लुधियाना के टेक्सटाइल मज़दूरों का संघर्ष रंग लाया
राजविन्दर
अमित टैक्सटाइल नाम से कुल पाँच फैक्टरियाँ हैं जिनके मालिक तीन भाई हैं। जिस फैक्टरी में हड़ताल हुई वह लुधियाना में समराला चौक के पास बेअन्तपुरी मुहल्ले की तीन नम्बर गली में स्थित है। इस फैक्टरी में 22 लूम कारीगर, 7 बाइण्डर, 8 कटाई वाले, 2 नली वैण्डर, 1 ताना मास्टर हैं। 3 मुनीमों और 1 सफाईकर्मी को मिलाकर 43 मज़दूर काम करते हैं। प्रोडक्शन करने वाले मज़दूरों को वेतन पीस रेट के हिसाब से मिलता है। कोई पहचानपत्र, ई.एस.आई. कार्ड, फण्ड-बोनस आदि कुछ नहीं मिलता है। बाकी फैक्टरियों की तरह यहाँ पर भी कोई लेबर कानून लागू नहीं है। शोषण सिर्फ यहीं पर समाप्त नहीं हो जाता। धागा घटिया चलाया जाता है जो बार-बार टूटता रहता है। बार-बार धागा टूटने से मज़दूर को एक तो नुकसान यह होता है कि शाल के हरेक पीस को तैयार करने में अधिक समय लगता है। दूसरा नुकसान यह कि कई पीसों में बहुत सारी गाँठ पड़ जाती हैं यानी कि पीस ही बेकार हो जाता है। इन बेकार पीसों का बाज़ार मूल्य के बराबर पैसा कारीगरों के वेतन में से काट लिया जाता है। एक कारीगर ने बताया कि पिछले वर्ष मालिक ख़राब पीस का 70 रुपये काटता था, अब 100 रुपये काटता है। कई पुराने कारीगर कहते हैं कि पहले बढ़िया धागा चलता था तो ठीक रहता था। लेकिन अब सस्ता घटिया धागा चलाने से पीस ख़राब होता है, लेकिन ग़लती मज़दूर की ही निकाली जाती है।
जिस इलाके में यह फैक्टरी स्थित है उसमें हर शनिवार को पावरकट रहता है इसलिए मज़दूरों की छुट्टी रहती है। लेकिन मालिक रात को काम चलवाता है। रात की शिफ्ट में खाने का भी पैसा नहीं दिया जाता।
महँगाई से परेशान होकर लगभग 16 लूम कारीगरों ने मालिक से कहा कि पीस रेट 1 रुपया तक बढ़ा दिया जाये। लेकिन मालिक ने मना कर दिया। इसलिए मज़दूरों ने मजबूर होकर 19 मई की रात को काम बन्द कर दिया। यह ऐसा समय था जब मालिक को एक तरफ तो ऑर्डर पूरा करना था तो दूसरी तरफ कारीगरों की भारी कमी आ रही थी। आसानी से समझा जा सकता है कि मज़दूरों का पलड़ा भारी था। मालिक ने थोड़ी होशियारी दिखाने की कोशिश की। उसने कहा कि गोदाम भरा हुआ है और उसे हड़ताल से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। लेकिन मज़दूर सारे हालात समझते थे। वे लड़ाई जारी रखने की ठाने हुए थे। जिसका नतीजा यह हुआ कि मालिक को मजबूर होकर समझौते के लिए तैयार होना पड़ा। 20 मई की शाम को समझौता हुआ। प्रति पीस 50 पैसे की बढ़ोतरी करवाकर हड़ताली मज़दूरों ने आंशिक सफलता हासिल की।
हड़ताल करने से पहले ही मज़दूरों ने समझदारी दिखाते हुए पिछला वेतन ले लिया था और तभी जाकर मालिक से पीस रेट बढ़ाने की बात की। बात करने के लिए भी किसी एक व्यक्ति को न भेजकर 4-5 मज़दूरों को भेजा गया। बात किसी एक व्यक्ति पर न छोड़ना सही कदम था।
