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मारुति के मज़दूर आन्दोलन से उठे सवाल

मारुति के मज़दूरों ने आन्दोलन के दौरान जुझारूपन और एकजुटता का परिचय दिया लेकिन वे एक संकुचित दायरे से निकलकर अपनी लड़ाई को व्यापक बनाने और इसे सुनियोजित तथा सुसंगठित ढंग से संचालित कर पाने में विफल रहे। महीनों चले इस आन्दोलन में बहुत कुछ हासिल कर पाने की सम्भावना थी जो नहीं हो सका। भले ही आज यूनियन को मान्यता मिल गयी है और आने वाले महीने में स्थायी मज़दूरों के वेतनमान में बढ़ोत्तरी की सम्भावना है, लेकिन मज़दूरों का संघर्ष केवल इन्हीं बातों के लिए नहीं था। कहने को तो यूनियन गुड़गाँव प्लाण्ट में भी है, अगर ऐसी ही एक यूनियन मिल भी जाये तो क्या है? 1200 कैज़ुअल मज़दूर इस यूनियन का हिस्सा नहीं होंगे। यूनियन के गठन की प्रक्रिया जिस ढंग से चली है, उससे नहीं लगता कि इसमें ट्रेड यूनियन जनवाद के बुनियादी उसूलों का भी पालन किया जायेगा। श्रम क़ानूनों का सीधे-सीधे उल्लंघन करते हुए मैनेजमेण्ट ने यह दबाव डाला कि यूनियन किसी भी तरह की राजनीति से सम्बद्ध नहीं होगी, और आन्दोलन के तीनों दौरों में बारी-बारी से एटक, एचएमएस और सीटू के गन्दे खेल को देखकर बिदके हुए मज़दूरों ने भी इसे स्वीकार कर लिया।

मारुति सुज़ुकी के मज़दूर फ़िर जुझारू संघर्ष की राह पर

आन्दोलन के समर्थन में प्रचार करने के दौरान हमने ख़ुद देखा है कि गुड़गाँव-मानेसर- धारूहेड़ा से लेकर भिवाड़ी तक के मजदूर तहेदिल से इस लड़ाई के साथ हैं। लेकिन उन्हें साथ लेने के लिए कोई कार्यक्रम नहीं है। जून की हड़ताल की ही तरह इस बार भी व्यापक मजदूर आबादी को आन्दोलन से जोड़ने का कोई ठोस प्रयास नहीं किया गया है। मारुति के आन्दोलन में उठे मुद्दे गुड़गाँव के सभी मजदूरों के साझा मुद्दे हैं – लगभग हर कारखाने में अमानवीय वर्कलोड, जबरन ओवरटाइम, वेतन से कटौती, ठेकेदारी, यूनियन अधिकारों का हनन और लगभग ग़ुलामी जैसे माहौल में काम कराने से मजदूर त्रस्त हैं और समय-समय पर इन माँगों को लेकर लड़ते रहे हैं। बुनियादी श्रम क़ानूनों का भी पालन लगभग कहीं नहीं होता। इन माँगों पर अगर मारुति के मजदूरों की ओर से गुडगाँव-मानेसर और आसपास के लाखों मज़दूरों का आह्वान किया जाता और केन्द्रीय यूनियनें ईमानदारी से तथा अपनी पूरी ताक़त से उसका साथ देतीं तो एक व्यापक जन-गोलबन्दी की जा सकती थी। इसका स्वरूप कुछ भी हो सकता था – जैसे, इसे एक ज़बर्दस्त मजदूर सत्याग्रह का रूप दिया जा सकता था।

मारुति सुज़ुकी, मानेसर का मज़दूर आंदोलन संघर्ष को व्‍यापक और जुझारू बनाना होगा

ठेका मज़दूर और अप्रेंटि‍स आसपास के जि‍न गांवों में कि‍राये पर रहते हैं उनके सरपंचों के ज़रि‍ए मज़दूरों पर दबाव डाला जा रहा है कि‍ वे आन्‍दोलन से दूर रहें। कारखाना गेट की ओर आ रहे मज़दूरों को रास्‍ते में रोककर गांवों के दबंगों द्वारा डराने-धमकाने की कई घटनाएं सामने आने के बाद कल मज़दूरों ने यह नि‍र्णय लि‍या कि‍ ठेका मज़दूर और अप्रेंटि‍स कंपनी की वर्दी में नहीं आयेंगे। मैनेजमेंट मज़दूरों में भ्रम पैदा करने और उनका मनोबल तोड़ने के लिए तमाम तरह के घटिया हथकंडे अपनाने में लगा हुआ है। मीडिया में कभी यह प्रचार किया जा रहा है कि प्‍लांट में प्रोडक्‍शन शुरू हो गया है तो कभी यह कहा जा रहा है कि प्रोडक्‍शन को गुड़गाँव प्‍लांट में शिफ्ट करने पर विचार किया जा रहा है। हालांकि मज़दूरों पर इन हथकंडों का कोई असर नहीं है और वे लड़ने के लिए तैयार हैं।

