समाज सेवा के नाम पर बच्चियों की तस्करी का मामला
आर.एस.एस. का भ्रष्ट, साम्प्रदायिक, स्त्री विरोधी, जनद्रोही चरित्र हुआ और नंगा

रणबीर

जून 2015 में पटियाला (पंजाब) स्थित ‘माता गुजरी कन्या छात्रावास’ में 11 और लड़कियों को लाया गया। इन लड़कियों के साथ असम से आयी अन्य 20 लड़कियों को गुजरात के हलवाद स्थित ‘सरस्वती शिशु मन्दिर’ संस्थान में भेज दिया गया। ‘सरस्वती शिशु मन्दिर’ सन् 2002 में नरेन्द्र मोदी (उस समय मुख्यमंत्री, गुजरात) द्वारा उदघाटित किया गया था। गुजरात सरकार द्वारा दिये गये प्रमाणपत्र में इसे ‘राज्य का गौरव’ कहा गया है। पर्दे के पीछे आर.एस.एस. द्वारा संचालित इन संस्थानों का दावा था कि असम से लायी गयी ये तीन से ग्यारह वर्ष की बच्चियाँ अनाथ हैं या बेहद ग़रीब परिवारों से हैं। दावा किया गया कि यहाँ इनका सही ढंग से पालन-पोषण किया जा रहा है और उन्हें पढ़ाया-लिखाया जा रहा है। लेकिन यह सब कहने को ही समाज सेवा है। पिछले दिनों ‘आउटलुक’ पत्रिका व ‘कोबरापोस्ट’ वेबसाइट में आयी, गहरी जाँच-पड़ताल आधारित रिपोर्टों में आर.एस.एस. व इसकी विद्या भारती, सेवा भारती, विश्व हिन्दू परिषद जैसे उप-संगठनों की नाजायज़, ग़ैरजनवादी, साम्प्रदायिक व ग़ैरक़ानूनी कार्रवाइयों का पर्दाफ़ाश हुआ है। इन रिपोर्टों से साफ होता है कि आर.एस.एस. अपने साम्प्रदायिक फासीवादी नापाक इरादों के लिए बड़े स्तर पर बच्चियों की तस्करी कर रहा है। अधिक से अधिक हिन्‍दुत्ववादी स्त्री प्रचारक व कार्यकर्ता तैयार करने के लिए असम से छोटी-छोटी आदिवासी बच्चियों को समाज सेवा के नाम पर आर.एस.एस. संचालित प्रशिक्षिण शिविरों में भेजा रहा है। इन रिपोर्टों से जो सच सामने आया है वह तो बस एक झलक ही है। दशकों से जिस बड़े स्तर पर आर.एस.एस. ऐसी कार्रवाइयों को अंजाम दे रहा है उसका तो अंदाज़ा तक नहीं लगाया जा सकता।

