1999 के भारत के ‘क्रीडो’ मतावलम्बी
पार्टी-पत्रों की प्रकृति के बारे में आपके विभ्रमों की जड़ यह है कि आप न तो पार्टी-गठन न तो पार्टी-निर्माण के बीच का भेद समझते हैं, न ही इनके अन्तर्सम्बन्धों को जानते हैं। ‘एजिटेशलन ऑर्गन’ के रूप में आप यदि पत्र निकालते भी हैं तो पूरी जनता के लिए – ”सर्ववर्ग समभाव” के साथ! आम राजनीतिक-आर्थिक मसलों व नागरिक अधिकार के मसलों पर औसत बुद्धिजीवी, औसत मज़दूर – सभी को एक साथ ”शिक्षित” करते हैं! मज़दूर वर्ग को सीधो विचारधारात्मक शिक्षा देने में आपको लाज लगती है। आप समझते हैं कि आप मज़दूरों के आन्दोलनों में (वह भी निहायत अराजक व बचकाने ढंग से) भाग लेते हुए गाड़ी के पीछे घोड़ा जोतते रहेंगे और उनके बीच अपना उपरोक्त चरित्र का अख़बार देते रहेंगे तो औसत मज़दूर उन्नत हो जायेगा और आप तक और विचारधारा तक स्वयं पहुँच जायेगा। आज की परिस्थिति में आप इतना ही करेंगे। कल जब मज़दूर आम हड़ताली की चेतना से आगे ख़ुद बढ़ जायेगा तो आप उसे विचारधारा और संगठन का झण्डा थमा देंगे। आप शेखचिल्ली तो हैं मगर एक कायर शेखचिल्ली हैं!