन्होंने कुछ नहीं किया। कुछ देर में स्कूल में उपस्थित मेडिकल अफ़सर प्रिन्स के पास आया। इस दौरान प्रिन्स ज़मीन पर गिरा हुआ था और स्कूल की शिक्षिकाओं और मेडिकल अफ़सर ने प्रिन्स में पुनः जान डालने के लिए दिये जाने वाले सीपीआर को नहीं दिया। मौजूद मेडिकल अफ़सर ने बस एक-दो बार प्रिन्स की छाती दबायी लेकिन सीपीसीआर के लिए सबसे ज़रूरी मुँह से मुँह में हवा देने का काम उपस्थित मेडिकल अफ़सर या शिक्षिकाओं ने नहीं किया। इसके बाद प्रिन्स के अभिभावकों को सूचित किये बिना प्रिन्स को स्कूल के निकट होली एंजल अस्पताल और फिर फोर्टिस अस्पताल ले गये। डॉक्टरों ने होली एंजेल्स में उसे मृत घोषित कर दिया था। एक शिक्षिका ने अभिभावकों को फोर्टिस से सूचित करवा अस्पताल आने को कहा। माँ के अस्पताल पहुँचने पर शिक्षिकाओं ने पहले माँ नीतू से कहा सब ठीक है और वह परेशान न हो। फिर अचानक एक ने आ कर कहा कि प्रिन्स अब नहीं रहा। माँ-पिता और परिवार वालों की स्थिति का अन्दाज़ा लगा पाना कठिन है। प्रशासन की लापरवाहियों पर हम आगे चर्चा करेंगे लेकिन पुलिस के शर्मनाक रवैये की शुरुआत यहाँ से होती है। पुलिस ने माँ-पिता के हस्ताक्षर के बिना प्रिन्स के शव को पोस्ट-मॉर्टम के लिए भेज दिया। इस दौरान प्रिन्स के रिश्तेदार वसंत विहार थाने कई बार जाते रहे और शाम के बाद वहाँ लगभग धरना दे कर बैठ गये। तब भी पुलिस ने प्रिन्स की मौत की शिकायत दर्ज़ नहीं की। शाम तक आरडब्ल्यूपीआई के कार्यकर्ता और दिशा छात्र संगठन के सदस्य भी कुसुमपुर पहुँच गये थे। आरडब्ल्यूपीआई के कार्यकर्ताओं से वहाँ मौजूद लोगों ने बताया कि पुलिस अधिकारी प्रिन्स का पार्थिव शरीर दूसरे पते पर ले गये हैं और उनपर जल्दी से जल्दी दाह संस्कार करने का दबाव बना रहे हैं, लाख बोलने पर भी उसे कुसुमपुर पहाड़ी नहीं लाने दे रहे हैं। पुलिस अधिकारियों पर आरडब्ल्यूपीआई ने दबाव बनाया तब उन्होंने पार्थिव शरीर को कुसुमपुर लाने और शिकायत दर्ज़ करने की बात मानी। थाने पर हमारी शिकायत तो ले ली गयी लेकिन एक बार फिर पुलिस एफ़आईआर दर्ज़ करने में आना-कानी करने लगी। काफ़ी देर तक बहस करने के बाद पुलिस ने एफ़आईआर किया लेकिन सिर्फ़ भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 105 के तहत मामला दर्ज़ किया। लाख कहने पर भी पुलिस ने स्कूल प्रशासन के ख़िलाफ़ गैर-जिम्मेदारी या जाति उत्पीड़न की धार नहीं लगायी है।
असन्तुष्ट माँ-पिता के साथ कुसुमपुर पहाड़ी की एक बड़ी आबादी, दिशा के सदस्य और आरडब्ल्यूपीआई के कार्यकर्ता स्कूल प्रशासन पर पुलिस कार्ररवाई की माँग करते चिन्मय स्कूल के गेट पर बैठ गये। पूरी रात बैठने के बाद सुबह तक पुलिस की कार्ररवाई की कोई ख़बर नहीं मिली। प्रिन्स के माँ-पिता और परिवारवालों ने प्रिन्स के पार्थिव शरीर के साथ चिन्मय स्कूल गेट पर धरना जारी रखने का निर्णय लिया। पुलिस लगातार धरना समाप्त करने और