मज़दूरों पर फ़ायरिंग के विरोध में मुख्यमन्त्री मायावती के नाम भेजी गयी पहली याचिका
गोरखपुर के औद्योगिक मज़दूर नारकीय हालात में काम कर रहे हैं। न्यूनतम मज़दूरी, काम के घण्टे, ओवरटाइम के भुगतान, जॉबकार्ड, पीएफ़, ईएसआई, काम की सुरक्षित परिस्थितियों आदि से सम्बन्धित श्रम क़ानून बस काग़ज़ पर मौजूद हैं। स्थानीय प्रशासन इन क़ानूनों को लागू कराने की अपनी संवैधानिक और क़ानूनी ज़िम्मेदारी निभाने में पूरी तरह नाकाम रहा है। दो वर्ष पहले, इस इलाक़े के मज़दूरों ने श्रम क़ानूनों को लागू करने के लिए संगठित आन्दोलन की शुरुआत की थी। लेकिन मज़दूरों की जायज़ माँगों पर ध्यान देने की बजाय, प्रशासन ने उद्योगपतियों की शह पर आन्दोलन को कुचलने का षडयन्त्र शुरू कर दिया। वार्ता के लिए गये मज़दूर नेताओं को पीटा गया और फर्ज़ी मुकदमों में जेल भेज दिया गया। अनेक जनवादी और नागरिक अधिकार संगठनों तथा बुद्धिजीवियों के आन्दोलन के बाद ही प्रशासन द्वारा नेताओं को रिहा किया गया।