भारतीय जनता के जीवन, संघर्ष और स्वप्नों के सच्चे चितेरे प्रेमचन्द के जन्मदिवस (31 जुलाई) के अवसर पर
सम्पत्ति विष की गाँठ
जब तक सम्पत्ति मानव-समाज के संगठन का आधार है, संसार में अन्तरराष्ट्रीयता का प्रादुर्भाव नहीं हो सकता। राष्ट्रों-राष्ट्रों की, भाई-भाई की, स्त्री-पुरुष की लड़ाई का कारण यही सम्पत्ति है। संसार में जितना अन्याय और अनाचार है, जितना द्वेष और मालिन्य है, जितनी मूर्खता और अज्ञानता है, उसका मूल रहस्य यही विष की गाँठ है। जब तक सम्पत्ति पर व्यक्तिगत अधिकार रहेगा, तब तक मानव-समाज का उद्धार नहीं हो सकता। मज़दूरों के काम का समय घटाइये, बेकारों को गुज़ारा दीजिये, ज़मींदारों और पूँजीपतियों के अधिकारों को घटाइये, मज़दूरों-किसानों के स्वत्वों को बढ़ाइये, सिक्के का मूल्य घटाइये, इस तरह के चाहे जितने सुधार आप करें, लेकिन यह जीर्ण दीवार इस तरह के टीपटाप से नहीं खड़ी रह सकती। इसे नये सिरे से गिराकर उठाना होगा।—
— संसार आदिकाल से लक्ष्मी की पूजा करता चला आता है।— लेकिन संसार का जितना अकल्याण लक्ष्मी ने किया है, उतना शैतान ने नहीं किया। यह देवी नहीं डायन है।
सम्पत्ति ने मनुष्य को क्रीतदास बना लिया है। उसकी सारी मानसिक आत्मिक और दैहिक शक्ति केवल सम्पत्ति के संचय में बीत जाती है। मरते दम तक भी हमें यही हसरत रहती है कि हाय, इस सम्पत्ति का क्या हाल होगा। हम सम्पत्ति के लिए जीते हैं, उसी के लिए मरते हैं। हम विद्वान बनते हैं सम्पत्ति के लिए, गेरुए वस्त्र धारण करते हैं सम्पत्ति के लिए। घी में आलू मिलाकर हम क्यों बेचते हैं? दूध में पानी क्यों मिलाते हैं? भाँति-भाँति के वैज्ञानिक हिंसा-यन्त्र क्यों बनाते हैं? वेश्याएँ क्यों बनती हैं, और डाके क्यों पड़ते हैं? इसका एकमात्र कारण सम्पत्ति है। जब तक सम्पत्तिहीन समाज का संगठन नहीं होगा, जब तक सम्पत्ति व्यक्तिवाद का अन्त न होगा, संसार को शान्ति न मिलेगी।
– प्रेमचन्द (‘राष्ट्रीयता और अन्तरराष्ट्रीयता’ लेख से)
“…इस तरह ज़बरदस्ती करने के लिए जो क़ानून चाहे बना लो। यहाँ कोई सरकार का हाथ पकड़ने वाला तो है ही नहीं। उसके सलाहकार भी तो सेठ-महाजन ही हैं। …ये सभी नियम पूँजीपतियों के लाभ के लिए बनाये गये हैं और पूँजीपतियों को ही यह निश्चय करने का अधिकार दिया गया है कि उन नियमों का कहाँ व्यवहार करें। कुत्ते को खाल की रखवाली सौंपी गयी है।”
– प्रेमचन्द (‘रंगभूमि’ उपन्यास का पात्र सूरदास)