साम्राज्यी युद्धों की भेंट चढ़ता बचपन
सिकंदर
2016 के जुलाई महीने में यूनीसेफ द्वारा जारी रिपोर्ट बच्चों और नौजवानों पर पड़ते युद्ध के भयानक प्रभावों के नतीजे सामने लाती है। रिपोर्ट के अनुसार दूसरे विश्व युद्ध के बाद यह पहली बार हुआ है कि इतनी बड़ी गिनती में बच्चे युद्ध, संकट और प्राकृतिक आपदा के शिकार हुए हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार लगभग 25 करोड़ बच्चे युद्ध प्रभावित क्षेत्र में पलने के लिए मज़बूर हैं। ऐसे क्षेत्र में वे मुल्क आते हैं जिनकी युद्ध या घरेलू युद्ध के साथ तबाही हो गई है जैसे कि अफगानिस्तान, इराक, सीरिया, यमन, फ़िलिस्तीन तथा कई और भी अर्थात् वह मुल्क जिनको साम्राज्यी दखलन्दाजी ने पिछले 10-15 वर्षों दौरान युद्ध के मुंह में धकेल दिया है। सिर्फ 2015 में ऐसे युद्ध प्रभावित क्षेत्रों में 1 करोड़ 60 लाख बच्चे पैदा हुए हैं।
यह रिपोर्ट इन क्षेत्रों में रह रहे बच्चों के बारे में कुछ और तथ्य सामने लाती है–
1. विश्व भर में 7 करोड़ 50 लाख बच्चे तीन से अठारह वर्ष की आयु के बीच किंडरगार्डन या स्कूल में दाखिल नहीं हो सके । युद्ध के कारण डर के माहौल में इनकी पढ़ाई लगातार और नियमित ढंग से नहीं चल सकी।
2. प्रतिदिन औसतन 4 स्कूल या अस्पताल हथियारबंद ताकतों का निशाना बनते हैं। सिर्फ अफगानिस्तान में 2014 में 164 और इराक में 67 स्कूलों को निशाना बनाया गया। नाइजीरिया में बोको हरम नाम के इस्लामी कट्टरपंथी संगठन ने अब तक 1200 स्कूलों को तबाह कर दिया है और 600 अध्यापकों का बेरहमी के साथ कत्ल कर चुका है।
3. सिर्फ 2015 दौरान सीरिया में यूनीसेफ के पास बच्चों के हकों की गम्भीर उल्लघंना करने के 1500 केस रजिस्टर हुए। रिपोर्ट के अनुसार यह सिर्फ हो रहे ज़ुल्म का थोड़ा हिस्सा ही था। 60% बच्चे या तो बम हमलों में मारे गये या बुरी तरह ज़ख्मी हो गये। एक तिहाई बच्चों को स्कूल जाते समय रास्ते में शिकार बनाया गया।
4. इन इलाकों में बहुत सारे बच्चे कई वर्ष स्कूल में हाज़िर नहीं हो सके क्योंकि स्कूलों को तबाह कर दिया गया या रास्ते खतरे से खाली नहीं थे और कई बार तो किताबें और पैन खरीदने के लिए भी पैसे नहीं थे। इसी रिपोर्ट के अनुसार “5 वर्ष से छोटे लाखों सीरियन लड़के और लड़कियों को युद्ध और हवाई हमलों के बिना और कुछ सोचते नहीं”।
5. हां यह भी वही बच्चे हैं जिनको कवि कलियाँ और नए खिले फूल कह कर अपनी कविता में रंग भरता है। लेकिन अगर खिलने से पहले ही फूलों को कुचल दिया जाये, जब स्कूल का रास्ता जंगली भेड़ियों के बीच से होकर जाता हो और आसमान पर मंडराने वाले ज़हरीले नाग उन पर हमला करने को तैयार बैठे हों तो बचपन कितना भयंकर हो सकता है यह हमारी सोच से भी बाहर है।
इन मुल्कों में युद्ध के लिए साम्राज्यवादी मुल्क ही ज़िम्मेवार हैं जो प्राकृतिक संसाधनों पर कब्ज़ा करके मुनाफा कमाने की दौड़ में बेकसूर और मासूम बच्चों को मारने से भी नहीं झिझकते। युद्ध के उजाड़े गए इन लोगों को धरती के किसी टुकड़े पर शरण भी नहीं मिल रही और यूरोप भर की सरकारें इनको अपने-अपने मुल्कों में भी शरण देने को तैयार नहीं है।
ऐसे युद्धों के अपराधों के लिए ज़िम्मेवार पूँजीवादी व्यवस्था से तो एक दिन मेहनतकश लोग ज़रूर इंसाफ लेंगे पर सवाल हमारे सामने यह है हम नौजवान ऐसे बर्बर व्यवस्था को उखाड़ कर नयी व्यवस्था बनाने के लिए कब आगे आयेंगे?
मज़दूर बिगुल, अगस्त-सितम्बर 2016
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