तीन घण्टे तक कारखाने की एम्बुलेंस का इन्तजार करने के बाद भानु की हालत और बिगड़ती देखकर उसके साथी ट्रैक्टर-ट्रॉली पर उसे नजदीक के अस्पताल ले गये, जहाँ से उसे भटिण्डा सिविल अस्पताल भेज दिया गया। लेकिन वहाँ पहुँचने से पहले रास्ते में ही भानु की मौत ही गयी। कम्पनी की लापरवाही से भड़के भानु के परिवार के सदस्य और अन्य साथी उसकी लाश को कारखाना गेट पर ले आये। उन्होंने मुआवजे और लाश को बिहार में स्थित गाँव पहुँचाने के इन्तजाम की माँग की। मौके पर पहुँचे पुलिस उच्चाधिकारियों की मौजूदगी में कारखाना प्रबन्धन ने मुआवजा देना माना। लेकिन अगली सुबह तक प्रबन्धन ने फिर कोई चिन्ता न दिखायी तो परिवारवाले लाश को फिर कारखाना गेट पर ले आये, लेकिन गेट पर पहले से ही पुलिस तैनात थी। पुलिस सुबह से ही किसी भी मजदूर को कारखाने के भीतर नहीं जाने दे रही थी। कारखाना प्रबन्धन जब पुलिस का साथ देखकर मजदूरों के साथ हाथापाई पर आ गया, तो मजदूरों को ही कसूरवार ठहराते हुए पुलिस ने लाठीचार्ज शुरू कर दिया। कारखाना प्रबन्धन और पुलिस का रवैया देखकर मजदूरों का ग़ुस्सा फूट पड़ा। उन्होंने पुलिस को कड़ा जवाब दिया। प्रशासन ने अपनी ग़लती मानने की बजाय मजदूरों को सबक सिखाने के मकसद से चार जिलों की पुलिस और कमाण्डो फोर्स को बुला लिया।