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भूमण्डलीकरण को ‘मानवीय’ बनाने में जुटे संसदीय वामपंथियों का असली अमानवीय चेहरा

भूमण्डलीकरण के चेहरे को मानवीय बनाने में जुटे संसदमार्गी वामपंथियों का असली चरित्र भी लोगों के सामने बिल्कुल साफ हो चुका है। पिछले एक साल में पश्चिम बंगाल के 14 चायबागानों में भुखमरी से 320 श्रमिकों की मौत से एक बार फिर यही साबित हुआ है कि अपने को आम लोगों की असली पार्टी बताने वाले संसदीय वाम के नंबरदार किस तरह इस पूंजीवादी व्यवस्था को ‘‘मानवीय’’ बनाते–बनाते खुद अमानवीय हो गये हैं।

मजदूर और मालिक में दस अन्तर

मजदूर की जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है वह अंगूर की तरह सूखकर किशमिश बन जाता है । मालिक की उम्र बढ़ती है तो वह सुअर की तरह चर्बीदार होकर बेडौल हो जाता है तथा लकड़बग्घे की तरह फैक्ट्री से घर और घर से फैक्ट्री दौड़ते-दौड़ते नीरस हो जाता है ।