दाह-संस्कार करने का दबाव बना रही थी। प्रिन्स के माँ-पिता, कुसुमपुर पहाड़ी की जनता, दिशा के सदस्यों और आरडब्ल्यूपीआई के कार्यकर्ताओं के आगे पुलिस की एक नहीं चल रही थी। पुलिस इस दौरान प्रिन्स और उनके परिवार वालों से कभी 5 लाख तो कभी 10 लाख रुपए ले कर मामले को रफ़ा-दफ़ा करने की बात भी कर रही थी। अन्त में जब लोगों के आगे पुलिस की नहीं चली तो उसने लाठी चार्ज कर दिया। धरने का नेतृत्व कर रहे आरडब्ल्यूपीआई के कार्यकर्ताओं और दिशा के सदस्यों को पुलिस बुरी तरह से पीटती हुई हिरासत में ले गई। उसके बाद पुलिस ने कुसुमपुर की जनता पर बर्बर लाठीचार्ज किया। पुलिस ने न बच्चे देखे न बुज़ुर्ग सभी पर लाठियाँ बरसायी। धरने पर मौजूद महिलाओं पर पुरुष पुलिसकर्मियों ने हाथ उठाया। कुसुमपुर की जनता ने पुलिस दमन का जम कर सामना किया।
धरने पर मौजूद लोगों को पुलिस लाठीचार्ज से तितर-बितर करने के बाद प्रिन्स के माँ-पिता और परिवारवालों को ज़बरदस्ती पुलिस वैन में बिठाया और प्रिन्स के पार्थिव शरीर को जमीन पर घसीटते हुए एम्बुलेंस में ले गयी। परिवार के लोगों पर दबाव बना कर जल्द-से-जल्द दाह संस्कार कर दिया गया। पुलिस ने दाह संस्कार में परिवार के लोगों को भी शामिल होने नहीं दिया लेकिन भाजपा का नेता रामवीर बिधूड़ी अपने चेले-चपाटियों के साथ वहाँ मौजूद था। परिवार वालों के अनुसार पुलिस ने उन्हें अपने बेटे की आखिरी विदाई के लिए कुछ भी नहीं करने दिया। बस एक बार चेहरा दिखाया और भारी पुलिस उपस्थिति में दाह संस्कार कर दिया।
प्रिन्स की मौत का ज़िम्मेदार चिन्मय स्कूल प्रशासन है
प्रिन्स के पिता सागर ने प्रिन्स को सुबह 7:45 पर स्कूल छोड़ा। स्कूल में प्रदूषण की वजह से इन दिनों सुबह की प्रार्थना नहीं हो रही है। 7:45 से 8:20 तक प्रिन्स के ज़मीन पर अचेत होकर गिरने तक कक्षा में अध्यापिका नहीं थी। बच्चों की आपसी मार-पीट के दौरान प्रिन्स दम घुटने या किसी वजह से अचेत ज़मीन पर गिर गया था। उसे इस समय तत्काल सीपीआर मिलनी चाहिए थी। लेकिन इसके लिए शिक्षिकाएँ प्रशिक्षित नहीं थीं। सबसे आश्चर्य की बात यह कि सेना से सेवानिवृत्त मेडिकल अफ़सर ने भी उस 12 साल के मासूम बच्चे को सीपीआर नहीं दिया। यह तो कल्पना से परे है कि सेना के अधिकारी को सीपीआर देनी नहीं आती होगी। लेकिन उस अधिकारी ने कुछ नहीं किया और प्रिन्स को बचाने का बहुमूल्य समय बर्बाद होता गया। चिन्मय स्कूल प्रशासन में घोर जातिवाद मौजूद होना कोई आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि चिन्मय स्कूल के संस्थापक चिन्मयानन्द सरस्वती ने गोलवलकर और एस. एस. आपटे के साथ मिल कर 1964 में देश में हिन्दू–मुस्लिम दंगें करवाने वाले और जातिगत नफ़रत पैदा करने वाले विश्व हिन्दू परिषद की स्थापना की थी। जिस स्कूल मिशन के संस्थापक ही घोर हिंदुत्ववादी हो उस स्कूल प्रशासन से आप जाति, वर्ग और धर्म के नाम पर भेद–भाव