नोएडा-ग्रेटर नोएडा में अँधेरे में रहने को मजबूर लाखों मेहनतकश
राष्ट्रीय राजधानी से सटे शहर में बिना बिजली कनेक्शन के रह रहे लाखों परिवार
रूपेश
जैसे ही आप दिल्ली से नोएडा में प्रवेश करते हैं, चौड़ी सड़कें और आलीशान इमारतें आपका स्वागत करती हैं। यदि आप कालिन्दी कुंज की तरफ़ से नोएडा में प्रवेश करेंगे तो ‘सुपरनोवा’ नाम की गगनचुम्बी इमारत आपका स्वागत करेगी जो शायद राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की सबसे ऊँची इमारत है। अगर रात में आप नोएडा-ग्रेटर नोएडा में प्रवेश करते हैं तो रौशनी की चमचमाहट से चमकते मॉल और इमारतें आपको ‘विकास’ की कहानी बयान करती मिल जाएँगी। इन तमाम देशी-विदेशी कम्पनियों के बड़े-छोटे प्लाण्ट नोएडा-ग्रेटर नोएडा के औद्योगिक क्षेत्रों में चल रही हैं जिनमें लाखों की संख्या में मज़दूर काम करते हैं, जो देश के तमाम इलाक़ों से होते हैं।
नोएडा के ‘विकास’ की कहानी
आज से लगभग पचास साल पहले जब ‘नवीन ओखला औद्योगिक विकास प्राधिकरण (NOIDA)’ की योजना बनी थी तो मुख्य तौर पर औद्योगिक विकास पर ही योजनाकारों का ‘फोकस’ था। जब फैक्ट्रियाँ लगनें लगीं तो उनमें काम करने वाले मज़दूर आस-पास के गाँवों में किराये पर रहने लगे। जैसे-जैसे ‘विकास’ की गति तेज़ होती गयी मज़दूरों की आबादी बढ़ती गयी। अब एक बड़ी आबादी औद्योगिक सेक्टरों के बीच में झुग्गी बनाकर रहने लगी। 1991 में उदारीकरण और निजीकरण की नीतियाँ लागू होने के बाद नोएडा का तेजी से ‘विकास ‘हुआ’। विशेष औद्योगिक क्षेत्र (SEZ) का नोएडा में निर्माण हुआ। औद्योगिक विकास के साथ-साथ नोएडा प्राधिकरण आवासीय सेक्टरों को भी विकसित कर रही थी जिसमें एक बड़ी मध्यवर्गीय आबादी रहने आयी। सन् 2000 के बाद नोएडा-ग्रेटर नोएडा के ‘विकास ‘ के अगले चरण की शुरुआत होती है। यही वह समय था जब औद्योगिक विकास के साथ-साथ आवासीय क्षेत्र के विकास में रियल एस्टेट प्रवेश करता है। नोएडा-ग्रेटर नोएडा एक्सप्रेस वे के दोनों किनारे, नोएडा के अलग-अलग सेक्टरों में, ग्रेटर नोएडा तथा ग्रेटर नोएडा वेस्ट के अलग-अलग हिस्सो में तेजी से गगनचुम्बी इमारतों वाली आवासीय कॉलोनियों का विकास हुआ। देश के सबसे बड़े मॉल तथा सुपर मार्केट का निर्माण हुआ। आज नोएडा-ग्रेटर नोएडा के ‘विकास’ की चमक को देखकर किसी की भी आँखें चौंधिया सकती है।
इस ‘विकास’ की दूसरी तस्वीर
पर आइये अब हम आपको ‘विकास’ की एक दूसरी तस्वीर दिखाते हैं। जब उपरोक्त सारी परिघटनाएँ घटित हो रही थी, उसी के साथ-साथ एक अन्य परिघटना भी घटित हो रही थी। जैसे-जैसे नोएडा-ग्रेटर नोएडा के औद्योगिक क्षेत्रों में कम्पनियों का विस्तार हो रहा था वैसे-वैसे इन इलाक़ों में मेहनतकशों की संख्या भी तेज़ी से बढ रही थी। गगनचुम्बी आवासीय सेक्टरों के निर्माण के बाद मेहनतकशों की एक बड़ी आबादी, इसमें रहने वाली मध्यवर्गीय-उच्च मध्यवर्गीय आबादी के घरेलू कामों में भी लगी।
