Category Archives: आर्काइव

अगस्‍त 2001

  • केन्द्र व राज्य कर्मचारियों की एक दिनी हड़ताल – झूठी आशा छोड़ो, सही लड़ाई से नाता जोड़ो
  • विकास मुनाफाखोरों का, विनाश मेहनती जनता का – 2 : आर्थिक “सुधार”, यानी बेरोजगार ही बेरोजगार
  • “चीनी मज़दूर” पत्रिका का परिचय
  • पंजाब के भट्ठा मज़दूरों के उत्पीड़न और लूट की दर्दनाक दास्तान : सही लाइन पर संगठित करने की जरूरत
  • यह सुलगता कोयला दहकेगा, एक दिन जरूर दहकेगा
  • लेनिन के साथ दस महीने / एल्बिर्ट रीस विलियम्स
  • जुलाई 2001

     (बिगुल के जुलाई 2001 अंक में प्रकाशित लेख। अंक की पीडीएफ फाइल डाउनलोड करने के लिए यहाँ क्लिक करें और अलग-अलग लेखों-खबरों आदि को यूनिकोड फॉर्मेट में पढ़ने के लिए उनके शीर्षक…

    जून 2001

  • इंडियन लेबर कांफ्रेंस का संदेश क्‍या है ?
  • मुर्गे और दारू के जश्‍न के बीच मज़दूर रहनुमाई का ढकोसला
  • जापानी डकैतों के लूट का एक ही तरीका, कम मज़दूरों से ज्‍यादा मुनाफा
  • बाल्‍को की हड़ताल वापसी : एक और विश्‍वासघात
  • पार्टी की बुनियादी समझदारी (अध्‍याय-3) पांचवीं किश्‍त
  • जनमुक्ति की अमर गाथा : चीनी क्रान्ति की सचित्र कथा (भाग पन्‍द्रह)
  • जन्‍मदिवस के अवसर पर – लेनिन के साथ दस महीने / अल्‍बर्ट रीस विलियम्‍स
  • मई 2001

  • मज़दूर वर्ग के एक गद्दार की नज़र में पश्चिम बंगाल का भविष्‍य
  • मई दिवस के अवसर पर – मज़दूर आंदोलन के क्रान्तिकारीकरण की प्रतिज्ञा करो!
  • नया श्रम कानून लागू होने से पहले ही मजदूरों पर दबाव बढ़ने लगा है
  • दयानन्‍द मेडिकल कॉलेज एवं अस्‍पताल के कर्मचारियों का आन्‍दोलन
  • जनमुक्ति की अमर गाथा : चीनी क्रान्ति की सचित्र कथा (भाग चौदह)
  • यह एक गाथा है पर आप सबके लिए नहीं / हावर्ड फास्‍ट
  • मई दिवस अमर रहे / स्‍तालिन
  • मेहनतकश वर्ग के चेतना की दुनिया में प्रवेश करने का जश्न / लेनिन
  • अप्रैल 2001

    • आयात-निर्यात नीति 2001-2002 : वाजपेयी सरकार ने मेहनतकश जनता को विनाश की और गहरी खाई में धकेला
    • फाजिल अनाज भूख-बेकारी की त्रासदी और अंत्‍योदय अन्‍न योजना का नाटक
    • खून-पसीना हमारा बंगला-गाड़ी उनकी / विक्रम सिंह, हीरालाल पटेल, लुधियाना
    • पश्चिम बंगला में खनन क्षेत्र का निजीकरण : संसदीय वामपंथियों का दुरंगापन
    • पार्टी की बुनियादी समझदारी (अध्‍याय 2) तीसरी किश्‍त
    • जनमुक्ति की अमर गाथा : चीनी क्रान्ति की सचित्र कथा (भाग तेरह)
    • देख फकीरे / मनबहकी लाल
    • 13 अप्रैल 1978 पन्‍तनगर : मज़दूर हत्‍याकाण्‍ड की याद तेइस वर्षों बाद

    मार्च 2001

  • सर से पांव तक भ्रष्‍टाचार में डूबे शासक गिरोह को ध्‍वस्‍त करो! चोरों, लुटेरों, भ्रष्‍ट विलासियों के इस फर्जी लोकतंत्र को खारिज करो!
  • केन्‍द्रीय आम बजट 2001-2002 : वजीरे खजाना! यह सौदा महंगा पड़ेगा
  • भविष्‍य निधि पर सरकारी डाका
  • होण्‍डा पावर प्रोडक्‍टस रूद्रपुर में ट्रेड यूनियन जनवाद की जीत
  • बिखराव के कारणों की र्इमानदार पड़ताल जरूरी
  • भगतसिंह की जेल नोटबुक का एक पन्‍ना
  • स्‍वर्ग का तलघर अंधेरा, यहां भी है, वहां भी! स्‍वर्ग की मीनार रौशन, वहां भी है, यहां भी!
  • फरवरी 2001

