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गाज़ा में इज़रायल की हार

गाजा में टनों गोला-बारूद, मिसाइलें और टैंकों की अपनी पूरी ताकत खर्च कर चुकने के बावजूद इजरायल अपने मकसद में नाकामयाब रहा। उसने जिस मकसद से हमले किये थे वह तो कत्तई हासिल हुआ नहीं उल्टे दुनिया-भर में थू-थू करवाने के बाद मुँह पिटा कर वापस लौटने पर मजबूर होना पड़ा। अन्तरराष्ट्रीय विश्लेषकों का मानना है कि इन हमलों से इजरायल राजनीतिक, कूटनीतिक और सैन्य तरीके से नुकसान ही हुआ है। एक जर्मन दैनिक “स्‍युड़यूश” ने शीर्षक दिया – ‘ओल्मर्ट की कथित जीत, हार है।’

गाज़ा पट्टी में बर्बर इज़रायली हमला

पूरा साम्राज्यवादी मीडिया इज़रायल के इस नंगे झूठ का भोंपू बना हुआ है कि उसने यह हमला “आत्मरक्षा” के लिए किया है। फ़िलिस्तीनी संगठन हमास द्वारा इज़रायल में दागे जाने वाले रॉकेटों से ख़ुद को बचाने के लिए ही उसे मजबूरन दुधमुँहे बच्चों, बूढ़ी औरतों और अस्पतालों में भरती मरीजों की जान लेनी पड़ रही है। हमारे देश का मीडिया भी इसी सुर में सुर मिला रहा है या फिर इस भयानक हत्याकाण्ड को मामूली-सी खबर के तौर पर पेश कर रहा है। आतंकवाद के नाम पर दिनों-रात युद्धोन्माद और अन्धराष्ट्रवादी भावनाएँ भड़काने में लगे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को इज़रायल का यह सरकारी आतंकवाद नज़र नहीं आ रहा है।

कविता – मेरे क्रोध की लपटें / एक फिलिस्‍तीनी स्‍त्री

तुमने मुझे बाँधा है
जकड़ा है ज़ंजीरों में
पर लपटें मेरे क्रोध की
धधकती हैं, लपकती हैं।
नहीं कोई आग इतनी तीखी
क्योंकि मेरी पीड़ा के ईंधन से
ये जीती हैं, पनपती हैं।