फोटो साभार - https://thelogicalindian.com

फोटो साभार – https://thelogicalindian.com

सबसे पहली बात तो यह है कि जैसा कि पंजाब व गुजरात में बताया गया है कि असम से जून 2015 में लायी गयी लड़कियाँ अनाथ हैं, सरासर झूठ है। ये लड़कि‍याँ अनाथ नहीं हैं। ये लड़कियाँ असम के कोकराझार, बोंगाईगांव, गोपालपारा, व चिरांग क्षेत्रों से लायी गयी हैं। विद्या भारती की प्रचारिकाओं द्वारा लड़कियों के माता-पिता को कहा गया कि गुजरात व पंजाब में उनकी लड़कियों का बढ़िया ढंग से पालन-पोषण किया जायेगा। अच्छी पढ़ाई-लिखाई करवा कर ज़ि‍न्दगी ”बना दी जायेगी”। माता-पिता से वादा किया गया कि वे उनकी बच्चियों से फोन पर अकसर बात कर सकेंगे। बच्चियों को साल में कई बार घर भेजने का भरोसा भी दिया गया। इन बच्चियों का पालन-पोषण किस तरह से किया जा रहा है और किस तरह की पढ़ाई करवायी जा रही है इसके बारे में तो आगे बात होगी। दो-तीन बच्चियों (जो खाते-पीते घरों से हैं) को छोड़कर बाकी साल भर से अपने माता-पिता से बात नहीं कर पायी हैं। साल भर से माता-पिता अपनी बच्चियों को मिलने व बात करने के लिए तरस रहे हैं लेकिन उनकी कहीं सुनवाई नहीं हो रही। विद्या भारती वाले अब माता-पिता को कह रहे हैं कि वे अपनी बच्चियों को 4-5 साल बाद ही मिल सकते हैं। माता-पिता स्वाल कर रहे हैं कि यह कैसी शिक्षा है, यह कैसी समाज सेवा है जिसके लिए बच्चों को उनके माता-पिता से मिलने और यहाँ तक कि बात करने से भी रोका जा रहा है। विद्या भारती वालों ने बहाने से माता-पिता से उनकी बच्चियों के सारे दस्तावेज़ व तस्वीरें भी अपने कब्जे़ में ले लिये हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने सन् 2005 में अपने एक फ़ैसले में बच्चों की सुरक्षा सम्बन्धी हि‍दायतें जारी की थीं। उन हिदायतों के मुताबिक असम व मणिपुर के बच्चे शिक्षा या अन्य किसी मकसद के लिए अन्य राज्यों में नहीं ले जाये जा सकते। विद्या भारती, सेवा भारती, राष्ट्रीय सेविका समिति, विश्व हिन्दू परिषद के जरिए आर.एस.एस. ने बच्चियों को असम से बाहर ले जाकर सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का उल्‍लंघन किया है।

इसके साथ ही बाल न्याय (बच्चों की देखभाल व सुरक्षा) क़ानून का भी घोर उल्‍लंघन किया गया है। बाल न्याय क़ानून के तहत राज्य सरकारों द्वारा बाल कल्याण समितियों को मैट्रोपोलिटन मैजिस्ट्रेट स्तर की ताक़तें हासिल हैं। के समितियाँ गिरफ़्तारियों के आदेश दे सकती हैं, बच्चों के कल्याण व सुरक्षा के लिए विभिन्न क़दम उठा सकती हैं। ये समितियाँ विभिन्न जिला स्तर की समितियों से संपर्क कर सकती हैं। बच्चों के घर के नज़दीक बाल कल्याण समितियों को केस व बच्चे ज़रूरी कार्रवाई के लिए सौंप सकती हैं। पुलि‍स, सरकारी मुलाज़ि‍म या अन्य कोई भी नागरिक बच्चों को इन समितियों के सामने पेश कर सकते हैं या कोई शिकायत दर्ज करा सकते हैं। समिति के सामने बच्चे पेश होने के चार महीने के भीतर समिति को केस पर फ़ैसला सुनाना होता है। अगर कोई संस्थान बच्चों को पढ़ाई या अन्य किसी मकसद से राज्य से बाहर लेकर जाता है तो इससे पहले मूल बाल कल्याण समिति से एन.ओ.सी. (अनापत्ति प्रमाणपत्र) लेना होता है। इन 31 लड़कियों के मामले में कोई एन.ओ.सी. नहीं लिया गया। असम की विभिन्न बाल कल्याण समितियों व अन्य विभागों के आदेशों का भी पालन नहीं किया गया।

16 जून 2015 को असम के बाल अधिकार सुरक्षा आयोग द्वारा असम पुलि‍स व भारत के बाल अधिकार आयोग व अन्य को लिखे एक पत्र में बच्चियों को सारे नियम-क़ानूनों की धज्जियाँ उड़ाते हुए गुजरात से बाहर ले जाये जाने को ‘बाल तस्करी’ व बाल न्याय क़ानून के ख़ि‍लाफ़ करार दिया गया। पुलिस को आदेश दिया गया कि सभी 31 लड़कियों को उनके माता-पिता के पास पहुँचाया जाये। लेकिन सरकारी मशीनरी के एक हिस्से की कोशिशों के बावजूद आर.एस.एस. व इसके उप-संगठनों भाजपा, विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल आदि के सरकारी मशीनरी पर कब्जे़, असर व गुण्डागर्दी के कारण एक साल बाद भी बच्चियाँ अपने माता-पिता के पास नहीं पहुँच पायी हैं।

