एक मेहनतकश औरत की कहानी…
शिवानन्द, गुड़गाँव
पूजा दिमागी रुप से विचलन, एकदम शान्त रहती है। देखने में ऐसा लगता है, जैसे कोई बेजान हड्डी माँस का पुतला खड़ा हो। इस पूँजी की व्यवस्था में बिना पूँजी के लोगों की ऐसी ही हालत हो जाती है जैसे अभी पूजा की है। एकदम बेजान, चेहरा एकदम सूखा हुआ। 28 साल की उम्र में उसको स्वस्थ और सेहतमन्द होना चाहिए था मगर इस उम्र में जिन्दगी का पहाड़ ढो रही है और दिमागी रुप से असुन्तिल हो गयी है। पूजा का एक 13 साल का लड़का है और 8 साल की लड़की है जो उसके पति की मौत के 13 दिन बाद पैदा हुई थी। तब पूजा के पिता उसको और उसके बच्चों को अपने घर ले आए थे। पूजा एक साल बाद अपनी ससुराल गई, ससुराल वालों ने उसे पहचानने से मना कर दिया। लड़का ही नहीं तो बहु कैसी। ससुर ने कहा जा लड़का पाल जाके 18 साल का हो जाएगा तो हिस्सा ले लेगा। दो साल बाद ससुर भी गुजर गए। अब पूँजी के वारिस सिर्फ जेठ ही बचे। पूजा अपने पिता के घर पर रह कर गांव में मजदूरी कर अपने बच्चों को पाल रही थी। जैसे-तैसे पति के गुजरे आठ साल हो गए। आखिर कब तब अपने बाप के घर पर पड़ी रहेगी। उसके भाइयों की पूँजी भी खत्म हो रही है इसलिए घर से कहीं और जाकर रहने का दबाव है। पिता तो तैयार हैं दूसरी शादी करने के लिए मगर पूजा का कहना है कि इन बच्चों को कौन रखेगा। इसलिए पूजा अपना गांव छोड़कर अपनी मौसी के साथ गुड़गांव शहर में आयी है। बड़ी मिन्नत करके पड़ोस की आंटी के साथ फ़ैक्टरी आने लगी है। एक-दो महीने बाद अपने बच्चों को भी ले आएगी और यही शहर में उनको पढाएगी।
मज़दूर बिगुल, मार्च 2013
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