की उम्मीद ही कर सकते हैं। जातिवाद के अलावा और क्या वजह हो सकती है सीपीसीआर नहीं देने की? यदि मेडिकल अफ़सर को सीपीआर देना ही नहीं आता है तो यह स्कूल की घोर लापरवाही है। यदि शिक्षक-शिक्षिकाएँ और मेडिकल अफ़सर तक कोई भी इस तरह के आपातकालीन संकट से निपटने के लिए प्रशिक्षित नहीं है तो स्कूल प्रशासन स्कूल में पढ़ने वाले सभी बच्चों की जिन्दगी के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं।
मोटी-मोटी फीस लेने वाले ये निजी स्कूल सरकार से शिक्षा के नाम पर सस्ती ज़मीन, बिजली और पानी हासिल करते हैं और मुनाफ़े की हवस में बेहद अप्रशिक्षित और अयोग्य लोगों को बेहद कम तनख्वाहों पर काम पर रखते हैं जो इस तरह के संकट से निपटने में अक्षम होते हैं। स्कूल प्रशासन की इस ग़ैर-ज़िम्मेदारी, लापरवाही और लचर व्यवस्था ने एक मासूम बच्चे की जान ले ली और एक माँ की गोद सूनी कर दी। प्रिन्स की हत्या हुई है और हत्यारा स्कूल प्रशासन है।
इसके अलावा प्रिन्स के अचेत हो कर गिरने से ले कर उसे दो अस्पताल तक ले जाने तक माँ-पिता को स्कूल प्रशासन ने एक बार भी सूचित नहीं कर घोर ग़ैर-ज़िम्मेदारी का परिचय दिया है। यह तय बात है कि स्कूल प्रशासन माँ-पिता को सूचना नहीं देने की हिम्मत इसलिए कर सका क्योंकि उसे पता था की प्रिन्स एक ग़रीब दलित परिवार से आता था। चिन्मय स्कूल प्रशासन आश्वस्त था कि ग़रीबों के साथ कुछ भी कर वह आसानी से अपना पल्ला झाड़ लेगा।
चिन्मय प्रशासन की चाकरी में लगी रही पुलिस
चिन्मय स्कूल प्रशासन को बचाने के लिए पुलिस पूरी मुस्तैदी से खड़ी थी और आज भी खड़ी है। हमने चिन्मय स्कूल और विश्व हिन्दू परिषद के रिश्ते के बारे में बताया है। केंद्र की भाजपा सरकार आरएसएस के विभिन्न संगठनों जैसे विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल, अखिल भारतीय छात्र परिषद आदि के दंगाई और जातिवादी राजनीति पर सवार हो कर 2014 से सत्ता में है। जब चिन्मय स्कूल का सीधा रिश्ता भाजपा सरकार से है तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि पुलिस चिन्मय प्रशासन को बचाने में एड़ी-चोटी का पसीना एक किये हुए है। प्रशासन की लापरवाही और ग़ैर-ज़िम्मेदारी पर पुलिस ने एक बार भी सवाल नहीं किया। वहीं प्रिन्स के लिए न्याय की माँग करने वाले लोगों पर मुकदमे दायर किये गये हैं। प्रिन्स की मौत के एक सप्ताह बाद तक पुलिस के बड़े अधिकारी एसीपी को उन शिक्षिकाओं का नाम तक पता नहीं था जो प्रिन्स के साथ अस्पताल में थी। इस रिपोर्ट के लिखे जाने तक अधूरी पोस्ट-मॉर्टम रिपोर्ट आयी है जिसमें मौत की वजह नहीं दी गयी है। चिन्मय स्कूल गेट पर धरने के दौरान लगातार पुलिस का प्रयास था प्रिन्स के माँ-पिता का मुँह पैसे देकर बन्द करने का। निश्चित ही इस रकम की पेशकश चिन्मय स्कूल प्रशासन ने की होगी जिसकी दलाली पुलिस कर रही थी। वहीं दूसरी ओर पूरी बर्बरता के साथ न्याय की आवाज़ दबाने में पुलिस ने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। 16 दिसम्बर 2024 को पटियाला हाउस न्यायालय में इस मामले की पहली सुनवाई थी। यहाँ भी पुलिस ने जाँच-पड़ताल या स्कूल प्रशासन से तहकीकात की कोई बात प्रस्तुत नहीं की है।
