फ़ासिस्ट मोदी-शाह सरकार के तीसरे कार्यकाल में भीड़ द्वारा हत्या (मॉब लिंचिंग) के बढ़ते मामलों का क्या मतलब है

आशीष

तीसरी बार फ़ासिस्ट मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद भीड़ द्वारा पीट-पीटकर मार देने (मॉब लिंचिंग) के मामले में तेज़ गति से बढ़ोत्तरी हुई है। पिछले दिनों देश के अलग-अलग हिस्सों से मॉब लिंचिंग की अनेक घटनाएँ सामने आयी हैं। हरियाणा के चरखी दादरी में साबिर अली नामक एक 26 वर्षीय प्रवासी मज़दूर के ऊपर गोमांस खाने का आरोप लगाकर उसकी हत्या कर दी गयी। फ़रीदाबाद में उन्मादियों ने आर्यन मिश्रा नामक एक हिन्दू युवक को गौ तस्कर बताकर उसकी हत्या कर दी। महाराष्ट्र में चलती ट्रेन में एक बुजुर्ग से मारपीट की घटना सामने आयी। ट्रेन में साथ यात्रा कर रहे कुछ लोगों ने बुजुर्ग पर बीफ़ लेकर चलने का आरोप लगाते हुए उन्हें थप्पड़ मारे और गालियाँ दीं। बिहार के बेगूसराय में बकरी चोरी के आरोप में भीड़ ने एक युवक को पीट-पीट कर मार दिया और उसके एक साथी को अधमरा कर दिया। पटना के जक्कनपुर एवं नौबतपुर में दो अलग घटनाओं में भीड़ ने चोरी के शक के आधार पर दो युवकों की हत्या कर दी। छत्तीसगढ़ के रायपुर में दो मुस्लिम युवकों की पीट-पीटकर हत्या कर दी गयी। यूपी के मुरादाबाद और अलीगढ़ में भी मुस्लिम युवकों को फ़ासिस्ट भीड़ द्वारा मौत के घाट उतार दिया गया। अलीगढ़ में 35 वर्षीय व्यक्ति मुहम्मद फ़रीद उर्फ़ औरंगज़ेब को कथित तौर पर चोरी के आरोप में भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला। राजस्थान में गौ तस्करी के नाम पर दो हिन्दू युवकों की हत्या कर दी गयी। सोशल मीडिया पर वायरल एक वीडियो में मोहम्मद उमर क़ुरैशी नाम के एक शख़्स ने बजरंग दल और विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) के लोगों पर उनके साथ मारपीट का आरोप लगाया और कहा कि उन लोगों ने उनसे पैसे लूटे और ‘जय श्री राम’ बोलने को मजबूर किया। तेलंगाना में मिन्हाज उल उलूम मदरसा प्रबन्धन द्वारा बकरीद पर मवेशी ख़रीदने के बाद दक्षिणपन्थी संगठनों के सदस्यों ने मदरसे पर हमला कर दिया। इसमें कई लोगों को चोटें आयीं और उन्हें इलाज़ के लिए स्थानीय अस्पताल में भर्ती कराया गया। बाद में भीड़ ने अस्पताल पर भी हमला और पथराव किया। हिमाचल प्रदेश के नाहन शहर में एक मुस्लिम व्यक्ति के कपड़े की दुकान में इसलिए तोड़फोड़ और लूटपाट की गयी क्योंकि उस शख़्स ने अपने व्हाट्सएप स्टेटस पर पशु बलि की तस्वीरें पोस्ट की थीं। उग्र भीड़ का दावा था कि यह गोमांस है। घटना के दौरान पुलिस मूकदर्शक बनकर खड़ी रही, जब सैकड़ों की संख्या में मौजूद भीड़ ‘एक ही नारा, एक ही नाम, जय श्री राम’ जैसे साम्प्रदायिक नारे लगा रही थी। बाद में पुलिस की पड़ताल में साबित हुआ कि वह तस्वीरें गाय की नहीं थीं। पश्चिम बंगाल में भीड़ ने एक मन्दिर के पास मांस फेंकने के आरोप में एक मुस्लिम युवक को बुरी तरह मारा।

ये सारी घटनाएँ अनायास नहीं हैं। अक्सर इन घटनाओं को अंजाम देने में आरएसएस-भाजपा से सम्बन्ध रखने वाले विश्व हिन्दू परिषद, गौरक्षा दल, बजरंग दल आदि से जुड़े फ़ासिस्ट लम्पट गुण्डा गिरोह का सीधा हाथ होता है। मॉब लिंचिंग में संलिप्त अपराधियों के साथ भाजपा नेताओं की साँठगाँठ छिपी हुई नहीं है। 2018 में मॉब लिंचिंग की सज़ा काटने के बाद जमानत पर रिहा हुए आठ अपराधियों को भाजपा के केन्द्रीय मन्त्री जयन्त सिन्हा ने फूलमाला पहनाकर स्वागत किया था। उस समय भाजपा कार्यालय में मिठाई भी बाँटी गयी थी। अभी चरखी दादरी, हरियाणा की मॉब लिंचिंग की घटना को तो हरियाणा के मुख्यमन्त्री नायाब सिंह सैनी ने मॉब लिंचिंग मानने से ही इन्कार कर दिया। यही नहीं इन्होंने गाय को ग्रामीण लोगों की भावनाओं से जुड़ा बताकर स्पष्ट तौर पर हत्यारों का न केवल बचाव किया बल्कि हत्या और ज़ुल्म का शिकार लोगों को ही इस तरह के संसाधनों में संलिप्त न होने की नसीहत भी दे डाली। जबकि असल में हत्यारे गिरोह का आम लोगों ने विरोध किया था और प्रवासी श्रमिक को बचाने का प्रयास किया था लेकिन गौ-गुण्डे उसे उठाकर दूसरी जगह ले गये, जहाँ उसे मार डाला गया। फ़रीदाबाद का मसला दर्शाता है कि गाय की तथाकथित रक्षा के नाम पहरेदारी करते घूम रहे गुण्डा गिरोह किसी की भी हत्या कर सकते हैं। कोई मुस्लिम है तो उसे तो तुरन्त ही गौ-तस्कर साबित करके मारना इनके लिए जायज़ है। फ़ासिस्ट दौर में इसे ही पुलिस और न्याय व्यवस्था का दिवाला निकलना कहते हैं। भावना को ठेस का मसला बताकर तो किसी भी हत्या को जायज़ ठहराया जा सकता है, तो पुलिस प्रशासन, न्याय व्यवस्था और सरकार का अमली जामा क्या घास छीलने के लिए बैठा हुआ है!

