शहरी ग़रीबों में बीमारियों और कुपोषण की स्थिति चिन्तनीय
दिल्ली के शाहाबाद डेयरी की मज़दूर बस्ती में मेडिकल कैम्प में आये डॉक्टरों की राय
बिगुल संवाददाता
शहरी ग़रीबों की भारी आबादी आज बीमारियों, कुपोषण तथा इलाज के अभाव की शिकार है। राजधानी दिल्ली के लाखों मज़दूर कमरतोड़ काम करने के बाद भी स्वास्थ्य की बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं। स्त्रियों में ख़ून की कमी तथा बच्चों में कुपोषण से पैदा होने वाले रोगों की स्थिति चिन्तनीय है और पुरुषों में भी विभिन्न प्रकार के रोगों का प्रतिशत बहुत अधिक है। स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुँच मुश्किल और महँगी होती जा रही है। ऊपर से सरकारी अस्पतालों में भारी भीड़, दवाओं के न मिलने तथा खाने-पीने की चीज़ों की भीषण महँगाई ने मेहनतकश आबादी के बीच स्वास्थ्य की समस्या को और भी गम्भीर बना दिया है।
पिछले दिनों बाहरी दिल्ली के शाहाबाद डेयरी इलाके की मज़दूर बस्ती में आयोजित दो दिन के निःशुल्क मेडिकल कैम्प के दौरान यह बात और भी तीखेपन के साथ उभरकर सामने आयी। शहीद भगतसिंह पुस्तकालय, नौजवान भारत सभा, और स्त्री मज़दूर संगठन द्वारा जागरूक नागरिक मंच के सहयोग से आयोजित इस दो दिवसीय कैम्प में करीब 850 लोगों की जाँच की गयी। कैम्प में लुधियाना से आये डॉ. अमृतपाल, मौलाना आज़ाद मेडिकल कॉलेज दिल्ली के डॉ. जुगलकिशोर, डॉ. नेहा, डॉ. पल्लवी, डॉ. मीनाक्षी और दिल्ली के एक निजी अस्पताल की वरिष्ठ स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. रीता कोहली ने मरीजों की जाँच की। अनेक डॉक्टरों और कुछ शुभचिन्तक नागरिकों की मदद से जुटायी गयी दवाएँ भी मरीज़ों को निःशुल्क दी गयीं। कैम्प में आने वाले लोगों को स्वास्थ्यसम्बन्धी उनके अधिकारों के बारे में भी बताया गया। यह कैंप पूरी तरह से स्थानीय लोगों की सहायता से ही लगाया गया था। कैंप से पहले इलाके में पर्चा बांट कर लोगों को उनके अधिकारों के बारे में बताया गया और मेडिकल कैंप में आने की अपील की गयी।
इस मौक़े पर मरीज़ों, नागरिकों तथा डाक्टरों के साथ हुई चर्चा में कहा गया कि संविधान में लोगों को स्वास्थ्य देखभाल और पोषण की अच्छी सुविधाएँ उपलब्ध कराने का वादा किया गया था। उच्चतम न्यायालय ने भी स्वास्थ्य के अधिकार को जीने के मूलभूत अधिकार का अविभाज्य अंग बताया है। लेकिन सरकार इस वादे से मुकर गयी है। करों की भारी उगाही का भारी हिस्सा नेताशाही और अफसरशाही के बढ़ते ख़र्चों पर और पूँजीपतियों को तरह-तरह के लाभ देने पर उड़ा दिया जाता है लेकिन जनता की बुनियादी सुविधाओं तक में कटौती की जा रही है। इसकी सबसे अधिक मार ग़रीबों, औरतों और बच्चों पर पड़ रही है।
सरकारी अस्पतालों और डिस्पेंसरियों का हाल बुरा है। स्टाफ की कमी है। टेस्ट कोई होता है, कोई नहीं, किसी टेस्ट की मशीन खराब है तो किसी की मशीन है ही नहीं। दवाइयों की सरकारी सप्लाई बहुत कम हो गयी है, जो थोड़ी-बहुत दवाएँ आती भी हैं उनका बड़ा हिस्सा स्वास्थ्य विभाग के भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता है। आबादी के हिसाब से अस्पताल बहुत ही कम हैं। निजी अस्पताल और नर्सिंग होम बढ़ते जा रहे हैं। देशभर में सरकारी अस्पतालों में डाक्टरों, लैब तकनीशियनों, नर्सों के हज़ारों पद खाली पड़े हैं। इस वजह से वहाँ भारी भीड़ होती है।
