योगी-राज में उत्तर प्रदेश में जातिवादी गुण्डों का कहर
रायबरेली में एक दलित व्यक्ति की पीट-पीटकर की गयी हत्या कोई अपवाद नहीं है!

ज्ञान

उत्तर प्रदेश में जातिवादी गुण्डों की गुण्डई चरम पर है। विगत 1 अक्टूबर की रात रायबरेली में जातिवादी गुण्डो ने एक दलित व्यक्ति की पीट-पीटकर हत्या कर दी। यह घटना उस समय घटित हुई जब हरिओम वाल्मीकि नाम का व्यक्ति अपनी पत्नी और बच्ची से मिलने के लिए अपने ससुराल जा रहा था। रास्ते में रायबरेली के ऊँचाहार थाना क्षेत्र में कुछ लोगों ने उसे पकड़ लिया और उस पर ड्रोन चोर होने का आरोप लगाते हुए पूछताछ करने लगे। हरिओम की आमतौर पर मानसिक स्थिति ठीक नहीं रहती थी, इस वजह से वह उन दबंगों के सवालों के जवाब नहीं दे पाया। ठीक जवाब न मिलने पर उन गुण्डों ने उसे पीटना शुरू कर दिया। सोशल मीडिया पर तैरते हरिओम की पिटाई के वीडियो विचलित कर देने वाले हैं। उसमें दिखता है कि उन जातिवादी भेड़ियों ने पीड़ित के कन्धों पर पैर रखकर उसे बेल्ट और डण्डों से इतना पीटा की हरिओम के कपड़े फट गये और उसका शरीर लहूलुहान हो गया। इस प्रक्रिया में उसके मुँह से राहुल शब्द निकला, जिसके जवाब में उन बदमाशों ने कहा कि “यहां सब बाबा के लोग हैं”। अमानवीय बर्बरता के बाद उन्होंने उसे रेलवे ट्रैक के पास फेंक दिया जहाँ हरिओम की मृत्यु हो गयी।

यह घटना उत्तर-प्रदेश की है, जहाँ पर भाजपा की सरकार है और जहाँ के मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ अक्सर दुहराते हैं कि ‘उत्तर-प्रदेश उत्तम प्रदेश बन चुका है’, ‘यहाँ अपराधी थर-थर काँपते हैं’ और ‘अपराधियों के प्रति ज़ीरो टॉलरेंस की नीति अपनायी जा रही है।’ लेकिन इस घटना ने साफ़ ज़ाहिर कर दिया कि अपराधी थर-थर काँप नहीं रहे बल्कि ख़ुद योगी आदित्यनाथ का नाम लेकर हत्याएँ कर रहे हैं और उनकी इतनी हिम्मत इसलिए है क्योंकि उन्हें पता है कि योगी सरकार में जातिवादी, बलात्कारी, फ़ासीवादी गुण्डों को हर तरह का संरक्षण दिया जायेगा।  इस बात की सच्चाई हमें चिन्मयानन्द और हाथरस मामले जैसे बलात्कारियों को बचाने में योगी सरकार के पुलिस-तन्त्र के प्रयासों से पता चल जाती है।

आज देश में होने वाली जातिगत उत्पीड़न की घटनाओं में उत्तर-प्रदेश पहले नम्बर पर आता है। इस बात से समझा जा सकता है कि जातिवादी गुण्डों और अपराधियों के मन में कानून का डर बैठा है या संरक्षण पाने का विश्वास! ‘राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो’ के 2022 के आँकड़ों के अनुसार यूपी में दलितों के ख़िलाफ़ अपराध के 15,368 मामले दर्ज हुए जो देश में कुल दलित-विरोधी अपराधों का 26.7% है। वहीं इन घटनाओं में 2021 की तुलना में 16% की वृद्धि हुई है। शायद जातिगत उत्पीड़न में उत्तर प्रदेश के प्रथम स्थान और वृद्धि को ही देखकर नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि ‘योगी का कानून व्यवस्था मॉडल देश के लिए उदाहरण है।’ इसी मॉडल को राजस्थान और मध्य-प्रदेश की भाजपा सरकारों ने अपना लिया है, तभी तो ये राज्य दलितों के ख़िलाफ़ अपराध के मामले में दूसरे और तीसरे नम्बर पर हैं।

