भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ा दिल्ली के शाहबाद डेरी इलाके का उच्च माध्यमिक विद्यालय
नौरीन
कहा जाता है कि बच्चे किसी भी देश का भविष्य होते हैं। लेकिन शाहबाद डेरी (दिल्ली) के हज़ारों बच्चों का ही भविष्य आज ख़तरे में है। जैसे दूध में से मक्खी को निकालकर दूर फेंक दिया जाता है, वैसे ही डेरी के बच्चों को उनके स्कूल से निकालकर दूर रोहिणी के सेक्टर-27 के सुनसान इलाक़े में फेंक दिया गया है। इस स्कूल में पढ़ने वाले ज़्यादातर बच्चे मज़दूर और निम्न मध्यवर्गीय परिवार से आते हैं। अभिभावकों का कहना है कि उन्होंने अपना गाँव, अपना घर, सब कुछ छोड़कर दिल्ली आने का फ़ैसला इस उम्मीद के साथ कि दिल्ली जैसे शहर में जाकर कुछ काम करेंगे और अपने बच्चों को पढ़ायेंगे, ताकि आगे चलकर वो एक अच्छा जीवन जी सकें। लेकिन आज एक ही झटके में हमारी इन सारी उम्मीदों पर मानो नाउम्मीदी के काले घने बादल मण्डराने लगे हैं। वैसे तो महज़ शिक्षा से मज़दूर वर्ग के बच्चे अच्छे जीवन की उम्मीद नहीं पाल सकते हैं, लेकिन शिक्षा उनके लिए ज़रूरी है क्योंकि आज की दुनिया की सच्चाई को और अपनी मुक्ति के रास्ते को भी वे तभी समझ सकते हैं। इसलिए मज़दूर वर्ग शिक्षा को जन्मसिद्ध बुनियादी अधिकार मानता है। लेकिन उत्तर प्रदेश से लेकर दिल्ली तक भाजपा की फ़ासीवादी मोदी सरकार बच्चों को तरह-तरह से इस अधिकार से वंचित करने में लगी हुई है।
स्कूली शिक्षा किसी भी बच्चे के भविष्य की बुनियाद होती है। लेकिन शाहबाद डेरी के हज़ारों बच्चों से उनका स्कूल छीनकर उनके भविष्य को अँधेरे में धकेला जा रहा है। उनसे पढ़ने का अधिकार छीना जा रहा है। गर्मी की छुट्टी ख़त्म होने से 4 दिन पहले मीटिंग बुलाकर स्कूल प्रशासन ने अभिभावकों और बच्चों को जानकारी दी की उनका स्कूल सेक्टर-27 में शिफ़्ट किया जा रहा है। बच्चे कैसे जायेंगे, कैसे आयेंगे, उनकी सुरक्षा की गारण्टी किसकी होगी, इस पर स्कूल प्रशासन मौन है। आनन-फानन में स्कूल को सेक्टर-27 में तो शिफ़्ट कर दिया गया है, लेकिन स्कूल जाने वाले बच्चे बता रहे हैं कि वहाँ पीने का पानी तक नहीं है। घर से दो-दो बोतल पानी लेकर जाते हैं और छुट्टी होने तक उसी से काम चलाते हैं। इसके अलावा बाथरूम में पानी नहीं आता, पंखे नहीं चल रहे हैं, बिजली नहीं आती है। जो अभिभावक स्कूल देखने गये हैं वे बता रहे हैं कि स्कूल नहर के किनारे है, दुर्घटना होने की सम्भावना हमेशा बनी रहती है। स्कूल का रास्ता इतना ख़राब है कि आये-दिन बच्चों से भरी हुई ई-रिक्शा पलट रही है। स्कूल खुलने के हफ़्ते भर के भीतर तीन बार ई-रिक्शा पलटने की घटना सामने आ चुकी है। स्कूल शिफ़्ट होने की वजह से बहुत सारे बच्चे ऐसे हैं, जिन्हें अपनी पढ़ाई बीच में छोड़नी पड़ रही है। घर की स्थिति ऐसी नहीं है कि वह महीने के 1200 रुपये आने-जाने का किराया देकर पढ़ने जाएँ। अभिभावकों का कहना है कि वह ख़ुद महीने के 8000 रुपये कमा रहे हैं, ऐसे में दो बच्चे स्कूल जाते हैं तो 2400 रुपये उनके आने-जाने के किराये का हो जाता है। ऐसी स्थिति में हम कमरे का किराया कैसे देंगे, महीने भर खायेंगे क्या। उनके सामने अपनी पढ़ाई पूरी करने का कोई रास्ता नज़र नहीं आ रहा है।