स्पष्ट देखा जा सकता है कि यह हड़ताल कोई लम्बी-चौड़ी योजनाबन्दी का हिस्सा नहीं थी। अपनी माँगें मनवाने के लिए इसे फैक्टरी के मज़दूरों की बिलकुल शुरुआती और अल्पकालिक एकता कहा जा सकता है। इस फैक्टरी के समझदार मज़दूर साथियों से आशा की जानी चाहिए कि वे अपनी इस अल्पकालिक एकता से आगे बढ़कर बाकायदा सांगठनिक एकता कायम करने के लिए कोशिश करेंगे। एक माँगपत्र के इर्दगिर्द मज़दूरों को एकता कायम करने के लिए प्रेरित करना चाहिए। ख़राब पीस के पैसे काटना बन्द किया जाये (क्योंकि पीस सस्ते वाला घटिया धागा चलाने के कारण ख़राब होता है), पहचान पत्र और इ.एस.आई. कार्ड बने, प्रॉविडेण्ट फण्ड की सुविधा हासिल हो आदि माँगें इस माँगपत्र में शामिल की जा सकती हैं। हमारी यह ज़ोरदार गुजारिश है कि मज़दूरों को पीस रेट सिस्टम का विरोध करना चाहिए क्योंकि मालिक वेतन सिस्टम के मुकाबले पीस रेट सिस्टम के ज़रिये मज़दूरों का अधिक शोषण करने में कामयाब होता है। इसलिए पीस रेट सिस्टम का विरोध करते हुए आठ घण्टे का दिहाड़ी कानून लागू करवाने और आठ घण्टे के पर्याप्त वेतन के लिए माँगें भी माँगपत्र में शामिल होनी चाहिए और इनके लिए ज़ोरदार संघर्ष करना चाहिए। इसके अलावा सुरक्षा इन्तज़ामों के लिए माँग उठानी चाहिए जोकि बहुत ही महत्वपूर्ण माँग बनती है। साफ-सफाई से सम्बन्धित माँग भी शामिल की जानी चाहिए। यह नहीं सोचना चाहिए कि सभी माँगें एक बार में ही पूरी हो जायेंगी। मज़दूरों में एकता और लड़ने की भावना का स्तर, माल की माँग में तेज़ी या मन्दी आदि परिस्थितियों के हिसाब से कम से कम कुछ माँगें मनवाकर बाकी के लिए लड़ाई जारी रखनी चाहिए।
मज़दूरों को तैयार करने के लिए जागरूक मज़दूर साथियों को लगातार कोशिश तो करनी ही होगी। एकता को परखने व मज़बूत करने और मज़दूरों को संघर्ष के शुरुआती तजुर्बे से गुज़ारने के लिए गेट मीटिंगों से लेकर कुछेक घण्टों की हड़ताल जैसे तरीके अपनाये जा सकते हैं।
इसके साथ ही साथ बिल्कुल शुरू से ही जागरूक मज़दूर साथियों को दूसरे कारख़ानों के मज़दूरों से तालमेल बिठाने की कोशिशें करनी होंगी। दूसरे कारख़ानों के मज़दूरों के साथ मिलकर ही मालिकों द्वारा मज़दूरों के शोषण को रोकने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाये जा सकते हैं और कामयाबी हासिल की जा सकती है। मालिकों के भी संगठन बने हुए हैं। वे प्रशासन-सरकार के समर्थन के साथ योजनाबद्ध ढंग से मज़दूरों का शोषण करते हैं। मज़दूर अगर अपने हक प्राप्ति के संघर्ष को अपने-अपने कारख़ानों की चारदीवारी से बाहर नहीं लायेंगे तो वे मालिकों से लडने के लिए पर्याप्त ताकत हासिल नहीं कर पायेंगे।
बिगुल, जून 2009
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