बढ़ती बेरोज़गारी के शिकार छात्रों-युवाओं पर टूटता फ़ासीवादी कहर
बिहार और उत्तराखण्ड में छात्रों पर बरसी लाठियाँ

ध्रुव

मौजूदा फ़ासीवादी निज़ाम में छात्रों-युवाओं पर हमलों के हर दिन नये रिकॉर्ड क़ायम हो रहे हैं। पिछले दिनों इलाहाबाद में चल रहे यूपीपीसीएस/आरओ-एआरओ परीक्षार्थियों के आन्दोलन और पुलिस के दमन का मामला अभी ठण्डा भी नहीं हुआ था कि उसके बाद बिहार और उत्तराखण्ड में छात्रों के दमन का मामला सामने आ गया।

अभी कुछ ही दिनों पहले छात्र बिहार लोक सेवा आयोग की परीक्षा को दो पाली में कराये जाने और नॉर्मलाइजेशन की प्रक्रिया को लागू करने के ख़िलाफ़ सड़कों पर उतरे थे। हालाँकि बिहार लोक सेवा आयोग की तरफ़ से ऐसा कोई आधिकारिक नोटिस नहीं जारी किया गया था लेकिन सोशल मीडिया के माध्यम से छात्रों के बीच यह बात पहुँची कि बिहार लोक सेवा आयोग की परीक्षा इस बार दो पाली में करायी जायेगी। इसके बाद से ही छात्रों की आवाज़ इसके ख़िलाफ़ उठने लगी। छात्रों का कहना था कि सरकार गुप्त रूप से नॉर्मलाइजेशन की प्रक्रिया को लागू करना चाहती है जिस वजह से परीक्षा का मूल्यांकन न्यायपूर्ण नहीं हो पायेगा। क्योंकि इस प्रक्रिया में इस बात की कोई गारण्टी नहीं होती की एक छात्र ने जितने अंक का प्रश्न किया है उसे उतना ही अंक मिलेगा। बड़ी संख्या में छात्र इसके ख़िलाफ़ सड़क पर उतरे और उन्होंने सरकार से माँग की कि बीपीएससी की परीक्षा एक पाली में ही करायी जाये। लेकिन शुरू में सरकार और प्रशासन ने छात्रों की माँगों को मानने के बजाय उनके प्रदर्शन को कुचलने का काम किया। छात्रों पर लाठी और डण्डे बरसाए गये। इस दौरान बहुत से छात्र-युवा गम्भीर रूप से घायल हुए। लेकिन इतने दमन के बावजूद छात्र सड़क पर डटे रहे और अन्ततः बिहार लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष रवि. एस. परमार को 6 दिसम्बर को बयान जारी करना पड़ा कि बीपीएससी की परीक्षा में कोई नॉर्मलाइजेशन की प्रक्रिया नहीं अपनायी जायेगी।

इसके कुछ दिनों पहले ही यूपीपीसीएस और आरओ-एआरओ की परीक्षा में नॉर्मलाइजेशन के ख़िलाफ़ इलाहाबाद में लोक सेवा आयोग के सामने हजारों छात्रों ने विरोध प्रदर्शन किया था। वहाँ भी छात्रों के आन्दोलन को कुचलने का भरपूर प्रयास किया गया लेकिन छात्रों की एकजुटता ने आंशिक जीत हासिल की। वास्तव में आये दिन इस तरह की क़वायदों के ज़रिये भ्रष्टाचार के लिए दरवाज़े खोलने और पूरे परीक्षा तन्त्र को चौपट करने के नये-नये रास्ते ईज़ाद किये जा रहे हैं। नॉर्मलाइजेशन की प्रक्रिया लागू होने से सीटों को बेचने और धाँधली करने का सबसे सुरक्षित ज़रिया बन जाता है। इसीलिए पब्लिक सर्विस कमीशन जैसी परीक्षाओं में भी नॉर्मलाइजेशन की प्रक्रिया को लागू करने की कोशिश की जा रही है। दरअसल आज देश भर में ही बेरोज़गारी का एक भयानक संकट मौजूद है। फ़ासीवादी मोदी सरकार आज तमाम सरकारी विभागों को अपने आका पूँजीपतियों को औने-पौने दामों पर बेचने का काम कर रही है। तमाम विभागों में सीटों की संख्या लगातार घटायी जा रही है। परमानेंट काम की गारण्टी लगातार ख़त्म होती जा रही है। बेरोज़गारी के इस भयानक संकट को हम हाल के ही एक उदाहरण से भी समझ सकते हैं।