9 जून 2015 को राष्ट्रीय सेविका समिति की प्रचारक संध्या असम की इन तीन से ग्यारह साल की उम्र की आदिवासी लड़कियों को लेकर ट्रेन के ज़रिए गुजरात व पंजाब के लिए रवाना हुई। दिल्ली पहुँचते ही संध्या को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। संध्या और बच्चियों को पहाड़गंज पुलि‍स स्टेशन ले जाया गया। आर.एस.एस. के दो सौ से अधिक सदस्य इकट्ठे होकर पुलिस पर संध्या को छोड़ने व बच्चियों को उनके साथ भेजने के लिए दबाव बनाने लगे। राजनीतिक दबाव और बाल कल्याण समिति, सुरेन्द्रनगर (गुजरात) के दबाव के कारण संध्या को छोड़ दिया गया और बच्चियों को उसके साथ भेज दिया गया। यह मामला अखबारों की सुर्खियाँ बनने से पहले ही दबा दिया गया। 18 जून, 2015 को कुमुद कलिता, आई.ए.एस., सदस्य सचिव, राज्य बाल सुरक्षा समाज, असम ने बाल कल्याण समिति कोकराझर व गोसाईगाँव को 11 जून को दिल्ली में घटी इस घटना के बारे में जानकारी दी। इसमें उन्होंने बाल कल्याण समिति, सुरेन्द्रनगर (गुजरात) के रवेयै पर स्वाल उठाते हुए कहा कि बच्चियों को उनके घरों से सम्बन्धित बाल कल्याण समितियों को सूचित किये बिना व ज़रूरी जानकारी जुटाये बिना उसने बच्चियों को आर.एस.एस. के कार्यकर्ताओं के साथ क्यों जाने दिया। विभिन्न बाल कल्याण समितियों को कहा गया कि बच्चियों को असम में वापस उनके घर पहुँचाया जाये। 22 जून 2015 को कोकराझार (असम) की बाल कल्याण समिति ने बाल कल्याण समिति, सुरेन्द्रनगर (गुजरात) से बच्चियों को वापस असम भेजने के लिए कहा। भाजपा शासित गुजरात की इस समिति ने कोई जवाब देना तक ज़रूरी नहीं समझा।

