दिल्ली के सरकारी स्कूलों को बदलने के हवाई दावों के बाद आयी आँगनवाड़ी केन्द्रों की बारी!
आँगनवाड़ीकर्मियों को बेगार खटवाने के लिए सदैव तत्पर केजरीवाल सरकार!!
आँगनवाड़ी कर्मियों को ग़ैरक़ानूनी रूप से टर्मिनेट करने वाले केजरीवाल के लाभार्थियों के लिए दावे झूठे हैं!!!
वृषाली
दिल्ली सरकार ने 20 जुलाई को दिल्ली के त्यागराज स्टेडियम में समेकित बाल विकास परियोजना के कर्मियों को बुलाकर एक “बड़ा क़दम” उठाने का फ़ैसला सुनाया था। दिल्ली सरकार के मुख्यमन्त्री और शिक्षामन्त्री ने एक शैक्षिक किट का अनावरण करते हुए कहा कि आँगनवाड़ी केन्द्रों में अब केवल पोषण ही नहीं, बल्कि प्री-स्कूलिंग (स्कूल भेजने से पहले प्री-स्कूल की बुनियादी शिक्षा) की व्यवस्था पर भी ध्यान दिया जायेगा। इसी के मद्देनज़र न केवल सभी आँगनवाड़ी केन्द्रों में इस किट को उपलब्ध कराया जायेगा ताकि बच्चों का सर्वांगीण विकास हो बल्कि आँगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण के लिए विदेश भी भेजा जायेगा। दिल्ली सरकार द्वारा उठाये जा रहे इस “अनूठे” क़दम का दिशा-निर्देश केन्द्र सरकार ने पिछले वर्ष ही दे दिया था। पिछले साल सितम्बर में ही केन्द्र सरकार की महिला एवं बाल विकास विभाग मन्त्री स्मृति ईरानी ने “पोषण भी, पढ़ाई भी” अभियान शुरू करने की घोषणा की थी। दरअसल, केन्द्र की मोदी सरकार हो या दिल्ली की केजरीवाल सरकार, जुमलों की बारिश दोनों ही सरकारें ताबड़तोड़ करती हैं!
आँगनवाड़ी केन्द्रों पर “शिक्षा व्यवस्था सुधारने” के पीछे की असल मंशा मोदी सरकार द्वारा लायी गयी नयी शिक्षा नीति के तहत प्राथमिक शिक्षा का भार भी काम के बोझ तले दबी हुई आँगनवाड़ी महिलकर्मियों को सौंपकर उनके सस्ते श्रम की लूट को बढ़ावा देना है। पोषाहार वितरण, नियमित सर्वे, बीएलओ, जानवरों के सर्वे, टीकाकरण इत्यादि ज़िम्मेदारियों के बाद अब आँगनवाड़ीकर्मी प्राथमिक शिक्षा देने का कार्यभार भी सँभालेंगी! अर्थात “स्वयंसेवा” के नाम पर दिये जा रहे मामूली मानदेय पर अब उन्हें सरकारी स्कूलों के शिक्षकों का काम भी निबटाना होगा! और सरकार शिक्षकों की छँटनी कर उनके काम कौड़ियों के दाम में आँगनवाड़ीकर्मी से करायेगी! केजरीवाल महोदय का कहना है कि दिल्ली के स्कूलों का जिस प्रकार आप सरकार ने “उद्धार” किया है उसी प्रकार अब आँगनवाड़ी केन्द्रों का भी “उद्धार” किया जाएगा! आम आदमी पार्टी के इस दावे कि पहले तथ्यों से जाँच कर लें कि दिल्ली के स्कूलों में क्या बदलाव आये हैं फिर दिल्ली सरकार के तहत समेकित बाल विकास परियोजना द्वारा दी जा रही सुविधाओं की हक़ीक़त पर भी चर्चा करेंगे।