कुसुमपुर पहाड़ी के लोगों की एकता और संघर्ष
प्रिन्स की मौत की खबर मिलने के बाद से ही कुसुमपुर पहाड़ी की जनता इस अन्याय के खिलाफ़ चिन्मय स्कूल के गेट पर 10 बजे सुबह से ही इकट्ठा होने लगी थी। पूरे दिन लोग वहाँ बने रहे और पुलिस कार्रवाई की माँग करते रहे। देर रात तक एफ़आईआर लिखे जाने तक लोगों की संख्या बढ़ती जा रही थी। रात भर लोग स्कूल की गेट पर बने रहे। अगले दिन सुबह तक प्रिन्स के लिए न्याय की माँग करती कुसुमपुर पहाड़ी के लोग भारी संख्या स्कूल गेट पर आ गये थे। पुलिस को बढ़ती संख्या से दहशत हो रही थी। बार-बार वह लोगों को वापस जाने की बात कह रही थी। लेकिन लोग बने रहे और उनकी संख्या बढ़ती रही। पुलिस को डर था कि बड़ी ख़बर बन जाने पर चिन्मय स्कूल प्रशासन को बचा पाना आसान नहीं होगा। प्रिन्स की मौत में स्कूल प्रशासन की लापरवाही, ग़ैर-ज़िम्मेदारी और लचर व्यवस्था की भूमिका एकदम साफ़ है। लेकिन देश में 80 शाखाओं वाले इस स्कूल की छवि बचाना पुलिस की प्राथमिकता थी। वहीं कुसुमपुर की जनता पुलिस के सामने पूरी हिम्मत से खड़ी रही। कुसुमपुर की औरतें पुलिसकर्मियों से लगातार एक ही सवाल कर रही थी कि अगर प्रिन्स की जगह तुम्हारा बेटा होता तो तुम क्या करते? इसका जवाब पुलिस के पास नहीं था। कुसुमपुर के लोगों का जमा गुस्सा जो उनके बच्चे और वे खुद ईडब्ल्यूएस कोटा के तहत बड़े स्कूलों में दाखिले के बाद झेलते हैं वह फूट पड़ा था। साथ ही उनका गुस्सा पुलिस पर भी था जो छोटे-से-छोटे मामले में वहाँ के लोगों पर दसियों धराएँ लगा देती है लेकिन इतने भयंकर गुनाह में उन्हें धराएँ नहीं मिल रही थी। लोगों पर पुलिस ने बर्बर लाठीचार्ज किया लेकिन लोगों ने भी एकसाथ मिल कर पुलिस का जम कर मुक़ाबला किया।
चुनावबाज़ पार्टियों के घड़ियाली आँसू और भीम आर्मी की खोखली सांत्वना
4 दिसम्बर की लाठीचार्ज के बाद प्रिन्स की हत्या एक ख़बर बन गयी। इसके बाद विभिन्न पार्टियों के नेताओं और बड़े मन्त्रियों की प्रिन्स के परिवार वालों से मिलने की लाइन लग गयी। दिल्ली की मुख्यमन्त्री आतिशी मारलेना मिलने आयीं और मामले की जाँच करने के लिए एक कमेटी के गठन की घोषणा भी कर दी। लेकिन वायदे के 15 दिन से ऊपर होने के बाद भी अभी तक किसी कमेटी की कोई ख़बर नहीं है। वैसे आतिशी पहले खुद शिक्षा मन्त्री थीं। लेकिन आम आदमी पार्टी के लिए स्कूलों में ईडब्ल्यूएस कोटा का प्रावधान कर ही मानो शिक्षा की ज़िम्मेदारी पूरी हो गयी है। अगर सरकारी स्कूलों में एक समान शिक्षा का इन्तज़ाम होता तो ईडब्ल्यूएस कोटा की आवश्यकता ही नहीं पड़ती। खैर, अभी तक प्रिन्स के