Tag Archives: शाम मूर्ति

ऑटो सेक्टर के मज़दूरों के लिए कुछ ज़रूरी सबक़ और भविष्य के लिए एक प्रस्ताव

कोविड काल के बाद शुरू हुए कई आन्दोलनों में से एक आन्दोलन धारूहेडा में शुरू हुआ। 6 से लेकर 22 साल की अवधि से काम कर रहे 105 ठेका मज़दूरों को बीती 28 फ़रवरी 2022 को हुन्दई मोबिस इण्डिया लिमिटेड कम्पनी ने बिना किसी पूर्वसूचना के काम से निकाल दिया। प्रबन्धन के साथ मज़दूरों का संघर्ष पिछले साल से ही चल रहा था। लेकिन प्रबन्धन ने 28 फ़रवरी को सभी पुराने मज़दूरों का ठेका ख़त्म होने का बहाना बनाकर छँटनी कर दी।

वेतन न देने और वेतन कटौती में घपलेबाज़ी को लेकर मानेसर की श्रीनिसंस कम्पनी के मज़दूरों के क़ानूनी संघर्ष की उम्मीदें भी लगभग ख़त्म!

श्रीनिसंस वायरिंग लिमिटेड (मानेसर) के मज़दूरों को पिछले छह महीने से उनके वेतन का भुगतान नहीं किया गया है। दूसरे, वेतन से कम्पनी द्वारा पैसा काटने के बावजूद न तो पी.एफ़. और न ही ई.एस.आयी. में पैसा जमा किया गया है; और न ही मज़दूरों द्वारा कम्पनी से लिये गये क़र्ज़ की क़िश्त चुकायी जा रही थी। इस तानाशाही व घपलेबाज़ी की शिकायत मज़दूरों ने श्रम उपायुक्त को 9 जुलाई को लिखित रूप में भी की थी। स्टाफ़ के क़रीब 20 मज़दूरों की तनख़्वाह का जनवरी 2021 से तथा ठेका व अप्रेण्टिस मज़दूरों का अप्रैल 2021 से भुगतान नहीं किया गया है।

जारी है रिको ऑटो इंडस्ट्रीज़ के मज़दूरों का संघर्ष

जारी है रिको ऑटो इंडस्ट्रीज़ के मज़दूरों का संघर्ष – शाम मूर्ति राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के धारूहेड़ा में रिको के मज़दूरों का संघर्ष पिछले चार महीने से जारी है। छँटनी…

असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों के लिए पेंशन योजना की असलियत

अनौपचारिक और औपचारिक क्षेत्र के असंगठित मज़दूरों/कर्मचारियों/मेहनतकशों को सरकार द्वारा सुझाए गये पेंशन के टुकड़े की असलियत काे समझना होगा और पूरी सामाजिक सुरक्षा के लिए अपना एजेण्डा सेट करना होगा और अपना माँगपत्रक पेश करना होगा। सबको पक्‍का, सुरक्षित और मज़दूर पक्षीय श्रम-क़ानून सम्‍मत रोज़गार की गारण्‍टी के साथ-साथ सबको समान शिक्षा, इलाज, पेंशन योजना जैसी बुनियादी ज़रूरत मुहैया कराये, वरना गद्दी छोड़ दे।

शहीद उधम सिंह के 78वें शहादत दिवस (31 जुलाई 1940) के अवसर पर! शहीद उधम सिंह उर्फ़ राम मोहम्मद सिंह आज़ाद अमर रहें !

उधम सिंह हिन्दू, मुस्लिम और सिख जनता की एकता के कड़े हिमायती थे, इसीलिए उन्होंने अपना नाम बदलकर ‘राम मोहम्मद सिंह आज़ाद’ रख लिया था। वे इसी नाम से पत्र-व्यवहार किया करते थे और यही नाम उन्होंने अपने हाथ पर भी गुदवा लिया था। उन्होंने वसीयत की थी कि फाँसी के बाद उनकी अस्थियों को तीनों धर्मों के लोगों को सौंपा जाये। अंग्रेज़ों ने इस जाँबाज को 31 जुलाई 1940 को फाँसी पर लटका दिया। उधम सिंह का जन्म 26 दिसम्बर 1899 को पंजाब प्रान्त के संगरूर जि़ले के सुनाम गाँव हुआ था। छोटी उम्र में ही माँ-बाप और बड़े भाई की मृत्यु की वजह से वह अनाथ हो गये। उनका लालन-पोषण अनाथालय में हुआ। इसके बावजूद भी जीवन के मुश्किल हालात उनके इरादों को डगमगा नही पाये। मैट्रिक की पढ़ाई कर उन्होंने अनाथालय छोड़ दिया और क्रान्तिकारियों के साथ मिलकर जंग-ए-आज़ादी के मैदान में कूद पड़े। 1924 में विदेशों में भारत की आज़ादी की लड़ाई लड़ने वाली क्रान्तिकारी गदर पार्टी में सक्रिय रहे और विदेशों में चन्दा जुटाने का काम किया। उधम सिंह ने हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (एचएसआरए), इण्डियन वर्कर्स एसोसिएशन आदि क्रान्तिकारी संगठनों के साथ अलग-अलग समय पर काम भी किया।

उद्योगों की तालाबन्दी, मज़दूरों की छँटनी जारी है

पिछले एक साल में आठ औद्योगिक इकाइयाें की आंशिक व पूर्ण बन्दी के चलते 2300 से अधिक मज़दूरों की रोज़ी-रोटी छिन गयी। जिसमें धारूहेड़ा की ओमैक्स के लगभग 250 मज़दूर, रीको ऑटो इण्डस्ट्री के 104 मज़दूर, बिनौला की ऑटोमैक्स के 150 मज़दूर, मानेसर की ओमैक्स के 500 मज़दूर, (इण्ड्युरेंस टेक्नोलॉजिस के 400 मज़दूर, डानूका ऐग्रीटेक, गुड़गाँव की नेपिनो ऑटोस एण्ड इलेक्टाॅनिस के 146 मज़दूर, एसएलआरके मज़दूरों की आंशिक व पूर्ण बन्दी के नाम पर छँटनी व तथाकथित रिटायरमेण्ट कर दी गयी है।