दो फ़िलिस्तीनी कविताएँ

रफ़ा के बच्चे

समीह अल-कासिम

उनके लिए — जो अपना रास्ता
लाखों लोगों के ज़ख़्मों से होकर बनाते हैं
और वे टैंक बागों के गुलाबों को
कुचल देते हैं
उनके लिए — जो रातों को
घरों की खिड़कियाँ तोड़ते हैं
खेत और संग्रहालय जला देते हैं
और फिर इसकी ख़ुशी में गीत गाते हैं
उनके लिए — जो अपने क़दमों की आहट से
दुखी माताओं के केश काट देते हैं
अंगूर के खेतों को
तहस-नहस कर देते हैं
जो शहर के चौराहों पर
ख़ुशियों के बुलबुल को गोली मार देते हैं
और जिनके हवाई जहाज बचपन के सपनों को
बमों से उड़ा देते हैं
उनके लिए — जो इन्द्रधनुष तोड़ देते हैं
 
आज की रात
रफा के बच्चे
यह घोषणा करते हैं
कि हमने नहीं बुनी थी चादरें
सिर के बालों से
हमने नहीं थूका था
मारी गयी औरतों के चेहरे पर
उनके मुँह से नहीं उखाड़े थे सोने के दांत
तुम हमारी टॉफ़ी छीनकर
बमों के खोखे क्यों देते हो
क्यों तुम अरब के बच्चों को
यतीम बनाते हैं
और हम तुम्हें धन्यवाद दें
दुखों ने हमें बड़ा बना दिया है
हम लड़ेंगे

विजेता की संगीन पर सूर्य की किरणें
एक तिरस्कृत नंगी लाश थी
रक्ताक्त मौन
ख़ून से सने चेहरों के बीच
विद्वेष
प्रार्थना की माला
मिथकीय डीलडौल का
एक आक्रमणकारी चिल्लाता है
तुम नहीं बोलोगे?
ठीक है :
तुम्हारे ऊपर कर्फ़्यू लगाया जाता है…
अल्लादीन की आवाज़ बिखर जाती है
शिकार की चिड़ियों का जन्म होता है
मैंने सेना के वाहन पर पत्थर फेंके
पर्चे बांटे
इशारा किया
मैंने ब्रश और पड़ोस से कुर्सी लेकर
नारे लिखे
मैंने बच्चों को भी इकट्ठा किया
और हम लोगों ने क़सम खायी
शरणार्थियों के निर्वासन से
कि हम लड़ेंगे
जब तक विजेताओं की संगीनें
हमारी गली में चमकती रहेंगी
अल्लादीन दस साल से ज़्यादा नहीं था
 

अकासिया के पेड़ उजाड़ दिये गये
और रफा के दरवाज़े
दुखों से सील कर दिये गये
या लाख्स से
या कर्फ़्यू से
(उस लड़की को रोटी
और एक घायल आदमी के लिए
पट्टी लेनी थी जो आधी रात के बाद लौट रही थी,
उस लड़की को एक गली पार करनी थी
जिस पर नज़र रख रही थीं
अजनबियों की आँखें, तेज़ हवा और बन्दूक़ की नलियाँ)
अकासिया के पेड़ उजाड़ दिये गये
और एक घाव की तरह
रफा में एक घर का दरवाज़ा
किसी ने खोला
 
वह उछली
और जासमीन की झाड़ी की गोद में जा गिरी
एक बार आतंक के बीच
जा रही थी सावधानी से कि
खजूर के एक पेड़ ने
उसे बचाया था
हर क़दम पर, बस उछलो…
एक गश्ती दल
तेज़ रोशनी
खाँसी
— कौन हो तुम
रुको

पाँच बन्दूक़ें उस पर तन गयी थीं
पाँच बन्दूक़ें
 
सुबह
हमलावरों की अदालत बैठी
उन्होंने उसे पेश किया
अमीना
‘अपराधी’
आठ साल की बच्ची

मेरे देश

इब्राहीम तुकन

मेरे देश
ओ मेरे देश!
तेरी पर्वत श्रृंखलाओं में
गरिमा और सौन्दर्य है
भव्यता और रमणीयता है
तेरे वातावरण में
जीवन और मुक्ति है
ख़ुशियाँ और आशाएँ हैं
क्या मैं तुझे देख पाऊँगा?
सुरक्षित और सुखी
मज़बूत और सम्मानित
क्या मैं तुझे देख पाऊँगा?
तेरी प्रतिष्ठा में
सितारों तक पहुँच रही तेरी प्रतिष्ठा में
मेरे देश
ओ मेरे देश

नौजवान थकेंगे नहीं
उनका लक्ष्य तेरी आज़ादी है
या फिर मौत
हम मौत का प्याला पी लेंगे
पर अपने दुश्मनों के ग़ुलाम नहीं बनेंगे
हम हमेशा के लिए
अपमान नहीं चाहते
और न अभावग्रस्त ज़िन्दगी
हम अपनी महानता
लौटायेंगे मेरे देश
ओ मेरे देश
 
क़लम और तलवार हमारी पहचान है
सिर्फ़ बहस नहीं
और न झगड़ा
हमारी गरिमा और परम्परा
और उसे बनाये रखने का कर्तव्य
हमें उद्वेलित करता है
हमारा सम्मान
एक सम्माननीय लक्ष्य है
एक उठा हुआ झण्डा
ओ मेरे देश
तेरी ख़ूबसूरती
तेरी प्रतिष्ठा के दौरान
दुश्मनों पर भारी है
मेरे देश
ओ मेरे देश

 

मज़दूर बिगुल, फरवरी 2024


 

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