Table of Contents
सिलेसियाई बुनकरों का गीत
हाइनरिख़ हाइने
अनुवाद : सत्यम
उनकी आँखें सूखी हैं क्योंकि आँसू नज़र धुँधलाते हैं,
दाँत कसकर भींचे हुए, वे अपने करघे चलाते हैं।
‘हम बुन रहे हैं कफ़न तेरे लिए, ओ जर्मनी
हम बुन रहे हैं तिहरा अभिशाप तेरे लिए
रहे हम बुन, रहे हम बुन।
‘एक अभिशाप उस ख़ुदा के लिए जिससे हम रोते रहे
भूख से मरते रहे और जाड़ों में खुले सोते रहे,
उम्मीदें बाँधीं, दुआएँ कीं, पुकारा उसे व्यर्थ ही,
वह हँसा हम पर, उपहास किया, बढ़ाया और दर्द ही।
रहे हम बुन, रहे हम बुन।
‘एक अभिशाप राजा के लिए जो है अमीरों का ख़ैरख़्वाह,
ग़रीबों के दुख से जिसे आती उबासियाँ,
खसोटता है टैक्स जो बंजरों-मड़इयों से,
और हमें मरवाता है भाड़े के सिपइयों से।
रहे हम बुन, रहे हम बुन।
‘एक अभिशाप उस पितृभूमि के लिए जिसे मानते थे अपनी,
जहाँ सिर्फ़ दुष्टता और बुराई ही है पनपी,
जहाँ मसल जाती हैं कलियाँ खिलने से पहले,
जहाँ गन्दखोर कीड़े मुटाते हुए फैले।
रहे हम बुन, रहे हम बुन।
खड़कता है करघा और घूमती है भरनी,
दिन-रात हम बुन रहे तेरा सर्वनाश, ओ जर्मनी,
हम बुन रहे हैं कफ़न तेरे लिए, बूढ़े जर्मनी,
हम बुन रहे हैं तिहरा अभिशाप तेरे लिए।
रहे हम बुन, रहे हम बुन।’
Song of the Silesian Weavers
Heinrich Heine, Translated by Sasha Foreman
Their gloom-enveloped eyes are tearless,
They sit at the spinning wheel, snarling cheerless:
“Germany, we weave your funeral shroud,
A threefold curse be within it endowed-
We’re weaving, we’re weaving!
A curse on God to whom we knelt
When hunger and winter’s cold we felt,
To whom we flocked in vain and cried,
Who mocked us and poxed us and cast us aside,
We’re weaving, we’re weaving!
A curse on the king, the wealthy men’s chief
Who was not moved even by our grief
Who wrenched the last coin from our hand of need,
And shot us, screaming like dogs in the street!
We’re weaving, we’re weaving!
A curse on this lying father-nation
Where thrive only shame and degradation,
Where every flower’s plucked ere it’s bloom
And worms thrive in the dank rot and gloom-
We’re weaving, we’re weaving!
O shuttle fly! Loom crank away!
We weave unfailing, night and day-
Old Germany, we weave your funeral shroud,
A threefold curse be within it endowed-
We’re weaving, we’re weaving!
‘मज़दूर बिगुल’ की सदस्यता लें!
वार्षिक सदस्यता - 125 रुपये
पाँच वर्ष की सदस्यता - 625 रुपये
आजीवन सदस्यता - 3000 रुपये
आर्थिक सहयोग भी करें!
बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।
मज़दूरों के महान नेता लेनिन