एक ओर अमीरज़ादों के लिए महलों समान सर्वसुविधासम्पन्न स्कूल हैं, जिनकी फ़ीसें ही इतनी हैं कि आम मेहनतकश आदमी के साल भर की कमाई हो, वहीं दूसरी ओर दयनीय स्थिति में पड़े हुए सरकारी स्कूलों को भी अब मज़दूरों-मेहनतकशों के बच्चों से छीना जा रहा है।
शाहबाद डेरी में आम लोगों के इस मसले को लेकर रोष मौजूद था और ‘भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी’ ने इस मसले को उठाया।
भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी के नेतृत्व में किया गया स्थानीय विधायक का घेराव
शाहबाद डेरी (दिल्ली) में चलाये जा रहे ‘स्कूल बचाओ, बच्चों के भविष्य को बचाओ’ अभियान के तहत 11 जुलाई को स्थानीय भाजपा विधायक रविन्द्र इन्द्रराज का घेराव किया गया। ज्ञात हो कि डेरी के एकमात्र उच्च माध्यमिक विद्यालय को, रोहिणी के सेक्टर 27 में शिफ़्ट कर दिया गया है। वहाँ पहुँचने के लिए न तो साधन की व्यवस्था है, न ही सुरक्षा की गारण्टी। स्कूल मुख्य सड़क से लगभग 2.5 किलोमीटर अन्दर है। इलाक़ा इतना सुनसान है कि बच्चों और अभिभावकों के बीच डर का माहौल है।
11 जुलाई को डेरी के छात्र व उनके अभिभावक स्कूल की समस्या को लेकर स्थानीय विधायक से मिलकर अपना माँगपत्रक सौंपने गये थे। लेकिन विधायक रविन्द्र इन्द्रराज अपने कार्यालय पर नहीं मिले। रोज़ सुबह “जनता दरबार” का दिखावा करके सोशल मीडिया पर फ़ोटो डालने वाले विधायक से जब डेरी की जनता मिलने पहुँची तब विधायक महोदय ने मिलना तो दूर लोगों से फ़ोन पर बात करने की भी ज़हमत नहीं उठायी। जब लोगों ने विधायक से मिलने की बात की तो वहाँ मौजूद भाजपा के दलाल और गुण्डों ने तरह-तरह के बहाने बनाने शुरू किये। उन्होंने वहाँ मौजूद महिलाओं को धमकाया और वहाँ वीडियो बना रही महिलाओं के फ़ोन छिनने लगे। इसके बाद लोगों ने अपनी एकजुटता से इन गुण्डों को मुँहतोड़ ज़वाब दिया। इसके साथ ही विधायक के कार्यालय में इस चेतावनी के साथ माँगपत्रक सौंपा गया कि अगर तत्काल प्रभाव से इसपर काम नहीं हुआ, तो डेरी की जनता विधायक को अपनी गलियों में नहीं घुसने देगी।
भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी ने नेतृत्व में इलाके के लोगों ने दिल्ली सरकार से माँग की है कि–
- शाहबाद डेरी के बच्चों के लिए डेरी इलाके में ही पढ़ने की व्यवस्था होनी चाहिए। स्थानीय उच्च माध्यमिक विद्यालय का नवनिर्माण/मरम्मत जल्द से जल्द किया जाये, व इसकी समय सीमा सार्वजनिक की जाये। जब तक निर्माण कार्य पूरा नहीं हो जाता तब तक डेरी में या उसके नज़दीक ही बच्चों के लिए पढ़ाई की व्यवस्था की जाये ताकि उनकी शिक्षा बिना रुकावट जारी रह सके
- स्कूल आने-जाने वाले बच्चों की सुरक्षा के पुख़्ता इन्तज़ाम किया जाये
- स्कूल में पीने के पानी की पर्याप्त सुविधा उपलब्ध करवायी जाये
- स्कूल में बाथरूम की सुविधा दुरुस्त की जाये, व बाथरूम की साफ़-सफ़ाई सुनिश्चित की जाये
- शाहबाद डेरी के उच्च माध्यमिक विद्यालय के निर्माण/मरम्मत में हुई धाँधली की निष्पक्ष जाँच की जाये, व अपराधियों पर सख़्त कार्रवाई की जाये
- शाहबाद डेरी के उच्च माध्यमिक विद्यालय के निर्माण/मरम्मत में आये ख़र्च का पूरा हिसाब सार्वजनिक किया जाये
भ्रष्टाचार के बोझ तले दबा डेरी का उच्च माध्यमिक विद्यालय