इसी तरह उत्तराखण्ड में प्रादेशिक सेना के मात्र 113 पदों की भर्ती के लिए लगभग 20,000 छात्र रोडवेज की बसों किसी तरह लदकर उत्तर प्रदेश से पहुँचे थे। जिसके वीडियो भी काफ़ी वायरल हुए। उत्तराखण्ड की पुष्कर सिंह धामी की सरकार और पुलिस प्रशासन की बदइन्तज़ामी की वजह से काफी बुरी स्थिति पैदा हुईं और हालात को काबू करने के लिए पुलिस ने छात्रों पर ही लाठी-डण्डे बरसाने शुरू कर दिए। इसमें कई छात्र गम्भीर रूप से घायल भी हुए थे।

अन्तरराष्ट्रीय मज़दूर संगठन की रिपोर्ट बताती है कि भारत में 83 प्रतिशत युवा आबादी बेरोज़गार है। जिसकी वजह से जिसके पास पैसा, पावर और पहुँच है वो बड़े-बड़े शिक्षा माफियाओं, नेता मन्त्री और अधिकारियों के साथ साठगाँठ करके परीक्षाओं में धाँधली करते हैं। जिसका नतीजा है कि पिछले 7 सालों में ही 80 से ज़्यादा परीक्षाओं में पेपर लीक की घटनाएँ सामने आ चुकी है। इससे सीधे तौर पर देश के एक करोड़ 80 लाख छात्र-युवा प्रभावित हुए हैं। फ़ासीवादी भाजपा सरकार छात्रों-युवाओं के लिए काल साबित हुई है। बेरोज़गारी के इस तूफ़ान ने करोड़ों छात्रों के भविष्य को अन्धकारमय बना दिया है। देश में अपराधों का रिकार्ड रखने वाली संस्था एनसीआरबी के आँकड़ों को देखें तो पता चला चलता है कि केवल वर्ष 2022 में 1 लाख 12 हज़ार छात्रों ने आत्महत्या की है। एक तरफ़ बेरोज़गारी जब विकराल रूप लेती जा रही है तो वहीं पर भर्तियों में भी तमाम तरीक़े के नये नियम लागू करके परिक्षाओं में चयन की प्रक्रिया को बेहद जटिल और मुश्किल बनाया जा रहा है। इसका ताज़ा उदाहरण इसी साल सितम्बर में झारखण्ड में हुई उत्पाद सिपाही भर्ती परीक्षा का है जिसमें दौड़ के नियमों में बदलाव करके 60 मिनट में 10 किलोमीटर दौड़ने का प्रावधान किया गया जबकि ये पहले 6 मिनट में 1600 मीटर था। इसका नतीज़ा ये हुआ कि दौड़ने के दौरान ही 12 छात्रों की मौत हो गयी। साफ़ है कि फ़ासीवादी मोदी सरकार छात्रों-युवाओं के हित में काम करने वाली नहीं बल्कि अपने आका पूँजीपतियों की तिजोरी भरने वाली सरकार है। देश में पैसा-संसाधन होने बावजूद उसको रोज़गार पैदा करने के लिए न इस्तेमाल कर धन्नासेठों की जेबों को भरने का काम करती है। चाहे छात्र-युवा हों या मज़दूर-मेहनकतश, हर आबादी पर फ़ासीवादी भाजपा सरकार भयानक कहर ढ़ाने का काम कर रही है। इसके ख़िलाफ़ देश भर में छात्रों-युवाओं के गुस्से की अभिव्यक्ति सड़कों पर भी देखने को मिल रही है। आज ज़रूरत है कि इन आन्दोलनों को एक संगठित रूप दिया जाये और सबको पक्के रोज़गार के हक के लिए देश भर में बड़ा जनआन्दोलन खड़ा किया जाये। साथ ही इस सच्चाई को भी लोगों तक लेकर चला जाये कि लूट और मुनाफ़ पर टिकी मौजूदा पूँजीवादी व्यवस्था के ख़िलाफ़ लम्बी लड़ाई ही हमें इन समस्याओं से सही मायने में निज़ात दिला सकती है।

 

मज़दूर बिगुल, दिसम्‍बर 2024 – जनवरी 2025


 

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