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(बिगुल के अक्टूबर 2001 अंक में प्रकाशित लेख। अंक की पीडीएफ फाइल डाउनलोड करने के लिए यहाँ क्लिक करें और अलग-अलग लेखों-खबरों आदि को यूनिकोड फॉर्मेट में पढ़ने के लिए उनके शीर्षक पर क्लिक करें)
सम्पादकीय
वर्ल्ड ट्रेड सेंटर और पेंटागन पर आत्मघाती आतंकवादी हमलों के बाद आतंकवाद कुचलने के नाम पर पूरी दुनिया की जनता के खिलाफ लुटेरे हुक्मरानों की जंगी मुहिम
अर्थनीति : राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय
बंधुआ मुक्ति से मुक्त बाजार व्यवस्था की गुलामी तक / शरद कुमार
भारत सरकार द्वारा गठित व्यय सुधार आयोग की रिपोर्ट : डाक कर्मचारियों एवं आम जनता के अधिकारों पर नग्न हमला
बीमा संशोधन बिल लोकसभा में पेश : अब बीमा सेक्टर में भी दलालों की चांदी होगी
यू.टी.आई., बैंक व डाक विभाग में करार : जनता की गाढ़ी कमाई पर डकैती का एक और रास्ता खुला / राम मोहन
मिट्टी के तेल की आसमान छूती कीमतें : गरीबों का चूल्हा जलना भी मुहाल / विक्रम सिंह
उत्तरांचल में उद्योंगो की दुर्दशा : कताई मिलों की बन्दी से हजारों परिवार भुखमरी की कगार पर
कैलिफोर्निया के बिजली संकट के आइने में : देश के भीतर बिजली के निजीकरण की तस्वीर
संघर्षरत जनता
रुद्रपुर में बंगाली समुदाय का प्रदर्शन : अपने संघर्षों को व्यापक आबादी के संघर्षों से जोड़ना होगा
आन्दोलन : समीक्षा-समाहार
शाही एक्सपोर्ट ग्रुप का मज़दूर आंदोलन : खून देकर मज़दूरों को मिले संघर्ष के कीमती सबक
महान शिक्षकों की कलम से
स्त्रियों के लिए स्वतंत्रता / लेनिन
विरासत
श्रमिक क्रान्ति निश्चय ही साम्राज्यवाद-पूँजीवाद का नाश करेगी / भगतसिंह
बुर्जुआ जनवाद – दमन तंत्र, पुलिस, न्यायपालिका
आतंकवाद के बहाने भारतीय शासक वर्ग भी जनता के दमन का शिकंजा कस रहे हैं
साम्राज्यवाद / युद्ध / अन्धराष्ट्रवाद
दुनिया के सबसे बड़े आतंकवादी अमेरिका के काले कारनामे / सुरेन्द्र कुमार
जब युद्धों से तबाही का मंजर रचा जाता है तो मौत के सौदागरों की तिजोरियां भरती हैं
लेखमाला
पार्टी की बुनियादी समझदारी (अध्याय-4) नौवीं किश्त
लेनिन के साथ दस महीने – सातवीं किश्त / एल्बर्ट रीस विलियम्स
विकास मुनाफाखोरों का, विनाश मेहनती जनता का – 4 (अंतिम किश्त) : साम्राज्यवाद-पूँजीवाद का एक-एक दिन भारी है / मुकुल
कला-साहित्य
जर्मन कवि बेर्टोल्ट ब्रेष्ट की कविता – हम राज करें, तुम राम भजो!
उद्धरण
माओ के उद्धरण
आपस की बात
क्या विश्व से आतंकवाद खत्म होगा / मोहन लाल, ऊधमसिंह नगर
मज़दूरों के खून-पसीने पर ऐय्याशी करते मालिक / सुनील कुमार शर्मा
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मज़दूरों के महान नेता लेनिन