माँगपत्रक शिक्षणमाला – 2 कार्य-दिवस का प्रश्न मज़दूर वर्ग के लिए एक महत्वपूर्ण राजनीतिक प्रश्न है, महज़ आर्थिक नहीं
मज़दूर वर्ग का एक बड़ा हिस्सा अपनी राजनीतिक चेतना की कमी के चलते इस माँग को ज़रूरत से ज्यादा माँगना समझ सकता है। लेकिन हमें यह बात समझनी होगी कि मानव चेतना और सभ्यता के आगे जाने के साथ हर मनुष्य को यह अधिकार मिलना चाहिए कि वह भी भौतिक उत्पादन के अतिरिक्त सांस्कृतिक, बौध्दिक उत्पादन और राजनीति में भाग ले सके; उसे मनोरंजन और परिवार के साथ वक्त बिताने का मौका मिलना चाहिए। दरअसल, यह हमारा मानवाधिकार है। लेकिन लम्बे समय तक पूँजीपति वर्ग ने हमें पाशविक स्थितियों में रहने को मजबूर किया है और हमारा अस्तित्व महज़ पाशविक कार्य करने तक सीमित होकर रह गया है, जैसे कि भोजन करना, प्रजनन करना, आदि। लेकिन मानव होने का अर्थ क्या सिर्फ यही है? हम जो दुनिया के हरेक सामान को बनाते हैं, यह अच्छी तरह से जानते हैं कि दुनिया आज हमारी मेहनत के बूते कहाँ पहुँच चुकी है। लेकिन हम अपनी ही मेहनत के इन शानदार फलों का उपभोग नहीं कर सकते। ऐसे में अगर हम इन पर हक की माँग करते हैं तो इसमें नाजायज़ क्या है? इसलिए हमें इनसान के तौर पर ज़िन्दगी जीने के अपने अधिकार को समझना होगा। हम सिर्फ पूँजीपतियों के लिए मुनाफा पैदा करने, जानवरों की तरह जीने और फिर जानवरों की तरह मर जाने के लिए नहीं पैदा हुए हैं। जब हम यह समझ जायेंगे तो जान जायेंगे कि हम कुछ अधिक नहीं माँग रहे हैं। इसलिए हमारी दूरगामी माँग है – ‘काम के घण्टे छह करो!’ और हम छह घण्टे के कार्य-दिवस का कानून बनाने के लिए संघर्ष करेंगे।