  • भूकम्‍प को महज प्रकृति की विनाशलीला घोषित कर खून सने हाथों को साफ नहीं किया जा सकता
  • ए.एस.पी. का मजदूर आन्‍दोलन : वेतन न मिलने से मजदूर भुखमरी के कगार पर
  • मारुति के मजदूरों का साढ़े तीन माह तक चला जुझारू आन्‍दोलन समझौते के बाद समाप्‍त : मजदूर अकेले-अकेले लड़कर जीत हासिल नहीं कर सकते
  • बागडिगी : एक और सामूहिक हत्‍याकाण्‍ड
  • एनरॉन की लूटपाट के लिए पूरे देश में रास्‍ता खोलने की तैयारी
  • काशीपुर (उड़ीसा) में अल्‍युमिनियम कारखाने के लिए उजाड़ी जा रही आदिवासी जनता पर पुलिस फायरिंग
  • पार्टी की बुनियादी समझदारी (पहली किश्‍त)
  • हैसवेल शहर के सौ मजदूर / जार्ज वेयेर्थ
  • जनवरी 2001

  • अयोध्‍या मुद्दे को उछालकर चुनावी गोटी लाल करने का भाजपाई कुचक्र
  • चीन में मेहनतकश जनता के संघर्ष : सड़कों पर बह रहा है पिघला गर्म लावा फिर से
  • डाककर्मियों की चौदह दिनी देशव्‍यापी हड़ताल : एक जर्बदस्‍त संघर्ष और उसकी अफसोसनाक हार तथा कुछ जरूरी सबक
  • कोलार का सोना खदान बन्‍द : हजारों मज़दूर भुखमरी के हवाले
  • अब विश्‍व बैंक तय करेगा कर्मचारियों की कार्य-संस्‍कृति
  • संसदीय वामपंथियों का एक और दोगलापन : स्‍वास्‍थ्‍य का निजीकरण और निजीकरण की मुख़ालफत
  • बाज का गीत / मक्सिम गोर्की
  • नवम्‍बर-दिसम्‍बर 2000

  • पर्यावरण के नाम पर 25 लाख से भी अधिक मज़दूरों की रोजी छीन रही है सरकार
  • और कितने कड़े कदम बाकी हैं प्रधानमंत्री महोदय
  • एकताबद्ध क्रान्तिकारी कम्‍युनिस्‍ट पार्टी के निर्माण की समस्‍याएं
  • स्‍तालिन के जन्‍मदिवस के अवसर पर : स्‍तालिन क्‍या थे – महामानव या भयावह
  • एक और पुलिसिया ताण्‍डव / ऐ जुल्‍म के मारो लब खोलो चुप रहने वालो चुप कब तक
  • पंजाब में प्रवासी मज़दूरों पर बढ़ रहे हमले
  • भूमण्‍डलीकरण के खिलाफ पूरी दुनिया में तीखे हो रहे हैं मज़दूर संघर्ष
  • मज़दूर वर्ग का अंतिम लक्ष्‍य – राजनीतिक सत्‍ता / कार्ल मार्क्‍स
  • कम्‍यनिस्‍ट समाज के बारे में / फ्रेडरिक  एंगेल्‍स
  • अक्‍टूबर 2000

  • परजीवी जमातों की विलासिता का बोझ मेहनतकश जनता क्‍यों उठाये?
  • सूचना प्रौद्योगिकी का मिथक और आम जनजीवन का यथार्थ
  • आधुनिक दास-यात्रा : पूँजीवादी बर्बरता की एक और लोमहर्षक मिसाल
  • संघ परिवार के कई मुंह और भाजपा की बदली-बदली बातें: दुविधा, अंतरविरोध या सोची-समझी रणनीति?
  • तराई के मज़दूर आन्‍दोलन  को कमजोर करने की कोशिश : व्‍यापक एकजुटता से ही मुकाबला सम्‍भव
  • एक बार फिर उठेगा काम के घण्‍टों एवं वाजिब मज़दूरी का सवाल
  • मज़दूरों की गैरक़ानूनी लूट का बाजार बनीं लुधियाना की स्‍टील फैक्‍टरियां
  • पार्टी के बोल्‍शेविकीकरण की बुनियादी शर्तें / स्‍तालिन