चीन के राजकीय उपक्रम भ्रष्ट, मजदूर त्रस्त और युवा बेरोज़गार
चीन में पूंजीवाद की पुनर्स्थापना के बाद मजदूरों-किसानों के अधिकार-सुविधाएं छीनने की जो प्रक्रिया शुरू हुई थी, वह अब चरम पर पहुंच चुकी है। ‘‘सुधारों’’ से पहले के चीन का उजाला तबाही-बर्बादी के बादलों से ढँक गया है और वहां दुखों और शोषण का अँधेरा व्याप्त है। 1980 के बाद शुरू हुए “सुधारों” के बाद राज्य के स्वामित्व वाले अधिकांश उपक्रमों को या तो बेच दिया गया है या उन्हें मुट्ठीभर धनिकों के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। इन उपक्रमों को अपने खून-पसीने से तैयार करने वाले मजदूरों की स्थिति दयनीय है। उनमें से अधिकांश की छँटनी कर दी गई है और बाकी से ठेके पर काम लिया जा रहा है, उन्हें किसी प्रकार की सुरक्षा की गारण्टी नहीं प्राप्त है। यहाँ हम राज्य के स्वामित्व वाले एक उपक्रम के मजदूर प्रतिनिधि द्वारा कम्युनिस्ट नामधारी संशोधनवादी पार्टी को लिखे गए पत्र के सम्पादित अंश प्रस्तुत कर रहे हैं। अनेक लेखकों के विवरणों से यह समझना कठिन नहीं है कि पूरे चीन के राजकीय उपक्रमों की स्थिति कमोबेश इस पत्र में बयान की गई स्थितियों जैसी ही है। साथ ही आर्थिक मंदी से प्रभावित चीन की ‘‘चमत्कारी’’ अर्थव्यवस्था पर नज़र डालने से भी वहां वर्गों के तीखे होते संघर्ष, मजदूरों-किसानों-नौजवानों की स्थितियां, बेरोजगारी की बढ़ती दर और बढ़ते सामाजिक असंतोष का भी अंदाजा लगता है।