शाहबाद डेरी में कक्षा आठवीं से बारहवीं तक का एक ही स्कूल है। इसमें क़रीब 8000 बच्चे पढ़ते हैं। इस उच्च माध्यमिक विद्यालय में बच्चों को दो शिफ़्ट में पढ़ाया जाता है। आपको जानकर हैरानी होगी कि इस स्कूल की बिल्डिंग का पुनर्निर्माण 2020 में हुआ था और 2 जनवरी 2020 को तत्कालीन मुख्यमन्दी अरविन्द केजरीवाल उद्घाटन करने आये थे। आज स्कूल जिस जर्जर अवस्था में है, उससे यह साफ़ है कि स्कूल के पुनर्निर्माण में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हुआ है, घपलेबाज़ी की गयी है। डेरी के अधिकतर बच्चे मज़दूर और निम्न मध्यवर्गीय परिवार से आते हैं। उनके लिए यही एकमात्र स्कूल था, जिसमें पढ़ाई करना मुमकिन था। लेकिन स्कूल निर्माण में हुए घोटाले ने डेरी के बच्चों से उनका स्कूल छीन लिया है। 8000 बच्चों के भविष्य को अन्धेरे में डालने का काम किया है। दूसरी तरफ़ भारतीय जनता पार्टी और आम आदमी पार्टी एक दूसरे के ऊपर ‘तू नंगा तू नंगा’ का कीचड़ उछाल रही हैं, एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रही हैं। लेकिन हम जानते हैं कि आम आदमी पार्टी हो या भारतीय जनता पार्टी, दोनों ने ही शिक्षा व्यवस्था को खोखला करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।
आज केन्द्र और दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है। लेकिन यह वही भारतीय जनता पार्टी है जो नयी शिक्षा नीति लाकर स्कूलों का निजीकरण कर रही है, फीस बढ़ा रही है, आम घरों से आने वाले बच्चों से शिक्षा दूर कर रही है। भारतीय जनता पार्टी ने शिक्षा को पूरी तरह से एक बाज़ारू माल बना दिया है: जिसकी ज़ेब में जितना पैसा है वह अपनी औकात के हिसाब से शिक्षा ख़रीद सकता है। इस नीति की शुरुआत कांग्रेस सरकारों ने ही कर दी थी, लेकिन इसने असली रफ़्तार पकड़ी है मोदी सरकार के पिछले 11 सालों में।
हम देख रहे हैं कि पूरे देश भर में जहाँ कहीं भी मज़दूरों के बच्चे पढ़ते हैं, वहाँ के स्कूलों की स्थिति बदतर है और पहले से ज़्यादा बदतर होती जा रही है। यह जानबूझकर किया जा रहा है ताकि प्राईवेट स्कूलों का धन्धा और भी ज़्यादा चमक सके। इन सरकारी स्कूलों में कभी बच्चों के ऊपर मलबा गिर जाता है, कभी कमरे में करण्ट आने लगता है, कहीं पीने का पानी नहीं होता तो कहीं शौचालय की व्यवस्था नहीं होती। कई स्कूलों में ब्लैकबोर्ड, डेस्क, बेंच, कुर्सियाँ और पढ़ाने के लिए अध्यापक तक नहीं हैं।
सरकारी आँकड़ो के अनुसार पिछले 10 वर्षों में 89,441 सरकारी स्कूल बन्द हुए हैं। इसमें 61 प्रतिशत उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के स्कूल हैं। वहीं दूसरी तरफ़ निजी स्कूल 14 प्रतिशत बढ़े हैं। एक तरफ़ तो सरकार, सरकारी स्कूलों को या तो बन्द कर रही है या उसे दूर शिफ़्ट कर रही है, ताकि वह हमारे बच्चों की पहुँच से दूर हो जाये, वहीं दूसरी तरफ़ प्राइवेट स्कूलों को बढ़ावा दिया जा रहा है, प्राइवेट स्कूल खोले जा रहे हैं। यह बात हमें समझनी होगी कि आज शिक्षा को ख़रीदने-बेचने का माल बना दिया गया है। प्राइवेट स्कूलों की दुकान चल सके, इसलिए सरकारी स्कूलों को बन्द किया जा रहा है या उसे दूर शिफ़्ट किया जा रहा है।
क्या कहता है क़ानून?