एक तरफ़ जब ‘अमृतकाल’ और ‘विकसित भारत’ के फटे ढोल पीटे जा रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ़ भारत में लगातार जातिगत उत्पीड़न की घटनाओं में वृद्धि दर्ज की जा रही है। एनसीआरबी का आँकड़ा बताता है कि 2023 में अनुसूचित जातियों के ख़िलाफ़ अपराध के 57,789 मामले दर्ज हुए, जिसमें 2022 की तुलना में 0.4% की वृद्धि हुई है। 2025 की ही घटनाओं को देखा जाये तो प्रयागराज में बोझा ढोने से मना करने पर एक दलित मज़दूर को जलाकर मार दिया गया। प्रयागराज में ही पुलिस कस्टडी में हीरालाल नामक व्यक्ति की मौत हो गयी। घर वालों ने बताया कि पुलिस ने चोरी के आरोप में हीरालाल की पिटाई की थी जिसकी वजह से उनकी मौत हुई। मध्य प्रदेश के कटनी में दलित युवक के साथ मारपीट और उसके मुँह पर पेशाब करने की घटना सामने आयी। मध्य-प्रदेश के ही दमोह में एक पिछड़ी जाति के युवक को जबरन चरण धोकर पानी पिलाया गया। कुछ दिनों पहले हरियाणा में एक आईपीएस अधिकारी पूरन कुमार ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों पर जातिगत उत्पीड़न और भेदभाव का आरोप लगाते हुए आत्महत्या कर ली।

आज एक ओर मोदी और योगी अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बने फिर रहे हैं, एक-दूसरे को शाबाशी देते हुए ‘अमृतकाल’ के राग अलाप रहे हैं और वहीं दूसरी ओर कहीं मूँछें रखने, कहीं घोड़ी चढ़ने पर, कहीं पानी का मटका छू जाने पर दलितों की पीट-पीटकर कर हत्या की जा रही हैं, जाति देखकर लोगों के ऊपर पेशाब किया जा रहा है, जातिगत गालियाँ देने के साथ ही उनकी हत्याएँ की जा रही हैं। पुलिस कस्टडी में दलितों की मौतें पुलिस प्रशासन के भी जातिवादी रवैया को स्पष्ट कर देती है। आज देश में सत्तासीन फ़ासीवादी मोदी सरकार खुलेआम जातिवादियों के साथ नज़र आती है। दरअसल हिन्दुत्व फ़ासीवादी राजनीति ब्राह्मणवादी विचारधारा और जातिवाद को पोषित करने का काम बख़ूबी अंजाम दे रही है। इसलिए आज हर प्रकार के जातिवादी तत्वों को भाजपा का संरक्षण प्राप्त है और यह अनायास नहीं है कि ऐसे तमाम तत्वों की शरणस्थली ख़ुद भाजपा बनी हुई है। इसलिए आज जातिवाद के ख़िलाफ़ कोई भी कारगर लड़ाई हिन्दुत्व फ़ासीवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई ही हो सकती है।

साथ ही हमें यह भी समझना पड़ेगा कि इस पूँजीवादी व्यवस्था के दायरे के भीतर जातिवाद और जाति-व्यवस्था का अन्त सम्भव नहीं है क्योंकि पूँजीवाद स्वयं किसी न किसी रूप में आम महनतकशों की वर्गीय एकता को तोड़ने के लिए जाति आधारित पहचान की राजनीति को बढ़ावा देता है। इसके अलावा निजी सम्पत्ति पर आधारित पूँजीवादी व्यवस्था का जाति-व्यवस्था से कोई विरोधाभास है भी नहीं। ज़ाहिरा तौर पर आज जिस जाति-व्यवस्था को हम देख रहे हैं वह कोई प्रागधुनिक या सामंती जाति-व्यवस्था नहीं, बल्कि पूँजीवादी जाति-व्यवस्था है। यही कारण है कि इस व्यवस्था के दायरे के भीतर जाति का समूल नाश सम्भव है ही नहीं। यही कारण है कि तमाम चुनावबाज़ पार्टियाँ जो जातिगत पहचान की इस पूँजीवादी राजनीति पर फल-फूल रही हैं, वे इसके ख़िलाफ़ कभी कुछ नहीं करेंगी। जातिवाद और जाति-व्यवस्था का  बना रहना उनकी राजनीति के लिए ज़रूरी है। दलितों का रहनुमा बनने का ड्रामा करने वाली बसपा जैसी पार्टी की फ़ासीवादियों के साथ गलबहियों देखकर इसे सहज ही समझा जा सकता है। आज एक वर्ग-आधारित जाति-विरोधी आन्दोलन को संगठित करना बेहद ज़रूरी है। अपनी वर्गीय एकता को क़ायम करके ही हम जातिवाद के ख़िलाफ़ क्रान्तिकारी जुझारू संघर्ष की ओर बढ़ सकते हैं। यह कार्यभार ख़ास तौर पर फ़ासीवाद के दौर में और अधिक अहमियत रखता है। इसलिए इस काम में हमें बिना देरी के आज से ही जुट जाना चाहिए। आज हमारा नारा होना चाहिए – ‘बिना जाति-विरोधी संघर्ष के क्रान्ति नहीं हो सकती, बिना क्रान्ति के जाति उन्मूलन नहीं हो सकता!’

 

मज़दूर बिगुल, अक्टूबर 2025

 

 

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