जयपुर से एक पाठक का पत्र
मधु सूदन आज़ाद, जयपुर
प्रिय साथी, लाल सलाम! दिसम्बर 2015 का “मज़दूर बिगुल” एडवोकेट कुलदीप व्यास के सौजन्य से पढने को मिला| इस अंक में मज़दूर विरोधी क़ानून पारित कराने की सरकारी तैयारी बाबत और “उधारी साँसों पर पूँजीवादी अर्थव्यवस्था को जीवित रखने के नीम-हक़ीमी नुस्खे” आलेख पढकर ज्ञानवर्द्धन हुआ| फ़ॉक्सकॉन जैसी कुख्यात कंपनी को भारत में खुली छूट देना मज़दूर-विरोधी तंत्र का क्रूर-चेहरा उजागर करने वाली रपट है| रूसी-क्रांति के गुप्त अख़बार की कहानी “उड़न छापाखाना” कलम के सिपाहियों के अमूल्य-योगदान का जीवंत दस्तावेज है| क्रांतिकारी लेखक निकोलाई ओस्त्रोवस्की की पुण्यतिथि विषयक लेख में ‘अग्नि-दीक्षा’ देने वाले महानायक के बारे में ‘गागर में सागर’ की उक्ति सार्थक हुई| “आपस की बात” में कपिल का गीत “फाटल पैर बेवइया हो भैया गर्मी के दुपहरिया में” मज़दूर की पीड़ा की सटीक अभिव्यक्ति हुई| सभी रपटें तल-स्पर्शी हैं, मार्क्सवादी सोच को बेबाकी से उजागर करती हैं| संपूर्ण अख़बार पठनीय है, ज़रूरी लगता है| पत्रकारिता के इस गंभीर-कर्म में जुटे संपादक-मंडल के सभी साथियों, सभी लेखन-सहयोगियों, वितरण और व्यवस्था में लगे साथियों का सम्मिलित प्रयास प्रशंसनीय है|
मज़दूर बिगुल, जनवरी 2016
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