शिक्षा का अधिकार (आरटीई) कानून के अनुसार, प्राथमिक विद्यालय (कक्षा 1 से 5) के लिए बच्चे के घर से 1 किलोमीटर के दायरे में और उच्च प्राथमिक विद्यालय (कक्षा 6 से 8) के लिए 3 किलोमीटर के दायरे में होना चाहिए। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि बच्चों को अपने आवास के पास ही शिक्षा प्राप्त हो सके। दिल्ली स्कूल शिक्षा अधिनियम (Delhi School Education Act) और नियमों (Rules), 1973 के तहत प्राथमिक (Primary) स्कूलों की दूरी से सम्बन्धित एक मानक तय किया गया है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि बच्चों को स्कूल तक पहुँचने के लिए लम्बी दूरी तय न करनी जिससे ड्रॉपआउट्स को कम किया जा सके। बच्चों को शिक्षा का मूलभूत अधिकार देने के लिए, यह दूरी का मानक “Right to Education Act (RTE), 2009” में भी दोहराया गया है, जिसके अनुसार प्राथमिक विद्यालय का अधिकतम दूरी 1 किलोमीटर और उच्च प्राथमिक विद्यालय (Upper Primary, कक्षा 6-8) का अधिकतम दूरी 3 किलोमीटर होना चाहिए। लेकिन इन नियमों को मोदी के मृतकाल में किस प्रकार धज्जियाँ उड़ायी जा रही हैं, ये सभी के सामने है।
समान एवं निःशुल्क शिक्षा हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है
शिक्षा का अधिकार जीने के अधिकार के साथ जुड़ा हुआ है। समान और निःशुल्क शिक्षा हर बच्चे का जन्मसिद्ध अधिकार है। अगर हम आज शिक्षा के क्षेत्र में जारी ग़ैरबराबरी के ख़िलाफ़ आवाज़ नहीं उठायेंगे, तो अपने बच्चों के भविष्य के बरबाद होने के ज़िम्मेदार हम भी होंगे। याद रखें कि चुप्पी अन्याय करने वालों के लिए एक मौन समर्थन होता है। जिस तरह से हम ज़िन्दगी भर एक जगह से दूसरी जगह काम के लिए भागते रहते हैं, अगर आज हम नहीं बोलेंगे, तो हमारे बच्चे भी वैसी ही ज़िन्दगी जीने के लिए मजबूर होंगे।
हमें बच्चों के भविष्य को बर्बाद होने से बचाने के लिए एकजुट होकर लम्बी लड़ाई की तैयारी करनी होगी। साथ ही इस सवाल पर भी इत्मीनान से सोचना होगा कि यदि सरकार लोगों को स्तरीय शिक्षा, रोजगार, चिकित्सा और आवास जैसी बुनियादी चीजें नहीं दे सकती है तो वह किसलिए है? क्या सिर्फ कॉरपोरेट घरानों और पूँजीपतियों की सेवा के लिए? हमें अपने अधिकारों को लेने के लिए एकजुट होकर संघर्ष करना ही होगा। भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी द्वारा शाहबाद डेरी के पूरे इलाक़े में और अन्य जगहों पर ‘स्कूल बचाओ बच्चों के भविष्य को बचाओ’ अभियान चलाया जा रहा। शाहबाद डेर के इलाके के विधायक के अलावा डिपार्टमेण्ट ऑफ एजूकेशन और शिक्षा मन्त्रालय को मज़दूर पार्टी ने जनता का माँगपत्रक सौंपा है। मज़दूर पार्टी के प्रवक्ता ने कहा कि ‘इसके अलावा हम डेरी के लोगों को एकजुट और संगठित होकर ‘स्कूल बचाओ बच्चों के भविष्य को बचाओ’ अभियान को एक जनआन्दोलन में तब्दील करना होगा ताकि न सिर्फ बच्चों के लिए स्कूल की व्यवस्था की जा सके बल्कि डेरी में जो स्कूलों की स्थिति है उसमें भी बदलाव लाया जा सके।’
मज़दूर बिगुल, जुलाई 2025