चाइल्ड लाइन, पटियाला को जब असम से पटियाला में हुई बच्चियों की तस्करी के बारे में सूचना मिली तो जाँच-पड़ताल के लिए वहाँ से कुछ अफसर माता गुजरी कन्या छात्रावास, पटियाला पहुँचे। जाँच-पड़ताल के दौरान पता चला कि यह संस्थान ग़ैरक़ानूनी है और लड़कियाँ काफी बुरी हालत में रह रही हैं। जाँच-पड़ताल के दौरान टीम को आर.एस.एस. के सदस्यों की गुण्डागर्दी का सामना करना पड़ा। उन्हें डराया-धमकाया गया और उनपर हमला किया गया। इसी तरह बाल कल्याण समिति का एक अफसर जब 31 बच्चियों के माता-पिता को जाँच-पड़ताल के लिए मिलने गया तो आर.एस.एस. के सदस्यों ने उस पर हमला कर दिया। अफसर की शिकायत पर एफ.आई.आर. भी दर्ज हुई। बाल कल्याण समिति, कोकराझार ने उच्च न्यायलय, असम, सी.जे.एम. व जिला सेशन जल, कोकराझार को आर.एस.एस. के ख़ि‍लाफ़ शिकायतें भी भेजीं। असम की बाल कल्याण समितियों द्वारा आर.एस.एस. की कार्रवाई को ‘बाल तस्करी’ करार देने व बच्चियों को वापिस भेजने के आदेशों के बाद सम्बन्धित संस्थाओं ने बच्चियों के परिजनों से हलफ़नामे ले लिये। ये हलफ़नामे पूरी तरह ग़ैरक़ानूनी व नाजायज़ थे। सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के मुताबिक असम व मणिपुर से बच्चों को बार नहीं भेजा जा सकता। इसके लिए बच्चियों के माता-पिता से सहमति लेने का कोई मतलब नहीं बनता। दूसरे, ये हलफ़नामे बच्चियों को असम से ले जाने के महीनों बाद बनाये गये थे। इन हलफ़नामों में लिखा गया है कि ये परिवार बाढ़ पीड़ित हैं और बहुत ग़रीब हैं और अपनी बच्चियों का पालन-पोषण नहीं कर सकते। सभी हलफ़नामों में नाम-पते को छोड़कर बाकी सारे शब्द एक ही हैं और ये अंग्रेज़ी में बनाये गये हैं जिससे ये हलफ़नामे परिजनों के समझ में नहीं आये। इनमें से कोई भी परिवार बाढ़ पीड़ित नहीं है। इनमें से कई परिवार ऐसे ग़रीब भी नहीं हैं कि बच्चियों का पालन-पोषण न कर सकें। साफ पता लगता है कि ये हलफ़नामे परिजनों को धोखे में रखकर बनाये गये हैं।

हमने उपर देखा है कि किस भ्रष्ट ढंग से असम की इन नन्हीं बच्चियों को उनके माता-पिता से दूर कर दिया गया है। इसे बच्चियों की तस्करी के सिवा और कुछ नहीं कहा जा सकता। पंजाब व गुजरात में हुई 31 बच्चियों की तस्करी की जाँच-पड़ताल ने एक बार फिर, खुद को ‘‘देशभक्त’’, ‘‘ईमानदार’’, ‘‘समाज सेवक’’, कहने वाले हिन्दुत्ववादी कट्टरपंथी आर.एस.एस. और भाजपा, विद्या भारती, विश्व हिन्दू परिषद, सेवा भारती जैसे इसके संगठनों का भ्रष्ट, जनद्रोही चेहरा जगज़ाहिर कर दिया है। हमने देखा है कि किस तरह सरकारी मशीनरी ने इनकी मदद की है। पंजाब में अकाली भाजपा सरकार है और गुजरात में भाजपा की सरकार है। सरकार पर काबिज़ होने के चलते इन्हें अपने घटिया मंसूबे पूरे करने के और खुले मौके मिल रहे हैं और ये जनता के जनवादी अधिकारों का मज़ाक बना रहे हैं। अब असम में भी भाजपा की सरकार आ गयी है। आर.एस.एस. को अब वहाँ भी बच्चियों की तस्करी जैसी कार्रवाइयों को अंजाम देने की छूट मिल गयी है।

‘आउटलुक’ में रिपोर्ट छपने के बाद आर.एस.एस. ने पत्रकार नेहा दीक्षित (जिन्होंने यह खोजी रिपोर्ट तैयार की), पत्रिका के सम्पादक कृष्णा प्रसाद व प्रकाशक के ख़ि‍लाफ़ एफ.आई.आर. दर्ज करवा दी। बाल तस्करी के दोषी आर.एस.एस. के व्यक्तियों के ख़ि‍लाफ़ कार्रवाई करने की जगह पुलिस ने नेहा दीक्षित, सम्पादक व प्रकाशक के ख़ि‍लाफ़ ही कार्रवाई कर दी। आउटलुक पर आर.एस.एस. के दबाव के कारण सम्पादक कृष्णा प्रसाद को पद से ही हटा दिया गया।

