लुधियाना में भारती डाइंग मिल में हादसे में मज़दूरों की मौत और इंसाफ़ के लिए मजदूरों का एकजुट संघर्ष

ludhiyanaलुधियाना के मेहरबान में (राहों रोड) स्थित भारती डाईंग नाम के कारखाने में 22 अगस्त को डाईंग मशीन में धमाका होने से निरंजन (22 साल) और सुरेश (40 साल) नाम के दो मज़दूर बुरी तरह से ज़ख्मी हो गए। कई दिनों तक अस्पताल में जिन्दगी-मौत की लड़ाई लड़ते हुए 25 अगस्त को सुरेश और 27 को निरंजन की मौत हो गई। इसे सिर्फ एक हादसा कह देना ठीक नहीं होगा। यह मुनाफाखोर व्यवस्था के हाथों निर्मम हत्याएँ हैं।

लुधियाना के अन्य कारखानों की तरह भारती डाईंग में भी हादसों से सुरक्षा के जरूरी इंजताम नहीं हैं। मशीनों की जरूरत के मुताबिक मुरम्मत नहीं करवाई जाती। अत्यधिक तापमान की वजह के डाईंग मशीन के फटने का हर समय डर बना रहता था। लेकिन कारखाना मालिक को तो सिर्फ मुनाफा दिखाई देता था। श्रम कानूनों को जरा भी इस कारखाने में लागू नहीं किया जाता। मजदूरों की सुरक्षा की उसे कोई परवाह नहीं थी। मुनाफाखोरी के अंधे किए मालिक की आपराधिक लापरवाही के चलते ही मशीन फटने की घटना घटी।

मशीन फटने के बाद भी अगर दोनों मजदूरों के इलाज पर कारखाना मालिक दिलचस्पी दिखाता तो शायद उनकी जान बच जाती। पता चला है कि शुरू में कुछ पैसा जमा करवाने के बाद मालिक ने अस्पताल को पैसा देना बन्द कर दिया। इसके कारण सी.एम.सी. अस्पताल वालों ने भी निरंजन और सुरेश का इलाज करना बन्द कर दिया और उनकी मौत हो गई।

मजदूरों की मौत होने के बाद भी मालिक ने अमानवीय रुख नहीं त्यागा। मालिक ने पीड़ित परिवारों को मुआवजा देने से साफ़ इनकार कर दिया। निरंजन के रिश्तेदारों को मालिक ने अपने घर बुलाकर बेइज्ज़त किया। मुआवजे के नाम पर वह दोनों परिवारों को 25-25 हजार देने तक ही तैयार हुआ। पीड़ित परिवारों ने मालिक को कहा कि उन्हें भीख नहीं चाहिए बल्कि अपना हक चाहिए। मालिक ने उचित मुआवजा देने से देने से साफ मना कर दिया। सुरेश का परिवार कहाँ गया, उसका इलाज कब और कहाँ किया गया इसके बारे में कोई जानकारी नहीं मिली। निरंजन का परिवार उत्तर प्रदेश से काफी देर से 30 को ही लुधियाना पहुँचा। जान-पहचान वाले अन्य मजदूरों ने पुलिस के पास जाकर इंसाफ़ लेने की सोची।

इनमें से किसी मजदूर ने टेक्सटाईल-और भारती डाईंग के गेट पर धरना-प्रदर्शन किया। यह फैसला किया गया कि कोई भी नेता अकेले पुलिस या मालिकों से बात करके फैसला नहीं करेगा। पुलिस व मालिक से बातचीत में भी यूनियन के नेता, पीड़ित परिवार व लोगों द्वारा चुने कुछ अन्य व्यक्ति शामिल होंगे। अन्तिम फैसला पीड़ित परिवार को लेना है।

इस संघर्ष में शामिल अधिकतर लोगों के पहले किसी भी यूनियन के बारे में विचार साकारात्मक नहीं थे। लेकिन संघर्ष के दौरान टेक्सटाइल-हौज़री कामगार यूनियन के जनवादी ढंग-तरीके से वे काफी प्रभावित हुए। मजदूरों ने संघर्ष को नुकसान पहुँचाने की कोशिश करने वाले दलालों की पहचान की और उनकी चालों को नाकाम किया। पुलिस हमेशा की तरह मालिक का ही साथ दे रही थी। एकजुटता से पुलिस पर दबदबा बनाया गया। पुलिस ने मजदूरों को डराने के लिए ‘‘फोर्स’’ इस्तेमाल करने की धमकियाँ दीं। लेकिन मजदूर बार-बार दी जा रहीं धमकियों के बावजूद भी पुलिस चौंकी पर धारने-प्रदर्शन में डटे रहे और मालिक को थाने पर लाने के लिए मजबूर किया। मृतक निरंजन की बहन और चाचा ही यहाँ पहुँचे थे जिन्होंने एक लाख रूपए मुआवजे (संस्कार आदि का अलग से खर्चा) पर समझौता करने का निर्णय कर लिया। मजदूरों को इस बात का गहरा अहसास था कि भारती डाईंग के मालिक, जो कि इलाके में काफी अड़ियल मजदूर विरोधी मालिक के रूप में जाना जाता है, को झुका पाना एक बड़ी जीत है।

इस संघर्ष के दौरान मजदूरों की बुरी हालतों, इन हालतों के वास्तविक कारणों, एकजुटता बनाने की जरूरत आदि पर काफी बातचीत हुई जिसका उनकी चेतना पर काफी अच्छा असर गया। मजदूरों ने इस संघर्ष के दौरान यह अच्छी तरह से देखा और समझा के यूनियन का अर्थ वो नहीं है जो चुनावी पार्टियों के साथ जुड़ी दलाल यूनियनों और दलाल नेताओं ने बना दिया है। उन्होंने इस बात को जाना कि एक सच्ची यूनियन का क्या अर्थ होता है, यूनियन बनाने की कितनी बड़ी जरूरत है और इसका निर्माण सम्भव है।

मज़दूर बिगुल, अगस्‍त-सितम्‍बर 2015


 

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