शहर की ‘विकास’ योजना बनाने वाले योजनाकारों के पास इन लाखों मेहनतकशों के आवास के लिए कोई योजना नहीं थी। अब मैदान में उतरते हैं छोटे कॉलोनाइजर और प्रॉपर्टी डीलर! इन्होने किसानों से ज़मीनें खरीद कर कॉलोनियाँ काटी तथा छोटे-छोटे प्लाट काटकर मज़दूरों को बेच दिया। इसी तरह की दो दर्जन से ज्यादा कॉलोनियाँ हिण्डन नदी के दोनों तरफ बसी हैं। छिजारसी, चोटपुर, बहलोलपुर, पर्थला, खंजरपुर, सोरखा, ककराला इत्यादि नोएडा में तथा कुलेसरा, सुत्याना, लखनावली, जलपुरा आदि ग्रेटर नोएडा में ऐसे गाँव हैं जहाँ कई लाख मेहनतकश परिवार रह रहे हैं। इन कॉलोनियों में किसी प्रकार की कोई बुनियादी सुविधा नहीं है।
बिना बिजली के रहने को मजबूर लाखों लोग
इन बुनियादी समस्याओं में सबसे प्रमुख है बिजली की समस्या। राष्ट्रीय राजधानी से सटे हुए इन इलाक़ों में लाखों परिवार बिना बिजली कनेक्शन के रहने को मजबूर हैं। जी हाँ! आपने बिलकुल सही पढ़ा, लाखों परिवार नोएडा-ग्रेटर नोएडा में बिना बिजली के नरक से भी बदतर ज़िन्दगी जीने को मजबूर हैं। 2024 में देश की राजधानी के सबसे ‘विकसित’ जगह पर कोई ऐसी ज़िन्दगी जी रहा हो यह शायद कई लोगों के लिये मानना भी मुमकिन न हो। लेकिन हक़ीक़त यह है की नोएडा की भयंकर गर्मी में भी ये लोग बिना बिजली के अँधेरे में रहते हैं। देश में इस बार जैसी गर्मी पड़ी वह तो सबको पता ही है। ऐसी गर्मी में दिल्ली-एनसीआर के लोगों के दिमाग में एक सुकून होता है कि रात जब घर जायेंगे तो कम से कम पंखे के नीचे चैन की नींद लेंगे। पर नोएडा-ग्रेटर नोएडा के इन लाखों लोगों को यह भी नसीब नहीं। इतना ही नहीं, बिजली नहीं होने पर पानी की भी एक भयंकर समस्या रहती है। लोगों को मजबूरी में रोज़ के इस्तेमाल के लिये भी पानी कई बार ख़रीद कर लेना पड़ता है। यही कारण है कि कई बार भयंकर गर्मी से लोगों की जान तक चली जाती है।
बिजली की समस्या को लेकर लोगों का संघर्ष
ऐसा नहीं है कि इस समस्या का संज्ञान प्रशासन, सरकार या बिजली विभाग को नहीं है। यहाँ रहने वाले लोग स्थानीय प्रशासन, बिजली विभाग, ‘जनप्रतिनिधियों’ के पास बरसों से दौड़-भाग करके थक चुके हैं। आश्चर्य की बात है कि बगल में ही संसद भवन है मगर आजतक वहाँ इतनी बड़ी आबादी की समस्या पर कोई चर्चा नहीं हुई। अभी इसी नोएडा-ग्रेटर नोएडा में स्थित किसी पूँजीपति के उपर कोई संकट आ जाए तो स्थानीय प्रशासन से लेकर राजधानी तक के लोग परेशान हो जाएँगे।
पिछले साल इस समस्या को लेकर लोगों का ग़ुस्सा स्वतःस्फूर्त तरीक़े से सड़कों पर फूट पड़ा था जिसके बाद कुछ लोगों ने इसमें आगे बढ़कर अगुवाई करने की कोशिश की थी। लेकिन एक सही दिशा की कमी और कुछ लोगों के अवसरवाद के कारण वह किसी नतीजे पर नही गया। बीते 25 जून को फ़िर से लोगों का ग़ुस्सा फूटा। कुलेसरा तथा सुत्याना के लोगों ने मिलकर गौतम बुद्ध नगर के जिलाधिकारी के कार्यालय पर बिजली कनेक्शन के लिए जबरदस्त प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शन की अगुवाई भी तब वही कर रहे थे, लेकिन वो इसे सही तरीक़े से आयोजित करने में असफल रहे जिसकी वजह से पूरे प्रदर्शन के दौरान अफरातफरी का माहौल बना रहा। जिलाधिकारी तथा बिजली विभाग के अधिकारी ने कुछ मौखिक आश्वासन दिये पर पूरे प्रदर्शन के दौरान लोगों का यही कहना था कि राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (NGT) में एक केस चल रहा है जिसकी वजह से हिण्डन किनारे की कॉलोनियों में बिजली नहीं दी जा रही। अर्थात ऐसे मौखिक आश्वासन से कुछ नही हो सकता।