माँ-बाप तमाम नेता-मन्त्रियों के वायदों की असलियत समझ चुके हैं। वहीं भीम आर्मी की असलियत भी सामने आ गयी है। एक–दो दिन कुछ रस्मअदायगी करने और गर्म–गर्म भाषण देने के बाद गधे के सर पर सींग की तरह भीम आर्मी ग़ायब हो गयी है। असल बात है इनमें से किसी को भी इस मामले में नाम और वोट कमाने की ज्यादा गुंजाइश नज़र नहीं आयी इसलिए सब किनारे हो गये हैं चाहे आम आदमी पार्टी हो या भीम आर्मी। जाति के नाम पर राजनीतिक गोटियाँ लाल करने वाली भीम आर्मी टाइप पार्टियाँ भी ग़रीब दलित आबादी को महज़ वोट बैंक की तरह देखती हैं। आज यह बात प्रिन्स के परिवार वाले अच्छे से समझ रहे हैं और देश की ग़रीब दलित आबादी भी ऐसे तमाम अनुभवों से समझ रही है। प्रिन्स के माँ-बाप समझ रहे हैं की दलित समुदाय और एक परिवार का नाम लेकर आयी भीम आर्मी भी अपने फ़ायदे के लिए आई थी। चिन्मय स्कूल प्रशासन को बचाने के पीछे जब भाजपा सरकार ही है तो इनकी सच्चाई को क्या उजागर करना लेकिन स्कूल पर धरने के दौरान 3 दिसम्बर की रात महरौली के विधान सभा चुनावों के लिए भाजपा उम्मीदवार रूबी फोगाट डिज़ाइनर कपड़ों और भारी मेकअप के साथ आयी थी और आरडब्ल्यूपीआई के कार्यकर्ताओं पर लाश के नाम पर राजनीति करने का आरोप लगा रही थी। कुसुमपुर की जनता ने रूबी फोगाट को वहाँ से खदेड़ दिया। इन सभी पार्टियों के लिए मज़दूर-मेहनतकश, ग़रीब, ग़रीब दलित बस एक वोट होते हैं। आरएसएस जैसे संगठन इस आबादी में जाति-धर्म के नाम पर दंगे भड़काने वाली फ़ौज तैयार करते हैं। मज़दूरों मेहनतकशों को इन चुनावबाज़ पार्टियों से इतर अपना स्वतन्त्र पक्ष खड़ा करना चाहिए।
15 दिसम्बर जन्तर-मन्तर पर प्रदर्शन
प्रिन्स को न्याय दिलाने के जिस संघर्ष की शुरुआत कुसुमपुर की जनता ने की थी और उसके अगले कदम के तौर पर 15 दिसम्बर जन्तर-मन्तर जाने का तय किया गया। इसके लिए आरडब्ल्यूपीआई के कार्यकर्ताओं ने पर्चे के साथ गली-गली अभियान चलाया। लोगों ने प्रिन्स को न्याय दिलाने और सबको एक समान और निःशुल्क शिक्षा की माँग का समर्थन भी किया। लेकिन इस दौरान ही अन्दोलन को कमज़ोर करने के लिए कई अफ़वाहें का बाज़ार गर्म होने लगा जैसे प्रिन्स के माँ-पिता ने कई लाख रुपये ले लिये हैं या कि उनको सरकारी नौकरी मिल गयी है। कहीं से यह भी बात निकल पड़ी कि इस प्रतिरोध अन्दोलन में शामिल होने से ईडब्ल्यूएस कोटे से दाखिला प्राप्त बच्चों की पढ़ाई पर असर पड़ेगा, उनका भविष्य ख़राब होगा तो कुछ कहने लगे इस प्रतिरोध के कारण सरकार ईडब्ल्यूएस कोटा ही हटा देगी। ऐसे ही और कई अफ़वाहें और असुरक्षा की बातें कुसुमपुर में उड़ने लगी थीं। आरडब्ल्यूपीआई के कार्यकर्ताओं ने इन अफ़वाहों की सच्चाई बतायी लेकिन लोगों में अविश्वास और डर बैठने लगा था। मज़दूर-मेहनतकश वर्ग को यह समझना होगा कि हमें जो कुछ भी हासिल होना है वह संघर्ष से ही हासिल होता है। लेकिन बिना एकता और सही