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(मज़दूर बिगुल के अक्टूबर 2019 अंक में प्रकाशित लेख। अंक की पीडीएफ़ फ़ाइल डाउनलोड करने के लिए यहाँ क्लिक करें और अलग-अलग लेखों-ख़बरों आदि को यूनिकोड फॉर्मेट में पढ़ने के लिए उनके शीर्षक पर क्लिक करें)
सम्पादकीय
मेहनतकश साथियो, सरकार और संघ परिवार के झूठों और झूठे मुद्दों से सावधान रहो!
अर्थनीति : राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय
प्रधानमंत्री अमेरिका जाकर घोषणा कर रहे हैं कि ‘भारत में सब चंगा सी!’
पर आम मेहनतकश जनता पर मन्दी की मार तेज़ होती जा रही है / पराग वर्मा
अभिजीत बनर्जी को नोबल पुरस्कार और ग़रीबी दूर करने की पूँजीवादी चिन्ताओं की हक़ीक़त / सत्यम
श्रम क़ानून
मोदी सरकार द्वारा श्रम क़ानूनों में किये गये मज़दूर-विरोधी बदलावों के मायने/ वृषाली
शिक्षा और रोज़गार
विकराल बेरोज़गारी : ज़िम्मेदार कौन? बढ़ती आबादी या पूँजीवादी व्यवस्था? / अमित
संशोधनवाद
मन्दी के बीच मज़दूरों के जीवन के हालात और संशोधनवादी ट्रेड यूनियनों की दलाली
मज़दूरों पर बढ़ते हमलों के इस समय में करोड़ों की सदस्यता वाली केन्द्रीय ट्रेड यूनियनें कहाँ हैं? / पराग
संघर्षरत जनता
स्त्री-विरोधी अपराध
बेटी बचाओ, भाजपाइयों से!भाजपा नेताओं के कुकर्मों की शिकार हुई एक और बेटी / रूपा
लेखमाला
समाज
क्या आप अवसाद ग्रस्त हैं? दरअसल आप पूँजीवाद के शिकार हैं! / अनीता
क्या आतंकवाद वाक़ई देश और दुनिया की सबसे बड़ी समस्या है?/ अनुपम
कला-साहित्य
तानाशाह : तीन कविताएँ – कविता कृष्णपल्लवी
‘अन्वेषण’ : कला के असली सजर्कों तक कला को ले जाने की अनूठी पहल
मज़दूर इलाक़ों से
गाँव की ग़रीब आबादी के बीच मनरेगा मज़दूर यूनियन की ज़रूरत और’क्रान्तिकारी मनरेगा मज़दूर यूनियन’ के अनुभव / प्रवीण कुमार
गुड़गॉंव ऑटोमोबाइल पट्टी में जगह-जगह मज़दूरों का संघर्ष जारी है! / शाम मूर्ति
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बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।
मज़दूरों के महान नेता लेनिन