कैम्प स्थल के बाहर जनता के स्वास्थ्य के अधिकार पर एक पोस्टर प्रदर्शनी भी लगायी थी। इसमें संविधान में वर्णित जीवन के अधिकार, देश में स्वास्थ्य की स्थिति, डॉक्टरों और दवा कम्पनियों की लूट, स्वास्थ्य सुविधाओं के निजीकरण और इसके नतीजों आदि के बारे में आँकड़ों, तस्वीरों तथा कार्टूनों के ज़रिये बताया गया था। इसमें यह जानकारी भी दी गयी थी कि जिन देशों में समाजवाद आया वहाँ किस तरह से बहुत कम समय में ही पूरी जनता को बेहतरीन और मुफ़्त स्वास्थ्य सुविधा मुहैया करायी गयी थी। वहाँ मौजूद कार्यकर्ताओं ने लोगों के साथ बातचीत में कहा कि मेहनतकश अवाम को स्वास्थ्य के बुनियादी अधिकार के लिए एकजुट होकर लड़ना होगा। यह एक लम्बी लड़ाई होगी, लेकिन लड़े बगैर कुछ भी हासिल नहीं होता। हमें स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण पर रोक, सरकारी अस्पतालों के विस्तार और डॉक्टरों एवं स्टाफ की कमी को दूर करने की माँग उठानी होगी। हमें पूरी आबादी के लिए सरकारी खर्चे से अनिवार्य स्वास्थ्य बीमा, और निःशुल्क दवा-इलाज की सरकारी सुविधा की माँग उठानी होगी। दवा कम्पनियों की लूट पर रोक और सरकारी दवा कम्पनियां खोलने की माँग भी उठानी होगी।
उन्होंने बताया कि हर तरफ पैसे की पूजा के इस माहौल में ज़्यादातर डॉक्टर भी इंसान की ज़िन्दगी बचाने के बजाय दोनों हाथों से पैसा बटोरने में लगे हुए हैं, फिर भी कुछ ऐसे डॉक्टर हैं जो सेहत का व्यापार करने के बजाय अपने पेशे के प्रति ईमानदार बने हुए हैं और जनता की सेवा को अपना बुनियादी फ़र्ज़ समझते हैं। ऐसे ही कुछ डॉक्टरों की मदद से मज़दूर बस्तियों में ऐसे मेडिकल कैम्प आयोजित किये जाते हैं। इन कैम्पों में डॉक्टरी जांच तथा सलाह एवं दवाओं के साथ मरीजों और उनके परिजनों को यह जानकारी भी दी जाती है कि रोगों से कैसे बचें और गलत धारणाओं तथा अन्धविश्वासों के चक्कर में न पड़कर स्वास्थ्य के प्रति वैज्ञानिक नज़रिया कैसे अपनायें।
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- आबादी के हिसाब से दुनिया में सबसे ज़्यादा बीमारियाँ भारत में ही होती हैं।
- भारत में सबसे ज्यादा 18 प्रतिशत बच्चों का वज़न कम है। जन्म के समय होने वाली बच्चों और माँओं की मौतों के मामले में भारत छोटे-छोटे देशों से भी आगे है।
- लेकिन दवा-इलाज पर खर्च के मामले में भारत सबसे पीछे रहने वाले देशों में है। श्रीलंका, नेपाल, पाकिस्तान और अफ्रीका के कई बेहद ग़रीब मुल्क भी हमसे आगे हैं।
- स्वास्थ्य पर प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष भारत सरकार केवल 1377 रुपये खर्च करती है। आज भी बीमार पड़ने पर 20 प्रतिशत जनता को इलाज कराने के चक्कर में अपना सामान, ज़मीन बेचनी पड़ जाती है।
- डॉ. नरेंद्र गुप्त कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार अगर सरकार हर साल हर आदमी पर केवल 287 रुपये खर्च बढ़ा दे और भ्रष्टाचार न हो तो हर आदमी को इलाज की सुविधा मिल सकती है।
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मज़दूर बिगुल, दिसम्बर 2013
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