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बोलते आँकड़े चीखती सच्चाइयाँ

  • मंदी की शुरुआत से अब तक अमेरिका में 40 लाख नौकरियाँ जा चुकी हैं। सिर्फ पिछले तीन महीनों में 18 लाख लोगों की नौकरी चली गयी है। इसी दर से अगले दो साल में एक करोड़ 40 लाख रोजगार खत्म होने का अन्देशा ज़ाहिर किया जा रहा है।
  • अमेरिका में इस समय एक करोड़ 16 लाख बेरोजगार और 78 लाख अर्द्धबेरोजगार हैं।
  • जापान में बेरोजगारी में पिछले 41 वर्ष में सबसे तेज बढ़ोत्तरी हुई है। मार्च तक कम से कम 4 लाख अस्थायी मज़दूर निकाल दिये जायेंगे। इनमें से बहुत से तो बेघर हो जायेंगे क्योंकि वे फैक्ट्री की डॉरमिट्री में ही रहते थे।
  • चीन के 13 करोड़ प्रवासी मजदूरों में से 2 करोड़ बेरोजगार हो चुके है।
  • यूरोपीय संघ के 27 देशों में बेरोजगारी की दर 8.7 प्रतिशत हो चुकी है। फ्रांस में यह दर 10.6 प्रतिशत है जबकि स्पेन में बेरोजगारी की दर 14.4 प्रतिशत तक पहुँच चुकी है।
  • अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन की हाल की रिपोर्ट के अनुसार इस वर्ष के अन्त तक दुनिया भर में 5 करोड़ से ज्यादा रोजगार छिन जायेंगे।
  • बोलते आँकड़े चीखती सच्चाइयाँ

  • देश में आज लगभग एक लाख अरबपति हैं। देश के सबसे बड़े दस खरबपति हर मिनट दो करोड़ रुपये कमाते हैं। 2006 में दुनिया के 946 खरबपतियों में से 36 भारतीय थे।
  • देश की ऊपर की दस प्रतिशत आबादी के पास कुल परिसम्पित्ति का 85 प्रतिशत इकट्ठा हो गया है जबकि नीचे की साठ प्रतिशत आबादी के पास मात्र दो प्रतिशत है। ऊपर के 0.01 प्रतिशत लोगों की आमदनी पूरी आबादी की औसत आमदनी से दो सौ गुना अधिक हो गयी है।
  • देश के 84 करोड़ लोग 20 रुपये रोज़ाना से कम पर और उनमें से 22 प्रतिशत लोग क़रीब साढ़े ग्यारह रुपये रोज़ाना की आमदनी पर जीते हैं। पूरे देश में 18 करोड़ लोग झुग्गियों में रहते हैं और 18 करोड़ लोग फुटपाथों पर सोते हैं।
  • देश की ऊपर की तीन फ़ीसदी और नीचे की 40 प्रतिशत आबादी की आमदनी के बीच का अन्तर आज 60 गुना हो चुका है।
  • देश में प्रतिदिन 9000 बच्चे भूख और कुपोषण से मरते हैं। 5 साल से कम उम्र के बच्चों की मौत के 50 फीसदी मामलों का कारण कुपोषण होता है। देश के हर तीसरे व्यक्ति, यानी 35 करोड़ लोगों को प्रायः भूखे सोना पड़ता है।
  • बिगुल पुस्तिका – 14 : बोलते आँकड़े चीखती सच्चाइयाँ

    आँकड़ों के ज़रिए निजीकरण-उदारीकरण के दो दशकों के ”विकास“ की असली तस्वीर।

    बिगुल पुस्तिका – 13 : चोर, भ्रष्ट और विलासी नेताशाही

    अन्तरराष्ट्रीय एजेंसियों और पूँजीवादी अख़बारों की कुछ रिपोर्टों, सूचना के अधिकार के तहत विभिन्न सरकारी महक़मों से हासिल की गयी जानकारियों और आर्थिक-राजनीतिक मामलों के बुर्जुआ विशेषज्ञों की पुस्तकों या लेखों से लिये गये थोड़े से चुनिन्दा तथ्यों और आँकड़ों की रोशनी में भारतीय जनतन्त्र की कुरूप, अश्लील और बर्बर असलियत को पहचानने की एक कोशिश।

