मज़दूर अख़बार – किस मज़दूर के लिए?
(क्रान्तिकारी राजनीतिक प्रचार की कुछ समस्याएँ)
लेनिन
अनुवाद : आलोक रंजन
सभी देशों में मज़दूर आन्दोलन का इतिहास यह दिखाता है कि मज़दूर वर्ग के उन्नततर संस्तर ही समाजवाद के विचारों को अपेक्षतया अधिक तेज़ी के साथ और अधिक आसानी के साथ अपनाते हैं। इन्हीं के बीच से, मुख्य तौर पर, वे अग्रवर्ती मज़दूर आते हैं, जिन्हें प्रत्येक मज़दूर आन्दोलन आगे लाता है, वे मज़दूर जो मेहनतकश जन-समुदाय का विश्वास जीत सकते हैं, जो ख़ुद को पूरी तरह सर्वहारा वर्ग की शिक्षा और संगठन के कार्य के लिए समर्पित करते हैं, जो सचेतन तौर पर समाजवाद को स्वीकार करते हैं और यहाँ तक कि, स्वतन्त्र रूप से समाजवादी सिद्धान्तों को निरूपित कर लेते हैं। हर सम्भावनासम्पन्न मज़दूर आन्दोलन ऐसे मज़दूर नेताओं को सामने लाता रहा है, अपने प्रूधों और वाइयाँ, वाइटलिंग और बेबेल पैदा करता रहा है। और हमारा रूसी मज़दूर आन्दोलन भी इस मामले में यूरोपीय आन्दोलन से पीछे नहीं रहने वाला है। आज जबकि शिक्षित समाज ईमानदार, ग़ैरक़ानूनी साहित्य में दिलचस्पी खोता जा रहा है, मज़दूरों के बीच ज्ञान के लिए और समाजवाद के लिए एक उत्कट अभिलाषा पनप रही है, मज़दूरों के बीच से सच्चे वीर सामने आ रहे हैं, जो अपनी नारकीय जीवन-स्थितियों के बावजूद, जेलख़ाने की मशक्कत जैसे कारख़ाने के जड़ीभूत कर देने वाले श्रम के बावजूद, ऐसा चरित्र और इतनी इच्छाशक्ति रखते हैं कि लगातार अध्ययन, अध्ययन और अध्ययन के काम में जुटे रहते हैं और ख़ुद को सचेतन सामाजिक-जनवादी (कम्युनिस्ट) – ”मज़दूर बौद्धिक” बना लेते हैं। रूस में ऐसे ”मज़दूर बौद्धिक” अभी भी मौजूद हैं और हमें हर मुमकिन कोशिश करनी चाहिए कि इनकी कतारें लगातार बढ़ती रहें, इनकी उन्नत मानसिक ज़रूरत पूरी होती रहे और कि, इनकी पाँतों से रूसी सामाजिक जनवादी मज़दूर पार्टी (रूसी कम्युनिस्ट पार्टी का तत्कालीन नाम) के नेता तैयार हों। जो अख़बार सभी रूसी सामाजिक जनवादियों (कम्युनिस्टों) का मुखपत्र बनना चाहता है, उसे इन अग्रणी मज़दूरों के स्तर का ही होना चाहिए, उसे न केवल कृत्रिम ढंग से अपने स्तर को नीचा नहीं करना चाहिए, बल्कि उल्टे उसे लगातार ऊँचा उठाना चाहिए, उसे विश्व सामाजिक-जनवाद (यानी विश्व कम्युनिस्ट आन्दोलन) के सभी रणकौशलात्मक, राजनीतिक और सैद्धान्तिक समस्याओं पर ध्यान देना चाहिए। केवल तभी मज़दूर बौद्धिकों की माँगें पूरी होंगी, और वे रूसी मज़दूरों के और परिणामत: रूसी क्रान्ति के ध्येय को अपने हाथों में ले लेंगे।