मारुति सुज़ुकी के मैनेजमेण्ट ने मज़दूर नेताओं को प्रताड़ित करने और उकसावेबाज़ी की घटिया तिकड़में शुरू कीं

मारुति के मज़दूरों को इसे हल्के तौर पर न लेकर अपनी एकजुटता बनाये रखनी चाहिए और मैनेजमेण्ट की चालों में न आकर यूनियन के रजिस्ट्रेशन के लिए श्रम विभाग पर दबाव डालते रहना चाहिए। साथ ही, उन्हें अपने कारख़ाने के दायरे से बाहर गुड़गाँव के अन्य कारख़ानों के मज़दूरों और दुनिया भर में ऑटोमोबाइल उद्योग के मज़दूरों के साथ संवाद और एकजुटता की कोशिशें तेज़ कर देनी चाहिए।

मारुति सुज़ुकी के मज़दूरों की जुझारू हड़ताल — क़ुछ सवाल

मारुति उद्योग, मानेसर के 2000 से अधिक मज़दूरों ने पिछले दिनों एक जुझारू लड़ाई लड़ी। उनकी माँगें बेहद न्यायपूर्ण थीं। वे माँग कर रहे थे कि अपनी अलग यूनियन बनाने के उनके क़ानूनी अधिकार को मान्यता दी जाये। मारुति के मैनेजमेण्ट द्वारा मान्यता प्राप्त मारुति उद्योग कामगार यूनियन पूरी तरह मैनेजमेण्ट की गिरफ़्रत में है और वह मानेसर स्थित कारख़ाने के मज़दूरों की माँगों पर ध्यान ही नहीं देती है। भारत सरकार और हरियाणा सरकार के श्रम क़ानूनों के तहत मज़दूरों को अपनी यूनियन बनाने का पूरा हक़ है और जब कारख़ाने के सभी मज़दूर इस माँग के साथ हैं तो इसमें किसी तरह की अड़ंगेबाज़ी बिल्कुल ग़ैरक़ानूनी है। मगर मारुति के मैनेजमेण्ट ने ख़ुद ही गैरक़ानूनी क़दम उठाते हुए यूनियन को मान्यता देने से इंकार कर दिया और हड़ताल को तोड़ने के लिए हर तरह के घटिया हथकण्डे अपनाये। इसमें हरियाणा की कांग्रेस सरकार की उसे खुली मदद मिल रही थी जिसने राज्यभर में पूँजीपतियों की मदद के लिए मज़दूरों का फासिस्ट तरीक़े से दमन करने का बीड़ा उठा रखा है। गुड़गाँव में 2006 में होण्डा के मज़दूरों की पुलिस द्वारा बर्बर पिटाई को कौन भूल सकता है।

मारुति सुजुकी के मजदूरों के समर्थन में सभा कर रहे कार्यकर्ताओं पर कंपनी के सिक्योरिटी गार्डों द्वारा हमले की कड़ी निन्दा

बिगुल मजदूर दस्ता के रूपेश कुमार ने बताया कि वे लोग मजदूर आन्दोलन के समर्थन में गुड़गांव तथा मानेसर में मजदूरों के बीच जगह-जगह सभाएं कर रहे हैं तथा पर्चे बांट रहे हैं। इसी क्रम में कल शाम करीब 7.30 बजे जब वे कार्यकर्ताओं की टोली के साथ मानेसर स्थित मारुति कारखाने के निकट अलियर गांव में मजदूरों की सभा कर रहे थे तो मोटरसाइकिलों और जीप में सवार होकर पहुंचे एक दर्जन से अधिक हथियारबन्द लोगों ने अचानक उन पर हमला कर दिया। इनमें मारुति सुजुकी कंपनी की सिक्योरिटी का काम संभाल रहे ग्रुप फोर कंपनी के वर्दीधारी गार्ड भी शामिल थे। इन लोगों ने कार्यकर्ताओं के साथ गाली-गलौज और मारपीट की तथा वहां उपस्थित करीब 250 मजदूरों को हथियार दिखाकर आतंकित करके भगा दिया। वे कह रहे थे कि यह मारुति का इलाका है और यहां किसी को भी मारुति के मैनेजमेंट के खिलाफ बोलने की इजाजत नहीं दी जाएगी।