प्रदर्शन के समापन के बाद से अगुवाई करने वाली टीम के कुछ लोग NGT में जाने की तैयारी में लग गये। लोगों से पिटीशन पर साइन करवाने की शुरुआत हो गयी मगर काग़जी तैयारी में पुरानी टीम के अवसरवादी लोगों ने सहयोग करना बन्द कर दिया। बचे हुए लोगों ने एक पर्चा निकाला और जनता के बीच अपनी बात लेकर गये तथा 28 जुलाई को एक विशाल जनसभा का कुलेसरा में आयोजन किया गया। इस जनसभा में ‘एकता संघर्ष समिति’ का गठन करके बिजली कनेक्शन की लड़ाई को सही तरीक़े से आगे बढाने का संकल्प लोगों ने लिया। तब से अलग-अलग कॉलोनियों में लगातार मीटिंग की जा रही है। वॉलंटियर की टीम बनायी जा रही है। 7अगस्त को नयी टीम ने NGT में पिटीशन दायर कर दिया। अभी उतार-चढ़ाव भरा एक लम्बा सफर तय करना है। उम्मीद है कि लोग एकजुट होकर इस लड़ाई को अंजाम तक पहुँचाएँगे।
मूल समस्या क्या है और आख़िर रास्ता क्या है?
अभी तक इन कॉलोनियों के लोग स्थानीय दलाल किस्म के लोगों के नेतृत्व में स्थानीय प्रशासन तथा ‘जनप्रतिनिधियों’ की परिक्रमा करते रहे थे। लोगों ने कभी एक मज़बूत इलाक़़ाई संगठन बनाकर इस समस्या के समाधान का प्रयास नहीं किया था। अगर लोग सही तरीक़े से संगठित होकर अपने अधिकार के लिए आवाज़ उठायेंगे तो बिजली जैसी बुनियादी सुविधा देने से कोई इन्कार नहीं कर सकता। 2022 में पंजाब उच्च न्यायालय ने भी यह फ़ैसला सुनाया था कि बिजली एक बुनियादी ज़रूरत है और संविधान के अनुच्छेद 21 में दिये जीवन के अधिकार का अभिन्न अंग है। आज हिण्डन नदी के किनारे बसी दो दर्जन से ज्यादा कॉलोनियों के निवासियों के सामने एक ही रास्ता है– संघर्ष का रास्ता। बिना सही तरीक़े से संगठित हुए कोई भी संघर्ष नहीं जीता जा सकता है। यह आज हो भी रहा है, लेकिन हमें इसके कारणों को भी समझना होगा कि आख़िर क्यों प्रशासन और सरकार लाखों लोगों की बुनियादी समस्याओं पर ज़रा भी ध्यान नहीं देती?
इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि यहाँ रहने वाले ज़्यादातर लोग मेहनत-मज़दूरी करने वाले लोग हैं। और आज हम जिस व्यवस्था में जी रहे हैं उसमें मज़दूरों को महज़ काम करने की मशीन समझा जाता है तथा उन्हें कीड़े-मकोड़ों के तरह जीने के लिये छोड़ दिया जाता है। बात सिर्फ़ बिजली समस्या की नहीं है। आज उन तमाम बुनियादी समस्याओं के लिये भी हमें लड़ना और संगठित होना होगा जो हमसे छीनी जा रही हैं। बिजली समस्या की इस लड़ाई को आगे बढ़ाकर इसे आम मज़दूरों की ज़िन्दगी से भी जोड़ना होगा, उन समस्याओं को भी उठाना होगा और लोगों को एकजुट और संगठित करना होगा तभी जाकर असल मायने में हर तरह की दिक़्क़तों का निवारण किया जा सकता है।
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