भाजपा के गाय प्रेम की असलियत!

हरिशंकर परसाई ने ठीक ही कहा था, “विदेशों में जिस गाय का दूध बच्चों को पुष्ट कराने के काम आता है, वही गाय भारत में दंगा कराने के काम में आती है।” भाजपा के लिए गाय एक राजनीतिक पशु है। हिन्दी प्रदेशों में भाजपा गौ रक्षा के नाम पर वोट हासिल करती है। तथाकथित गौ रक्षक गुण्डे गाय के नाम पर भीड़ द्वारा हिंसा को अंजाम देते हैं। पूर्वोत्तर और दक्षिण के राज्यों में भाजपा के नेता बीफ़ सप्लाई पर बैन नहीं लगाने और सत्ता में आने के बाद सर्वोत्तम गुणवत्ता की बीफ सप्लाई का वायदा करते हैं। भाजपा नेता किरण रिजिजू खुलेआम बयान देते है कि वह बीफ़ खाते हैं।

कुछ समय पहले तक भाजपा नेता संगीत सोम देश के बड़े बूचड़खाने में से एक का मालिक था। अभी कुछ समय पहले भाजपा सरकार के केन्द्रीय जहाजरानी मन्त्री शान्तनु ठाकुर ने बीएसएफ से सिफ़ारिश किया कि उनके एक जानकार सज्जन को सीमापार तीन किलोग्राम बीफ़ ले जाने की अनुमति दी जाये। अगर गाय पवित्र है तो पूरे हिन्दुस्तान में भाजपा गौ मांस पर बैन क्यों नहीं लगा देती? इलेक्टॉरल बॉण्ड के खुलासे से जाहिर है कि पिछले चुनाव में भाजपा ने बीफ़ निर्यातक कम्पनियों से करोड़ों रुपए चन्दा लिया था। भाजपा को गाय से कोई वास्तविक हमदर्दी होती तो इनके लोगों द्वारा संचालित गौशालाओं में गायें तिल-तिलकर मर नहीं रही होतीं। असल में इनका गायप्रेम केवल ढकोसला है।

मॉब लिंचिंग की वारदातों में क्यों वृद्धि हो रही है?

2014 में सत्ता में क़ाबिज़ होने के बाद से मोदी सरकार की पूँजीपरस्त नीतियों के परिणामस्वरूप बेरोज़गारी, महँगाई, ग़रीबी एवं सामाजिक-आर्थिक असुरक्षा बढ़ी है। इन समस्याओं से त्रस्त जनता के गुस्से को फ़ासिस्ट गिरोह द्वारा किसी काल्पनिक शत्रु के मत्थे मढ़ देने का काम कुशलतापूर्वक किया जा रहा है। इस काल्पनिक शत्रु के दायरे में धार्मिक अल्पसंख्यक विशेषकर मुसलमान आते हैं और बाद में इस काल्पनिक दुश्मन की छवि में दलित, आदिवासी, ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता व कम्युनिस्ट सभी को समेट लिया जाता है। 2014 के बाद से ही इस काल्पनिक शत्रु के श्रेणी से आने वाले लोगों को अलग-अलग तरीके से निशाना बनाया जा रहा है और इनके ख़िलाफ़ मॉब लिंचिंग की असंख्य वारदातों को अंजाम दिया गया है। पहले से ही कमज़ोर और अब फ़ासीवाद द्वारा पंगु बना दिये गये भारतीय बुर्जुआ जनवाद और उसकी संवैधानिक संस्थाओं और गोदी मीडिया के भोंपू तन्त्र के भरपूर सहयोग के बावजूद जनता के एक हिस्से में फ़ासिस्ट गिरोह की कलई उजागर हो रही है। धाँधली और तीन-तिकड़म के बाद भी गठबन्धन की बैसाखी से तीसरी बार सत्ता में पहुँचने बाद फ़ासिस्ट गुण्डा गिरोह बुरी तरह बौखलाया हुआ है। मॉब लिंचिंग सरीखे नफ़रती खेल के ज़रिये विधानसभा चुनावों में सफलता हासिल करने के जुगत में है। मज़दूर व आम मेहनतकश लोग ही ज़्यादातर मामलों में इस खेल का शिकार हो रहे हैं, हमें इस खेल की असलियत का भण्डाफोड़ करना होगा। हिटलर और मुसोलिनी के इन वंशजों के ख़िलाफ़ संघर्ष करना ही होगा! वरना काठ की हाँडी बार-बार चढ़ती रहेगी।

 

मज़दूर बिगुल, सितम्‍बर 2024


 

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