2015 के अपने चुनावी घोषणापत्र में ‘आप’ ने वायदा किया था कि दिल्ली में 500 नये स्कूल खोले जायेंगे। एक आरटीआई के जवाब में मिली सरकारी जानकारी के अनुसार फ़रवरी 2015 से मई 2022 के दौरान दिल्ली में केवल 63 नये स्कूल खोले गये हैं। शिक्षा के लिए एकीकृत ज़िला सूचना प्रणाली (यूडीआईएसई) पर मौजूद डेटा के अनुसार दिल्ली सरकार के तहत आने वाले 1027 स्कूलों में केवल 203 स्कूलों में प्रधानाचार्य या कार्यकारी प्रधानाचार्य मौजूद हैं। एक के अन्य आरटीआई के अनुसार दिल्ली सरकार के तहत आने वाले स्कूलों में शिक्षकों के 50 फ़ीसदी पद खाली पड़े हैं। एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार 40 फ़ीसदी स्कूलों में क्लासरूम की कमी है। अपने इसी मॉडल पर अपनी पीठ थपथपाते केजरीवाल महोदय ने इस साल की शुरुआत में 30 शिक्षकों को फ़िनलैण्ड भेजने की घोषणा की थी! पहले दिल्ली सरकार के स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं, शिक्षकों व कक्षा-कक्षों की उपलब्धता को दुरुस्त करने की बजाय केजरीवाल भी मोदी की तरह हवा-हवाई दावे करना और हवाई क़िले बनाने में माहिर है। है। जितना प्रभावशाली दिल्ली सरकार का यह 35 खिलौनों वाला किट नहीं है उससे ज्यादा इसका ढिंढोरा पीट दिया गया है।
दिल्ली में मौजूद तकरीबन 10,755 आँगनवाड़ी केन्द्रों के हालात भी कुछ अलग नहीं हैं। दिल्ली के आँगनवाड़ी केन्द्रों पर कार्यरत महिलाकर्मियों के हालात की चर्चा से पहले समेकित बाल विकास परियोजना द्वारा दी जा रही सुविधाओं की असलियत देखते हैं। दिल्ली के सभी आँगनवाड़ी केन्द्र किराये के कमरों में चलते हैं, जिनके किराये का भुगतान भी सही समय से नहीं होता है और ख़ामियाज़ा आँगनवाड़ीकर्मियों को भुगतना पड़ता है। आँगनवाड़ी केन्द्र में ज़रूरी बुनियादी चीज़ों का इन्तज़ाम भी अक्सर आँगनवाड़ीकर्मी अपने मामूली से मानदेय से करती हैं। इसका एक उदाहरण महिला एवं बाल विकास विभाग, दिल्ली सरकार द्वारा कोरोना के दौर में जारी किया एक अनौपचारिक ऑर्डर था, जिसके तहत आँगनवाड़ीकर्मियों को ख़ुद ही फ़ण्ड जुटाकर अपने इलाक़ों में मास्क और सैनिटाइज़र बाँटने को कहा गया था। अब केजरीवाल महोदय जिस ‘खेल पिटारा’ को बाँटकर ढिंढोरा पीट रहे हैं, वे आँगनवाड़ी केन्द्रों की बुनियादी ज़रूरत है जिसे मुहैया कराने में सरकार को इतना अधिक समय लगना ही नहीं चाहिए था! दिल्ली के आँगनवाड़ी केन्द्रों में आने वाले बच्चों के लिए सरकार अपनी तरफ से खिलौने व शिक्षा-सम्बन्धी संसाधन प्रदान करने के वक़्त हाथ खड़े कर लेती थी या आँगनवाड़ीकर्मियों को एनजीओ के भरोसे छोड़ दिया करती थी।
