ऑटो सेक्टर की ‘रिको फैक्ट्री’ के मज़दूर से बातचीत
बिगुल संवाददाता
प्रश्न- विश्व मे बहुत भारी मुनाफ़ा कमाने वाले (ऑटो उद्योग श्रंखला )की एक फैक्ट्री मे आप काम करते हैं। आपकी जिन्दगी मे तो खुशहाली होगी?
मज़दूर- आप खुशहाली की बात करते हैं। मुझे दस साल हो गये हैं, रिको कम्पनी मे काम करते हुए और अभी तक हम (कैजुअल) अस्थाई मज़दूर की हैसियत से काम कर रहे हैं। हमारी कम्पनी ने नियम बना लिया है कि किसी को (परमानेन्ट) स्थाई मज़दूर नहीं करेंगे। 2/3 से ज्यादा मज़दूर तो कैजुअल, अप्रैन्टिस, ट्रेनी, व ठेकेदार की तरफ से लगे हुए हैं। ऊपर से मालिक हर साल एक नई जगह (जैसे- सिड़कुल, धारूहेड़ा, दादरी) मे फैक्ट्री खोल लेता है। और एक जगह प्रोडक्सन (उत्पादन)कम करवाकर यह दिखाने की कोशिश करता है कि कम्पनी के पास आर्डर कम है। जिससे कि हम मज़दूर डर जाते हैं कि काम कम है तो अब छँटनी होगी और हर आदमी अपनी नौकरी बचाने के चक्कर मे ऐसा कोई काम नहीं करता कि मैनेजमेन्ट को कहने का मौका मिले। और अनिश्चित कालीन एक सरदर्द जिन्दगी मे बना रहता है कि कहीं नौकरी न चली जाये। दस हजार की तनख्वाह मे आदमी की जिन्दगी मे क्या खुशहाली होगी?
प्रश्न- आपके हिसाब से (ऑटो उद्योग) के मज़दूरों की क्या माँगे बनतीं हैं?
मज़दूर- मेरे हिसाब से सबसे पहली माँग तो यही बनती है। कि इतनी महँगाई मे हरियाणा सरकार का मिनिमम (न्यूनतम) ग्रेड जो कि 5342रू है, वो कम से कम इंसान की तरह जीवन यापन करने लायक (15000) रू होना चाहिए ।
2. ठेकेदार की तरफ से कोई मज़दूर न हो। हर मज़दूर को कम्पनी की तरफ से रखा जाये और साल मे स्थाई कर दिया जाये।
3. हर मज़दूर को फण्ड, बोनस, ई.एस.आई. की सुविधा मिलनी चहिए ।
4. हर मज़दूर को रहने के लिये मुफ़्त आवास (घर) मिलना चाहिए ताकि ये जानलेवा किराया न देना पड़े। नही तो जितना किराया लगे, वो जोड़कर कम्पनी तनख्वाह के साथ दे।
5. हमारे बच्चों की पढ़ाई के लिए अच्छे स्कूल हो। यहाँ के सरकारी स्कूलों की हालत तो एकदम दयनीय है और जो मास्टर भी हैं वो हम प्रवासी मज़दूरों के साथ भेदभाव करते हैं। प्राइवेट स्कूल भी यही चाहते हैं कि सरकारी स्कूल न हो और मज़दूर महँगी फीस देकर अपने बच्चों को पढ़ायें।
6. हम ऑटो सेक्टर के मज़दूरों की एक ऑटो उद्योग मज़दूर संघर्ष समिति हो जिसमें गुड़गांव से लेकर मानेसर, धारूहेड़ा बावल तक के मज़दूर प्रतिनिधि शामिल हो। जो कि पूरे इलाके के हर कम्पनी के मज़दूरों की इलाकाई संघर्ष समिति हो। क्योंकि मारूति कम्पनी व हीरो कम्पनी एक की जगह तीन-तीन वेण्डर कम्पनियों से पार्ट पुर्जे खरीदती है। ताकि अगर एक में हड़ताल हो जाये तो उन कम्पनियों का काम न बन्द हो जाये। इससे यह तो साफ हो गया है कि मालिक तो बड़ी चालाकी से हम मज़दूरों को लूट रहे है। इसलिए हम लोगों की एक ऐसी संघर्ष समिति हो जो कि मालिकों को झुकने पर मजबूर कर दें।
मज़दूर बिगुल, नवम्बर 2013
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