संख्या में कम अग्रणी मज़दूरों के संस्तर के बाद औसत मज़दूरों का व्यापक संस्तर आता है। ये मज़दूर भी समाजवाद की उत्कट इच्छा रखते हैं, मज़दूर अध्ययन-मण्डलों में भाग लेते हैं, समाजवादी अख़बार और किताबें पढ़ते हैं, आन्दोलनात्मक प्रचार-कार्य में भाग लेते हैं और उपरोक्त संस्तर से सिर्फ़ इसी बात में अलग होते हैं कि ये सामाजिक जनवादी मज़दूर आन्दोलन के पूरी तरह स्वतन्त्र नेता नहीं बन सकते। जिस अख़बार को पार्टी का मुखपत्र होना है, उसके कुछ लेखों को औसत मज़दूर नहीं समझ पायेगा, जटिल सैद्धान्तिक या व्यावहारिक समस्या को पूरी तरह समझ पाने में वह सक्षम नहीं होगा। लेकिन इसका यह मतलब क़तई नहीं निकलता कि अख़बार को अपना स्तर अपने व्यापक आम पाठक समुदाय के स्तर तक नीचे लाना चाहिए। इसके उलट, अख़बार को उनका स्तर ऊँचा उठाना चाहिए, और मज़दूरों के बीच के संस्तर से अग्रणी मज़दूरों को आगे लाने में मदद करनी चाहिए। स्थानीय व्यावहारिक कामों में डूबे हुए और मुख्यत: मज़दूर आन्दोलन की घटनाओं में तथा आन्दोलनात्मक प्रचार की फौरी समस्याओं में दिलचस्पी लेने वाले ऐसे मज़दूरों को अपने हर क़दम के साथ पूरे रूसी मज़दूर आन्दोलन का, इसके ऐतिहासिक कार्यभार का और समाजवाद के अन्तिम लक्ष्य का विचार जोड़ना चाहिए। अत: उस अख़बार को, जिसके अधिकांश पाठक औसत मज़दूर ही हैं, हर स्थानीय और संकीर्ण प्रश्न के साथ समाजवाद और राजनीतिक संघर्ष को जोड़ना चाहिए।
और अन्त में, औसत मज़दूरों के संस्तर के बाद वह व्यापक जनसमूह आता है जो सर्वहारा वर्ग का अपेक्षतया निचला संस्तर होता है। बहुत मुमकिन है कि एक समाजवादी अख़बार पूरी तरह या तक़रीबन पूरी तरह उनकी समझ से परे हो (आख़िरकार पश्चिमी यूरोप में भी तो सामाजिक जनवादी मतदाताओं की संख्या सामाजिक जनवादी अख़बारों के पाठकों की संख्या से कहीं काफ़ी ज़्यादा है), लेकिन इससे यह नतीजा निकालना बेतुका होगा कि सामाजिक जनवादियों के अख़बार को, अपने को मज़दूरों के निम्नतम सम्भव स्तर के अनुरूप ढाल लेना चाहिए। इससे सिर्फ़ यह नतीजा निकलता है कि ऐसे संस्तरों पर राजनीतिक प्रचार और आन्दोलनपरक प्रचार के दूसरे साधनों से प्रभाव डालना चाहिए – अधिक लोकप्रिय भाषा में लिखी गयी पुस्तिकाओं, मौखिक प्रचार तथा मुख्यत: स्थानीय घटनाओं पर तैयार किये गये परचों के द्वारा। सामाजिक जनवादियों को यहीं तक सीमित नहीं रखना चाहिए, बहुत सम्भव है कि मज़दूरों के निम्नतर संस्तरों की चेतना जगाने के पहले क़दम क़ानूनी शैक्षिक गतिविधियों के रूप में अंजाम दिये जायें। पार्टी के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण है कि वह इन गतिविधियों को इस्तेमाल करे इन्हें उस दिशा में लक्षित करे जहाँ इनकी सबसे अधिक ज़रूरत है; क़ानूनी कार्यकर्ताओं को उस अनछुई ज़मीन को जोतने के लिए भेजे, जिस पर बाद में सामाजिक जनवादी प्रचारक संगठनकर्ता बीज बोने का काम करने वाले हों। बेशक़ मज़दूरों के निम्नतर संस्तरों के बीच प्रचार-कार्य में प्रचारकों को अपनी निजी विशिष्टताओं, स्थान, पेशा (मज़दूरों के काम की प्रकृति) आदि की विशिष्टताओं का उपयोग करने की सर्वाधिक व्यापक सम्भावनाएँ मिलनी चाहिए। बर्नस्टीन के ख़िलाफ़ अपनी पुस्तक में काउत्स्की लिखते हैं, ”रणकौशल और आन्दोलनात्मक प्रचार-कार्य को आपस में गड्डमड्ड नहीं किया जाना चाहिए। आन्दोलनात्मक प्रचार का तरीक़ा व्यक्तिगत और स्थानीय परिस्थितियों के अनुकूल होना चाहिए। आन्दोलनात्मक