यूपीएस : एनडीए सरकार द्वारा कर्मचारियों के आन्दोलन को तोड़ने की साज़िशाना और धोखेबाज़ कोशिश
यूपीएस और एनपीएस में कोई गुणात्मक अन्तर नहीं है। दोनों बाज़ार से जुड़ी हुई और बाज़ार पर निर्भर योजनाएँ हैं और मज़दूरों और कर्मचारियों के सेवानिवृत्ति के बाद के भविष्य को पूँजीपतियों की जुआखोरी और सट्टेबाज़ी के भरोसे कर देती हैं। ये योजनाएँ अन्ततोगत्वा बड़े कोर्पोरेट घरानों को कर्मचारियों के वेतन में कटौती के ज़रिये वित्तीय पूँजी मुहैया कराती हैं। इन दोनों ही योजनाओं से सम्मानजनक पेंशन मिलने की उम्मीद करना बेमानी ही है। इसलिए जबतक बिना कर्मचारियों द्वारा वसूले गए अंशदान पर आधारित स्थिर पेंशन देने की माँग सरकार नहीं मानती है, तब तक पेंशन की माँग को लेकर हो रहा आन्दोलन जारी रहेगा। इस आन्दोलन के दूसरे क़दम के तौर पर देश के स्तर पर सार्विक पेंशन की माँग को जोड़ना भी आवश्यक है। यह माँग संविधान द्वारा प्रदत्त जीने के अधिकार के साथ भी जुड़ती है। आन्दोलन में इस माँग के जुड़ने से ज़ाहिरा तौर पर सामान्य नागरिक भी इस आन्दोलन में शामिल होंगें।