राजनीतिक समझदारी के संघर्ष नहीं होता है। ऊपर बैठे लोग हमारे बीच असुरक्षा, शक और भय का माहौल गर्म करते हैं ताकि हम एकजुट हो कर संघर्ष न करें। इन अफ़वाहों ने और जनता के बीच किसी भी संघर्ष के प्रति बढ़ती निराशा ने 15 दिसम्बर में लोगों की भागीदारी को प्रभावित किया। लेकिन लोग जन्तर-मन्तर पर विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए। प्रदर्शन के बाद सागर और नीतू की ओर से शिक्षा मन्त्रालय को ज्ञापन सौंपा गया।
प्रिन्स के मामले की वर्तमान स्थिति
प्रिन्स का मामला अब न्यायालय में जा चुका है और 16 दिसम्बर को पटियाला हाउस कोर्ट में इस केस की पहली सुनवाई थी। जज ने प्रिन्स के परिवार से उनके पास मौजूद सारे कागज़ात मँगवाये हैं। लेकिन अभी तक पुलिस की तहकीकात का कुछ पता नहीं है।
निष्कर्ष
प्रिन्स को न्याय दिलाने से शुरू हुए इस आन्दोलन के दौरान कई अभिभावकों और बच्चों ने निजी और सरकारी स्कूलों में पैसे और जाति के नाम पर होने वाले भेद-भाव के बारे में बताया। सागर और नीतू ने भी बताया था कि प्रिन्स की जिस बच्चे से मार-पीट हुई थी वह पहले भी प्रिन्स को जाति सूचक अपशब्द कहा करता था जिसकी शिकायत उन्होंने क्लास टीचर से की थी। शिक्षा का अधिकार मूलभूत अधिकार है और एक समान शिक्षा व निःशुल्क शिक्षा की ज़िम्मेदारी सरकार की ज़िम्मेदारी है। ईडब्ल्यूएस कोटा का फ़र्ज़ीवाडा हमारी आँखों पर पर्दा डालने के लिए है। समान और निःशुल्क शिक्षा के अलावा स्कूलों में वर्ग, जाति, धर्म, राष्ट्र-राष्ट्रीयता, क्षेत्र, भाषा और खान-पान आधारित कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए। चिन्मय स्कूल में प्रिन्स की मौत के पीछे उसका ग़रीब होना और ग़रीब दलित होने मुख्य कारण था। यह भेदभाव आधारित शिक्षा व्यवस्था हमारे बच्चों के विकास और उनकी मानसिकता को बहुत गहरे प्रभावित कर रही है। आन्दोलन के दौरान कार्यकर्ताओं व कुसुमपुर पहाड़ी की जनता ने सरकार से एक समान और नि:शुल्क शिक्षा की माँग की है। इसके अलावा स्कूल के अन्दर बच्चों के साथ होने वाले भेदभाव को ख़त्म करने के लिए शिक्षा के अधिकार (आरटीई) अधिनीयम के तहत विशेष प्रावधान ला कर स्कूल के में भेदभाव के लिए दोषी पाये गये किसी भी व्यक्ति के लिए सज़ा का इन्तज़ाम करने की माँग की है। इस तरह के किसी भी भेदभाव की जाँच-पड़ताल के लिए स्कूल के स्तर पर अभिभावकों की चुनी हुई चौकसी कमेटियों की भी माँग हमने की है। इन सभी के अलावा प्रिन्स की निष्पक्ष और स्वतंत्र जाँच-पड़ताल के लिए दिल्ली सरकार से चिन्मय स्कूल के स्तर पर अभिभावकों की कमेटी के गठन की माँग भी की है जिसमें कुसुमपुर पहाड़ी के अभिभावक समान अनुपात में रहें। आगे आने वाले समय में आरडब्ल्यूपीआई और दिशा छात्र संगठन इस संघर्ष को और व्यापक बनाएँगें।
मज़दूर बिगुल, दिसम्बर 2024 – जनवरी 2025
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