प्रचार-कार्य में हर प्रचारक को वे तरीक़े अपनाने की छूट होनी चाहिए, जो वह अपने लिए ठीक समझे : कोई प्रचारक अपने जोशो-ख़रोश से सबसे अधिक प्रभावित करता है, तो कोई दूसरा अपने तीखे कटाक्षों से, जबकि तीसरा ढेरों मिसालें देकर, वग़ैरह-वग़ैरह। प्रचारक के अनुरूप होने के साथ ही, आन्दोलनात्मक प्रचार जनता के भी अनुरूप होना चाहिए। प्रचारक को ऐसे बोलना चाहिए कि सुनने वाले उसकी बातें समझें; उसे शुरुआत ऐसी किसी चीज़ से करनी चाहिए, जिससे श्रोतागण बख़ूबी वाक़िफ़ हों। यह सब कुछ स्वत:स्पष्ट है और यह सिर्फ़ किसानों के बीच आन्दोलनात्मक प्रचार पर ही लागू नहीं होता। गाड़ी चलाने वालों से उस तरह बात नहीं होती, जिस तरह जहाज़ियों से और जहाज़ियों से वैसे बात नहीं होती जैसे छापाख़ाने के मज़दूरों से। आन्दोलनात्मक प्रचार-कार्य व्यक्तियों के हिसाब से होना चाहिए, लेकिन हमारा रणकौशल-हमारी राजनीतिक गतिविधियाँ एक-सी ही होनी चाहिए” (पृ. 2-3)। सामाजिक जनवादी सिद्धान्त के एक अगुवा प्रतिनिधि के इन शब्दों में पार्टी की आम गतिविधि के एक अंग के तौर पर आन्दोलनात्मक प्रचार-कार्य का एक बेहतरीन आकलन निहित है। ये शब्द साफ़ कर देते हैं कि उन लोगों के सन्देह कितने निराधार हैं, जो यह सोचते हैं कि राजनीतिक संघर्ष चलाने वाली क्रान्तिकारी पार्टी का गठन आन्दोलनात्मक प्रचार-कार्य में बाधक होगा, उसे पृष्ठभूमि में डाल देगा और प्रचारकों की स्वतन्त्रता को सीमित कर देगा। इसके विपरीत, केवल एक संगठित पार्टी ही व्यापक आन्दोलनात्मक प्रचार का कार्य चला सकती है, सभी आर्थिक और राजनीतिक प्रश्नों पर प्रचारकों को आवश्यक मार्गदर्शन (और सामग्री) दे सकती है, आन्दोलनात्मक प्रचार-कार्य की हर स्थानीय सफलता का उपयोग पूरे रूस के मज़दूरों की शिक्षा के लिए कर सकती है, प्रचारकों को ऐसे स्थानों पर या ऐसे लोगों के बीच भेज सकती है, जहाँ वे सबसे ज़्यादा कामयाब ढंग से काम कर सकते हों। केवल एक संगठित पार्टी में ही आन्दोलनात्मक प्रचार की योग्यता रखने वाले लोग अपने को पूरी तरह इस काम के लिए समर्पित करने की स्थिति में होंगे, जो आन्दोलनात्मक प्रचार-कार्य के लिए फ़ायदेमन्द तो होगा ही, सामाजिक जनवादी कार्य के दूसरे पहलुओं के लिए भी हितकारी होगा। इससे पता चलता है कि जो व्यक्ति आर्थिक संघर्ष के पीछे राजनीतिक प्रचार और राजनीतिक आन्दोलनात्मक प्रचार को भुला देता है, जो मज़दूर आन्दोलन को एक राजनीतिक पार्टी के संघर्ष में संगठित करने की आवश्यकता को भुला देता है, वह और सब बातों के अलावा, सर्वहारा के निम्नतर संस्तरों को मज़दूर वर्ग के लक्ष्य की ओर तेज़ी से और सफलतापूर्वक आकर्षित करने के अवसर से ख़ुद को वंचित कर लेता है।
(1899 के अन्त में लिखित लेनिन के लेख ‘रूसी सामाजिक जनवाद में एक प्रतिगामी प्रवृत्ति’ का एक अंश। संग्रहीत रचनाएँ, अंग्रेज़ी संस्करण, खण्ड 4, पृ. 280-283)।
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मज़दूरों के महान नेता लेनिन