लड़कियों की तस्करी के पीछे आर.एस.एस. के ख़तरनाक साम्प्रदायिक फासीवादी इरादे हैं। ऐसी लड़कियों को कट्टरवादी हिन्दू बनाया जाता है, फिर उन्हें अपने समुदाय में प्रचार के लिए भेजा जाता है। इन बच्चियों की ज़ि‍न्‍दगी बनाने में संघियों की कोई दिलचस्पी नहीं है। वे उन्हें अपनी राजनीति के लिए इस्तेमाल करना चाहते हैं। ये घिनौना खेल आर.एस.एस. देश के कई इलाक़ों में काफी समय से खेल रहा है। लेकिन इस तरह इसका पर्दाफ़ाश पहली बार हुआ है। ये बच्चियाँ बोडो तबके से सम्बन्धित हैं। बोडो लोग हिन्दू धर्म का हिस्सा नहीं हैं। लेकिन आर.एस.एस. अपने साम्प्रदायिक इरादों के तहत भारत के सारे लोगों को मूल रूप से हिन्दू कहता रहा है। इन हिन्दुत्ववादियों का स्पष्ट कहना है कि भारत में रह रहे ग़ैर-हिन्दुओं की हिन्दू धर्म में ”घर-वापसी” करायी जायेगी। इसी मकसद से ग़ैर-हिन्दू आदिवासियों में झूठा प्रचार किया जा रहा है कि वे मूल रूप से हिन्दू ही हैं। जिस तरह आर.एस.एस. आम हिन्दुओं के मन में मुसलमानों और ईसाइयों के प्रति नफ़रत पैदा करता है उसी तरह आदिवासियों को भी उनके ख़ि‍लाफ़ भड़काया जा रहा है। आदिवादियों के हिन्दुत्वीकरण के ज़रिए भाजपा के लिए वोट बैंक भी पक्का किया जाता है। हिन्दुत्वीकरण की प्रक्रिया के तहत आदिवादियों को अपने जाल में फँसाकर हिन्दू रीति-रिवाज निभाने के लिए कहा जाता है। आदिवासी समाज में स्त्रियों को काफ़ी हद तक आज़ादी और बराबरी हासिल है। लेकिन अब उन्हें पति, पिता, भाई (यानि पुरुष) की हर बात मानने, उनकी सेवा करने के लिए प्रेरित किया जाता है। लड़कियों और उनके परिजनों में लड़कियों के प्रेम करने, ‘‘पश्‍चि‍मी पहरावे’’, मोबाइल इस्तेमाल करने आदि के ख़ि‍लाफ़ मानसिकता पैदा की जाती है।

आदिवासियों में हिन्दुत्ववादी साम्प्रदायिक एजेण्डा लागू करने के लिए स्त्री प्रचारक काफी प्रभावशाली साबित हो रही हैं। आर.एस.एस. ने असम के बोडो आदिवासियों में से कुछ स्त्री प्रचारक तैयार की हैं। उनका भी असम से बाहर आर.एस.एस. की संस्थाओं में पालन-पोषण हुआ है। इनमें से कुछ अब असम में पूर्णकालिक आर.एस.एस. कार्यकर्ता के रूप में काम कर रही हैं और बाकी अपना गृहस्थ जीवन जीते हुए कार्यकर्ता के रूप में काम करती हैं। पूर्णकालिक प्रचारक लड़कियाँ शादी नहीं करतीं। पुरुषों के मुकाबले स्त्रियाँ आदिवासियों का भरोसा जीतने में अधिक कामयाब होती हैं। उनके जरिए हिन्दुत्ववादी सोच को आदिवादियों के मन में बैठाने में अधिक कामयाबी मिलती है। अधिक से अधिक स्त्री प्रचारक व कार्यकर्ता तैयार करने के लिए असम से छोटी-छोटी आदिवासी बच्चियों को समाज सेवा के नाम पर आर.एस.एस. संचालित प्रशिक्षिण शिविरों में भेजा रहा है। जिन इलाकों से 31 बच्चियों की गुजरात व पंजाब में तस्करी की गयी है उन इलाकों में तीन वर्ष पहले 3 बोडो स्त्री प्रचारकों की तैनाती की गयी थी। उन्होंने आर.एस.एस. के लिए कितने प्रभावशाली ढंग से काम किया है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है दो वर्षों के भीतर ही उन्होंने लगभभ 500 लड़कियों को देश के विभिन्न हिस्सों में चल रहे इसके ट्रेनिंग कैंम्पों में भेजने में कामयाबी हासिल की है।