    आँसुओं के महासागर में समृद्धि के टापू हुए और जगमग

    आज देश में एक लाख अरबपति धनकुबेर हैं जो इस देश के करोड़ों मेहनतकश लोगों की हडि्डयाँ और मांस निचोड़ने में लगे हैं । ये अपने महलों में चैन से सो सकें इसके लिए तमाम “जनप्रतिनिधि” संसद और विधान सभाओं में कानून पास कर रहे हैं । छँटनी–तालाबन्दी और तमाम तथाकथित विकास परियोजनाओं के नाम पर करोड़ों लोग अपनी रोज़ी–रोटी, जगह–जमीन से बेदखल किये जा रहे हैं और आवाज़ उठाने पर उन्हें लाठियाँ–गोलियाँ मिल रही हैं । कलिंगनगर, सिंगूर, नन्दीग्राम तो देशी–विदेशी पूँजी की बर्बरता के प्रतीक बन चुके हैं लेकिन तमाम औद्योगिक क्षेत्रों में मज़दूर रोज़–रोज़ जिन बर्बरताओं के शिकार हो रहे हैं उनकी खबरें भी लोगों तक नहीं पहुँचने दी पातीं । मुनाफे और बाजार पर आधारित पूँजीवादी खेती की मार से देश भर में पचास हज़ार से ज्यादा छोटे–मँझोले किसान आत्महत्याएँ कर चुके हैं । अकेले महाराष्ट्र में 1995 के बाद से 32,000 किसान आत्महत्याएँ कर चुके हैं ।

    सच्चर कमेटी की रिपोर्ट : मुस्लिम समुदाय की हालत की सच्चाइयाँ और सुधार के नुस्खों का भ्रम

    सच्चर कमेटी की रिपोर्ट मुस्लिम आबादी की जिस दोयम दर्जे की स्थिति को सामने लाती है उसका अनुमान चन्द आँकड़ों से लगाया जा सकता है। देश में मुसलमानों की आबादी 13.4 प्रतिशत है लेकिन सरकारी नौकरियों में उनका प्रतिनिधित्व सिर्फ़ 4.9 प्रतिशत है, इसमें भी ज़्यादातर निचले पदों पर हैं। उच्च प्रशासनिक सेवाओं यानी आईएएस, आईएफएस और आईपीएस में मुसलमानों की भागीदारी सिर्फ़ 3.2 प्रतिशत है। रेलवे में केवल 4.5 प्रतिशत मुसलमान कर्मचारी हैं जिनमें 98.7 प्रतिशत निचले पदों पर हैं। पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और असम जहाँ मुस्लिम आबादी क्रमश: 25.2 प्रतिशत, 18.5 प्रतिशत और 30.9 प्रतिशत है, वहाँ सरकारी नौकरियों में मुसलमानों की भागीदारी क्रमश: सिर्फ़ 4.7 प्रतिशत, 7.5 प्रतिशत और 10.9 प्रतिशत है।

    बोलते आंकडे़ चीखती सच्चाइयां

    देश में सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की खस्ता हाल का अंदाज लगाने के लिए यह तथ्य काफी है कि कुल स्वास्थ्य सेवाओं में सरकारी क्षेत्र का योगदान केवल 18 प्रतिशत है, जबकि 82 प्रतिशत स्वास्थ्य सेवाएं निजी क्षेत्र के दायरे में आती हैं। विश्व बैंक की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार सरकार स्वास्थ्य सेवाओं के लिये जो आर्थिक सहायता देती है उसका केवल 10 प्रतिशत ही गरीबों को मिलता है। बाकी 90 प्रतिशत अमीर हड़प जाते हैं।