इस ठण्डी हत्या का जिम्मेदार कौन?
राजविन्दर
आज देशभर में करोड़ों मेहनतकश सुबह से रात तक, 12 से लेकर 16 घण्टे तक काम करते हैं। आप सोच रहे होंगे कि 16 घण्टे काम करने वाला तो बहुत अमीर हो जाता होगा! लेकिन साथियो, ऐसा नहीं होता। अधिक मेहनत करने वाला पारिवारिक जिम्मेदारियाँ निभाने के लिए सारी शारीरिक ऊर्जा खत्म करके 40 का होते-होते दर्जनों बीमारियों से पीड़ित हो जाता है और अक्सर असमय ही मर जाता है।
ऐसा ही हुआ पप्पू के साथ। हाँ, पप्पू जो उत्तर प्रदेश के फैजाबाद जिले का रहने वाला था, 8 वर्षों पहले लुधियाना आया था, ताकि वह और उसका परिवार अच्छी जिन्दगी जी पाये। पप्पू की उम्र मुश्किल से 26 वर्ष की थी। दो छोटे-छोटे बच्चे हैं। पप्पू के कमरे वाले साथियों के मुताबिक पप्पू बहुत मेहनती था, अकसर ही मालिक के कहने पर दिन-रात एक करके काम करता था। मालिक का बहुत चहेता था पप्पू।
पप्पू लुधियाना के फोकल प्वाइण्ट में जीवन नगर चौक के पास स्थित एक लोहा पालिश वाले कारखाने में पिछले 8 वर्षों से काम कर रहा था। इस कारखाने में लगभग 15 मजदूर काम करते थे। यहाँ कोई भी श्रम कानून लागू नहीं। के. जे. फोरजिंग कम्पनी के माल की यहाँ पालिश की जाती है। अधिकतर काम तेजाब और केमिकल का है। लगातार धूल और केमिकल के काम के कारण लगभग डेढ़ वर्ष पहले पप्पू टी.बी. का शिकार हो गया। लेकिन घरेलू मजबूरियों के कारण अपना इलाज नहीं करवा सका। 6 महीने बाद पप्पू की बहन का विवाह था, जिसके लिए वह दिन-रात काम कर रहा था। लेकिन बीमारी ने सारा शरीर खोखला कर दिया था। अप्रैल के महीने में रात में जब पप्पू काम कर रहा था, तो छाती में भयानक दर्द हुआ। जब उसने मालिक को फोन किया, तो मालिक ने इसे नाटकबाजी कहा और बोला कि आराम कर लो, सुबह आकर देखूँगा।
पप्पू अपने आप बाहर भी नहीं जा सकता था, क्योंकि मालिक बाहर से गेट को ताला लगा गया था। लुधियाना में अकसर ही मालिक रात को काम चलता छोड़कर कारखाने को ताला लगाकर चले जाते हैं। और रात को होने वाले किसी भी हादसे में मजदूर की कोई सुरक्षा नहीं होती।
सुबह पता चलने पर पप्पू का छोटा भाई और एक अन्य रिश्तेदार कारखाने से पप्पू को उठाकर अस्पताल ले गये। एक के बाद एक अस्पताल के इनकार कर देने पर आखिर डी.एम.सी. अस्पताल में भर्ती किये जाने के कुछ ही देर बाद पप्पू ने दम तोड़ गया। उसे कमरे पर लाया गया। वहीं लगभग 100 साथियों, रिश्तेदारों की मौजूदगी में मालिक ने पप्पू के दोनों बच्चों के नाम बैंक में 10-10 हजार जमा करवाने की बात कही तो मजदूरों का ग़ुस्सा भड़क उठा। हालात को समझते हुए मालिक ने 25-25 हजार देना मानकर पीछा छुड़ा लिया।
यह सोचकर कि जो मिलता है ठीक है, सारा परिवार क्रियाक्रम में उलझ गया। लेकिन कुछ दिनों बाद जब मालिक से बात हुई तो वह 25-25 हजार देने से एकदम पलट गया और 10-10 हजार रुपये देने की बात कहने लगा। कोई रास्ता न देखकर पप्पू के भाई ने मजबूर होकर 20 हजार रुपया ले लिया।
इस तरह एक मालिक को अमीर बनाने में दिन-रात काम करने वाले मेहनती मजदूर पप्पू के परिवार को 20 हजार देकर उसकी जिन्दगी की कीमत अदा कर मालिक एक ठण्डी हत्या से बरी हो गया। चूँकि पप्पू पक्का वर्कर नहीं था, इसलिए मालिक कह सकता था कि उसके पास तो यह व्यक्ति काम ही नहीं करता था। अदालतों में अकसर ही इंसाफ की आस लगाये हजारों लोग रोजाना चक्कर मारते हैं, इसलिए कानून से भी परिवार को कोई उम्मीद नहीं। इस तरह रोजाना कितने ही पप्पू मर जाते हैं। ऐसे करोड़ों पप्पुओं की लाशों पर अमीरों के महल आखिर कब तक खड़े होते रहेंगे?
बिगुल, मई 2010
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