ट्रेनिंग कैम्पों में बच्चियों को कट्टर हिन्दुत्ववादी विचारधारा से लैस किया जाता है। छोटी-छोटी बच्चियों को मंत्र रटाये जाते हैं। उन्हें ‘‘हिन्दू राष्ट्र’’की सेविकाओं के रूप में जीवन जीने के लिए प्रेरित किया जाता है। पुरुष-प्रधान सोच उनके मन में कूट-कूट कर भरी जाती है। मुसलमानों और ईसाइयों को खलनायक, हिन्दुओं के शत्रुओं के तौर पर पेश करने वाली कहानियाँ सुनायी व रटाई जाती हैं। कश्‍मीर व अन्य राष्ट्रीयताओं की जनता के संघर्षों के ख़ि‍लाफ़ नफ़रत पैदा की जाती है। आर.एस.एस. का मानना है कि बालिग व्यक्तिओं को कट्टर हिन्दू बनाना काफी मुश्किल होता है। अगर बचपन से ही काम किया जाये तो हिन्दुत्वादी कट्टर मानसिकता काफी अच्छी तरह मन में भरी जा सकती है। इसी लिए तीन-तीन साल की बच्चियों को आर.एस.एस. के ट्रेनिंग कैम्पों में भेजा जा रहा है। उनके मन में आर.एस.एस. के हिन्दू राष्ट्र के निर्माण के लिए पत्नियों, माताओं, बहनों, बहुओं, बेटियों के रूप में पुरुष प्रधानता को स्वीकारने की बात बैठायी जाती है। आर.एस.एस. की वीरता की धारणा में पुरुष-प्रधानता बुनियादी चीज़ है, निर्विवाद है (हर धर्म के कट्टरपंथियों में यह बात साझी है)। स्त्रियों की वीरता की हिन्दुत्ववादी धारणा में ज़रूरत के मुताबिक कुछ जगह पूर्णकालिक स्त्री प्रचारकों के लिए भी है। लेकिन उनकी हैसियत दूसरे दर्जे की ही है। उन्हें तो बस ‘‘वीर’’ कट्टपंथी हिन्दू पुरुषों द्वारा हिन्दू राष्ट्र के निर्माण में मदद ही करनी है।

आर.एस.एस. के इन ट्रेनिंग कैम्पों में बच्चियों को ज़रूरी सुविधाओं की बहुत कमी तो रहती ही है इसके साथ ही उनपर एक बड़ा जुल्म यह भी है कि उन्हें उनके मूल असमिया माहौल से काट दिया जाता है। वे अपने लोगों, भाषा, संस्कृति से पूरी तरह कट जाती हैं। उन पर एक पराई भाषा व संस्कृति थोप दी जाती है। यह उनपर अत्याचार नहीं तो और क्या है? इसे उनकी ज़ि‍न्दगी बरबाद करना न कहा जाये तो और क्या कहा जाये?