आँगनवाड़ी केन्द्रों को प्राथमिक शिक्षा की बुनियाद बनाने से पहले केजरीवाल महोदय को समेकित बाल विकास परियोजना की पोषाहार-सम्बन्धी मौजूदा ज़िम्मेदारियों की भी समीक्षा कर लेनी चाहिए। आँगनवाड़ी केन्द्रों में बाँटे जा रहे पके हुए भोजन की गुणवत्ता इतनी बेकार होती है कि ज़्यादातर लाभार्थी उसे लेने में भी हिचकते हैं। इण्डियन एक्सप्रेस की 2017 की एक ख़बर के अनुसार आँगनवाड़ी केन्द्रों में खाना सप्लाई करने वाले ऐसे तीन एनजीओ के पास आज भी आईसीडीएस के टेण्डर हैं जिनके वर्ष 2013 में ही सरकारी स्कूल के टेण्डर इसलिए ख़ारिज कर दिये गये थे क्योंकि खाने की गुणवत्ता असन्तोषजनक थी। हाल ही में किये एक अन्य सैम्पल सर्वे के दौरान 5 किचन की जाँच-पड़ताल की गयी जिनमें से 3 किचन में साफ-सफ़ाई और भोजन की गुणवत्ता चिन्ताजनक थी। यह अनायास ही नहीं है कि 5वें राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार दिल्ली में 5 वर्ष से कम के 21.8 प्रतिशत बच्चे सामान्य से कम वज़न वाले हैं, 15 से 49 वर्ष की 49.9 फ़ीसदी महिलाएँ खून की कमी से ग्रसित हैं और 6 से 59 माह के 69.2 फ़ीसदी बच्चे खून की कमी का शिकार हैं। कुपोषित और अविकसित बच्चों की जानकारी भी सरकार जिस प्रकार महिलाकर्मियों से ज़बरदस्ती तैयार करवाती है, उसके हिसाब से यह आँकड़े भी पूरी तस्वीर पेश नहीं करते हैं।
समेकित बाल बाल विकास परियोजना के नाम पर भारत सरकार विश्व बैंक से करोड़ों का फ़ण्ड लेती है। लेकिन देशव्यापी स्तर पर देखा जाये तो आँगनवाड़ी केन्द्रों में दी जाने वाली सुविधाएँ और केन्द्रों में कार्यरत महिलाकर्मियों, दोनों की ही स्थितियाँ प्रश्नों के घेरे में हैं। पहले से ही काम के बोझ तले दबी हुई आँगनवाड़ीकर्मियों से अब शिक्षक का काम भी लेकर उन्हें “स्वयंसेविकाओं” के अनुरूप मानदेय थमाया जायेगा। यही आँगनवाड़ीकर्मी जब अपने केन्द्रों पर बँटने वाले खाने की गुणवत्ता पर सवाल उठा देंगी तो इन्हें बर्ख़ास्त कर दिया जाएगा, वाजिब मेहनताना पाने का संघर्ष करेंगी तो उसे “हिंसक” घोषित कर दिया जाएगा। ज़ाहिरा तौर पर, समेकित बाल विकास परियोजना के लाभार्थियों को लेकर केजरीवाल की चिन्ता महज़ दिखावा है। आँगनवाड़ीकर्मियों को विदेशों में ट्रेनिंग के लिए भेजने से पहले दिल्ली सरकार को चाहिए कि जिन आँगनवाड़ी केन्द्रों पर सरकार की जन-विरोधी नीतियों की वजह से आँगनवाड़ीकर्मी ग़ैर-क़ानूनी रूप से बर्ख़ास्त हैं और लाभार्थी परेशान हैं, उनकी तुरन्त बहाली के लिए कदम उठाया जाये। दूसरा, कोरोना काल के बाद किचन से मिलने वाले घटिया गुणवत्ता के पोषाहार में सुधार किया जाये और आँगनवाड़ी केन्द्रों की आधारभूत संरचना में सुधार किया जाये। आँगनवाड़ी केन्द्रों का मौजूदा ख़स्ताहाल ढाँचा सुधारे बिना विदेशों के दौरे करवाना महज़ एक नौटंकी है।
मज़दूर बिगुल, अगस्त 2023
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