बोलते आँकड़े चीख़ती सच्चाइयाँ
कृषि में पूँजीवादी विकास के साथ ही किसान आबादी के बीच ध्रुवीकरण की प्रक्रिया चलती रही है। धनी किसानों-कुलकों-फ़ार्मरों की एक छोटी-सी आबादी अमीर हुई है और उसके पास ज़मीन बढ़ती गयी है जबकि अपनी ज़मीन से उजड़कर मज़दूर बनने वाले किसानों की संख्या लगातार बढ़ती गयी है। हरित क्रान्ति के बाद यह सिलसिला तेज़ हुआ और पिछले पाँच दशकों से लगातार जारी है।