सम्प्रदायिक फासीवादी एजण्डा आगे बढ़ाने के लिए आर.एस.एस. बड़े स्तर पर ‘‘समाज सेवा’’ का सहारा लेती है। आर.एस.एस. यह काम अधिकतर अपना नाम पीछे रखकर करती है। विद्या भारती, सेवा भारती जैसे ‘‘समाज सेवक’’, ‘‘समाज सुधारक’’ उप-संगठनों के जरिए यह काम अधिक किया जाता ह। सन् 1986 से आर.एस.एस. द्वारा एकल विद्यालय चलाया जा रहे हैं। यह काम विश्व हिन्दू परिषद के जरिए किया जा रहा है। इन विद्यालयों में आम तौर पर एक ही अध्यापक होता है। सन् 2013 के एक आँकड़े के मुताबिक भारत में आदिवासी इलाकों में 52 हज़ार एकल विद्यालय हैं। इस समय असम के कोकराझार जिले में 290 से अधिक एकल विद्यालय हैं। इन विद्यालयों में कुछ घण्टे ही ‘‘पढ़ाया’’ जाता है। यह एक तरह के ट्यूशन सेंटर हैं जो स्कूली पढ़ाई में मदद करने के नाम पर चलाये जाते हैं। लेकिन इन एकल स्कूलों में बच्चों को इतिहास, जीव विज्ञान, और भूगोल की हिन्दुत्ववादी समझ के मुताबिक पढ़ाई करायी जाती है। बच्चों को धर्म चेतन, आज्ञाकारी व धर्म के लिए जान लेने-देने की भावना वाले हिन्दुत्ववादी बनाने पर ज़ोर दिया जाता है। विद्या भारती जो स्कूल चलाती है वे अलग हैं।

आर.एस.एस. अपने खतरनाक हिन्दुत्ववादी जनविरोधी इरादों को पूरा करने के लिए किसी भी हद तक गिर सकती है। तीन-तीन साल की बच्चियों की जिन्दगी से खिलवाड़ करने से भी गुरेज नहीं करती। इस लेख में हम सिर्फ़ इसकी एक झलक देखी है। अगर हम समाज में सभी धर्मों के लोगों के बीच भाईचारा चाहते हैं, जनता को उसके वास्तविक मुद्दों पर एकजुट व संघर्षशील देखना चाहते हैं और अगर हम नन्हीं बच्चियों को इन साम्प्रदायिक जनूनी गिद्धों का शिकार होने से बचाना चाहते हैं तो हमें आर.एस.एस. व ऐसी अनेक साम्प्रदायिक ताक़तों का डटकर विरोध करना होगा, इनकी काली करतूतों का जनता में पर्दाफ़ाश करना होगा और जनता को इनके ख़ि‍लाफ़ संगठित करना होगा।

 

मज़दूर बिगुल, अक्‍टूबर-नवम्‍बर 2016


 

‘मज़दूर बिगुल’ की सदस्‍यता लें!

 

वार्षिक सदस्यता - 125 रुपये

पाँच वर्ष की सदस्यता - 625 रुपये

आजीवन सदस्यता - 3000 रुपये

   
ऑनलाइन भुगतान के अतिरिक्‍त आप सदस्‍यता राशि मनीआर्डर से भी भेज सकते हैं या सीधे बैंक खाते में जमा करा सकते हैं। मनीऑर्डर के लिए पताः मज़दूर बिगुल, द्वारा जनचेतना, डी-68, निरालानगर, लखनऊ-226020 बैंक खाते का विवरणः Mazdoor Bigul खाता संख्याः 0762002109003787, IFSC: PUNB0185400 पंजाब नेशनल बैंक, निशातगंज शाखा, लखनऊ

आर्थिक सहयोग भी करें!

 
प्रिय पाठको, आपको बताने की ज़रूरत नहीं है कि ‘मज़दूर बिगुल’ लगातार आर्थिक समस्या के बीच ही निकालना होता है और इसे जारी रखने के लिए हमें आपके सहयोग की ज़रूरत है। अगर आपको इस अख़बार का प्रकाशन ज़रूरी लगता है तो हम आपसे अपील करेंगे कि आप नीचे दिये गए बटन पर क्लिक करके सदस्‍यता के अतिरिक्‍त आर्थिक सहयोग भी करें।
   
 

Lenin 1बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।

मज़दूरों के महान नेता लेनिन

Related Images:

Comments

comments