पूँजीवाद में मंदी और छँटनी मज़दूरों की नियति है!
पूँजी की अमानवीय सत्ता को नेस्तनाबूद करने के लिए मज़दूर इंक़लाब का परचम थामो!
पिछले कुछ समय से नोएडा-गाज़ियाबाद के औद्योगिक इलाकों में बड़े पैमाने पर मज़दूरों की छँटनी हो रही है। एेसे लोगों की संख्या बहुत तेजी से बढ़ती जा रही है जिनको कारखानों में काम करने का अनुभव होने के बाद भी कोई काम नहीं मिल रहा है।
बिगुल मज़दूर दस्ता के कार्यकर्ताओं ने हाल ही में नोएडा-गाज़ियाबाद के मज़दूरों के बीच एक पर्चा बाँटा जिसमें मंदी और छँटनी की परिघटनाओं की मूल वजह बतायी गयी और उनको मज़दूर वर्ग के एेतिहासिक मिशन – पूँजीवाद के ख़ात्मा एवं समाजवाद का निर्माण – से जुड़ने का आह्वान किया गया।
मज़दूर साथियो,
आजकल आप देख रहे हैं कि कम्पनी-कारखानों में काम की भारी कमी है। बायर्स के लिए ऑर्डर मिलना क़रीब-क़रीब बंद है। बड़े पैमाने पर मज़दूरों को काम से हाथ धोना पड़ा है, छँटनी का बोलबाला है। जिन कारखानों में काम है भी वहाँ ओवरटाइम लगना लगभग बंद है और कम्पनियाँ शाम को जल्दी बन्द हो रही हैं। पुराने अनुभवी मज़दूर जानते हैं कि समय-समय पर औद्योगिक इलाके इसी तरह मंदी के भँवर में डूबते-उतरते रहते हैं। लेकिन पढ़े-लिखे मज़दूर तक यह नहीं जानते कि उत्पादन की पूँजीवादी व्यवस्था स्वयं ही इन संकटों को जन्म देती है।
मंदी के संकट से उबरने के लिए पूँजीपति ओवरटाइम में कटौती करते हैं, मज़दूरियों पर खर्च कम करने के लिए या तो मज़दूरियाँ घटाते हैं या फिर मज़दूरों को काम से निकालकर बेरोज़गारों की कतार में में खड़ा होने पर मजबूर करते हैं। इस उठा-पटक का अनिवार्य परिणाम मज़दूरों की बदहाली के रूप में आता है। इसके कारण कई बार छोटे कारखानेदार भी तबाह होते हैं जिसका सीधा फायदा बड़े कारखानेदारों को होता है।
आज भारत समेत दुनिया के सभी बड़े पूँजीवादी देश आर्थिक मंदी की चपेट में हैं। मंदी का अर्थ है माल में बिक्री के मुकाबले उत्पादित माल का स्टॉक बहुत अधिक बढ़ जाना। पूँजीवादी शोषण की चक्की में पिसने वाले करोड़ों मज़दूर-मेहनतकशों की मेहनत से पैदा होने वाली सम्पत्ति का बड़ा हिस्सा पूँजी के स्वामियों की तिजोरियों में बन्द हो जाता है। इसके कारण बहुसंख्य मेहनतकश आबादी गरीबी और कंगाली के दलदल में धँसती जाती है। इस तरह पूँजीपतियों का माल बिकना बन्द हो जाता है और उत्पादन का चक्र टूटने लगता है। महामंदियों के दौर में लाखों की संख्या में उद्योग बंद हो जाते हैं और करोड़ों मज़दूर भूखा मरने के लिए सड़कों पर धकेल दिये जाते हैं।
इस तरह उत्पादन की पूँजीवादी प्रणाली समाज की बुनियाद को तबाही के गर्त में धकेलने का काम करती है। ऐसे में मज़दूर इंक़लाब के ज़रिये पूँजीवादी व्यवस्था को ध्वस्त करके एक समाजवादी व्यवस्था का निर्माण करके ही मज़दूर वर्ग अपने हक़ों की हिफ़ाजत कर सकता है।
निश्चित रूप से यह एक लंबा काम है, लेकिन इसके अलावा मज़दूरों की आने वाली पीढ़ियों के बेहतर भविष्य का और कोई रास्ता नहीं है। इसलिए इसकी तैयारियों में आज से ही जुट जाना होगा। मज़दूरों को अपनी क्रान्तिकारी-इंक़लाबी पार्टी खड़ी करने के बारे में गम्भीरता से सोचना होगा।
संग्रामी अभिवादन सहित,
बिगुल मज़दूर दस्ता
बजा बिगुल मेहनतकश जाग, चिंगारी से लगेगी आग।
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मज़दूरों के महान नेता लेनिन