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नरेन्द्र मोदी का उभार और मज़दूर वर्ग के लिए उसके मायने

आज पूरी दुनिया में पूँजीवादी अर्थव्यवस्था संकट से घिरी हुई है और उससे निकलने का कोई उपाय नज़र नहीं आ रहा है। भारत की अर्थव्यवस्था की गाड़ी भी संकट के दलदल में बुरी तरह फँस चुकी है। हमेशा की तरह शासक वर्ग संकट का बोझ जनता पर डालने में लगे हैं जिससे बेतहाशा महँगाई, बेरोज़गारी और कल्याणकारी मदों में कटौती लाज़िमी है। संकट बढ़ने के समय हमेशा ही भ्रष्टाचार भी सारी हदें पार करने लगता है, जैसा कि आज हो रहा है। ऐसे ही समय में, पूँजीपति वर्ग को हिटलर और मुसोलिनी जैसे “कठोर” नेताओं की ज़रूरत पड़ती है जो हर किस्म के विरोध को रौंदकर उसकी राह आसान बना दे। आज भारत का बुर्जुआ वर्ग भी नरेन्द्र मोदी पर इसीलिए दाँव लगाने को तैयार नज़र आ रहा है। हालाँकि यह भी सच है कि आज भी उसकी सबसे विश्वसनीय पार्टी कांग्रेस ही है। भारतीय बुर्जुआ वर्ग बड़ी चालाकी से फासीवाद को ज़ंजीर से बँधे शिकारी कुत्ते की तरह इस्तेमाल करता रहा है जिसका भय दिखाकर जनता के आक्रोश को काबू में रखा जा सके, लेकिन काम पूरा होने पर उसे वापस खींच लिया जा सके।

जनता की कार, जनता पर सवार

नैनो कार का बहुसंख्यक आबादी के लिए न होने और उससे इसका कोई सरोकार न होने के बावजूद इसी बहुसंख्यक मेहनतकश आबादी की टैक्स के रूप में जमा गाढ़ी कमाई के बदौलत इसे तैयार किया गया है। प. बंगाल में मुख्य कारखाना हटने और गुजरात में लगने के बाद मोदी सरकार ने इसमें विशेष रूचि दिखायी और जनता का करोड़ो रूपया पानी की तरह इसपर बहा दिया। एक अनुमान के मुताबिक 1 लाख की कीमत वाली हरेक नैनो कार पर जनता की गाढ़ी कमाई का 60,000 रूपया लगा है। नैनो संयंत्र के लिए गुजरात सरकार ने टाटा को 0.1 प्रतिशत साधारण ब्याज की दर से पहले चरण के लिए 2,900 करोड़ का भारी-भरकम कर्ज दिया है जिसकी अदायगी बीस वर्षों में करनी है। कम्पनी को कौड़ियों के भाव 1,100 एकड़ जमीन दी गयी है। इसके लिए स्टाम्प ड्यूटी और अन्य कर भी नहीं लिये गये हैं। कम्पनी को 14,000 घनमीटर पानी मुफ्त में उपलब्ध कराया जा रहा है साथ ही संयंत्र में बिजली पहुँचाने का सारा खर्च सरकार वहन करेगी।

गुजरात में मोदी की जीत से निकले सबक

वर्ष 2002 के जनसंहार के बाद मोदी के ‘जीवन्त गुजरात’ में मुसलमानों की क्या जगह है ? वे पूरी तरह हाशिये पर धकेल दिये गये हैं । उनके मानवीय स्वाभिमान को पूरी तरह कुचलकर उनकी दशा बिल्कुल वैसी बना दी गयी है जैसी भेड़ियों के आगे सहमें हुए मेमनों की होती है । अहमदाबाद, सूरत और बड़ौदा जैसे शहरों में ज्यादातर गरीब मेहनतक़श मुसलमान आबादी ऐसी घनी बस्तियों में सिमटा दी गयी है जहाँ बिजली, पानी, सड़क जैसी बुनियादी सुविधाएँ तक ढंग से मयस्सर नहीं है ।