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देश के मज़दूरों की दशा – गणेशशंकर विद्यार्थी

बम्बई और मद्रास के मज़दूरों ने तंगदस्ती से परेशान होकर हड़तालें कीं, और अपनी उजरतें कुछ-कुछ बढ़वा ली हैं। परन्तु अन्य स्थानों में मज़दूरों की उजरतें उतनी ही हैं जितनी कि युद्ध के पहले थीं। उनकी मानसिक और आर्थिक उन्नति के कोई साधन नहीं। बहुत से कारख़ानों में उनके साथ असभ्य व्यवहार होता है। छोटी-छोटी बातों पर उनका अपमान होता है। उन्हें ठोकरें लगाई जाती हैं। उन्हें मारा जाता है। कारख़ाने के मालिकों और बड़े नौकरों का यह क्रूर, शुष्क और हाकिमाना बर्ताव मज़दूरों की आत्माएँ दाब देता है, उनकी स्वाधीनता मार देता है, उनमें भय पैठ जाता है, और वे डरपोक, कायर, झूठे और आत्मसम्मान के भाव से शून्य हो जाते हैं।

धार्मिक बँटवारे की साज़िशों को नाकाम करो! पूँजीवादी लूट के ख़िलाफ़ एकता क़ायम करो!

जब तक लोग अपनी स्वतंत्रता का इस्तेमाल करने की ज़हमत नहीं उठायेंगे, तब तक तानाशाहों का राज चलता रहेगा; क्योंकि तानाशाह सक्रिय और जोशीले होते हैं, और वे नींद में डूबे हुए लोगों को ज़ंजीरों में जकड़ने के लिए, ईश्वर, धर्म या किसी भी दूसरी चीज़ का सहारा लेने में नहीं हिचकेंगे।

महान क्रान्तिकारी पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी के जन्मदिवस (26 अक्टूबर) के अवसर पर

हमारे देश में धर्म के नाम पर कुछ इने-गिने आदमी अपने हीन स्वार्थों की सिद्धि के लिए लोगों को लड़ाते-भिड़ाते हैं। धर्म और ईमान के नाम पर किये जाने वाले इस भीषण व्यापार को रोकने के लिए साहस और दृढ़ता के साथ उद्योग होना चाहिए।

उद्धरण

देश की स्वाधीनता के लिए जो उद्योग किया जा रहा था, उसका वह दिन निस्सन्देह, अत्यन्त बुरा था, जिस दिन स्वाधीनता के क्षेत्र में ख़िलाफ़त, मुल्ला, मौलवियों और धर्माचार्यों को स्थान देना आवश्यक समझा गया। एक प्रकार से उस दिन हमने स्वाधीनता के क्षेत्र में एक कदम पीछे हटकर रखा था। हमें अपने उसी पाप का फल भोगना पड़ रहा है। देश के स्वाधीनता के संग्राम ही ने मौलाना अब्दुल बारी और शंकराचार्य को देश के सामने दूसरे रूप में पेश कर उन्हें अधिक शक्तिशाली बना दिया और हमारे इस काम का फल यह हुआ कि इस समय हमारे हाथों ही से बढ़ाई इनकी और इनके जैसे लोगों की शक्तियाँ हमारी जड़ उखाड़ने और देश में मज़हबी पागलपन, प्रपंच और उत्पात का राज्य स्थापित कर रही हैं।

— गणेशशंकर विद्यार्थी