मालवणी शराब काण्ड ने दिखाया पुलिस-प्रशासन-राजनेताओं का विद्रूप चेहरा

विराट

17 जून को मुम्बई में मालाड़ के मालवणी इलाक़े में हुई ज़हरीली शराब की दुर्घटना सैकड़ों ग़रीब परिवारों पर कहर बनकर टूटी। किसी-किसी घर में तो दो-दो लोगों की जानें भी गयीं। सरकारी आँकड़े 106 लोगों के मरने की बात करते हैं लेकिन हक़ीक़त इससे काफ़ी अलग है। बिगुल मज़दूर दस्ता के कार्यकर्ताओं द्वारा इलाक़े में सर्वे करने पर सामने आया कि असल में 150 से भी अधिक लोगों की मौतें हुई हैं। जिन लोगों की मौत घर पर या अस्पताल ले जाते समय हुई है, सरकारी आँकड़ों में ऐसी मौतों को शामिल नहीं किया गया है। सरकारी अस्पताल और पुलिस भी सही-सही आँकड़ा देने से कतरा रहे हैं। लोगों को राहत के नाम पर सरकार एक-एक लाख का मुआवज़ा दे रही है लेकिन यह पीड़ित परिवारों के साथ एक भद्दा मज़ाक़ ही है। राशन कार्ड आदि काग़ज़ात न होने के कारण बहुत से परिवारों को यह मुआवज़ा भी नहीं मिल पाया है। जिन लोगों को मुआवज़ा मिला भी है उनमें से लगभग आधे परिवार चेक लेकर हताशा में घूम रहे हैं क्योंकि चेक को डालने के लिए उनके पास अपने नाम का बैंक खाता नहीं है। काफ़ी लोग ऐसे भी हैं जिनकी इस दुर्घटना में जान नहीं गयी है लेकिन वे अपंग हो गये हैं – उनकी आँखों की रोशनी हमेशा के लिए चली गयी है; ऐसे लोगों को सरकार ने कोई मुआवज़ा नहीं दिया है।

malwaniविभिन्न चुनावी दलों के नेता घड़ियाली आँसू लिए बस्ती में घूम रहे हैं और सहायता के नाम पर दो-दो किलो आटा-चावल, 1 किलो चीनी अपने चुनाव चिह्न की चेपियाँ लगाकर बाँट रहे हैं और अपनी बेशर्मी की नुमाइश कर रहे हैं। मुख्यमन्त्री देवेन्द्र फड़नवीस योग करने और अमेरिका की यात्रा करने में व्यस्त हैं और राजधानी में इतनी बड़ी दुर्घटना होने पर पीड़ित परिवारों से मिलने में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है। ख़ुद को दलितों का रहनुमा बताने वाले “रैडिकल” संगठन बस्ती से लुप्त हैं, जबकि मरने वाले बहुसंख्यक लोग दलित पृष्ठभूमि से आते थे। जिस पुलिस के सहयोग से ज़हरीली शराब का पूरा नेटवर्क चलता था वह बस्ती में नशे को जड़ से उखाड़ फेंकने की कसमों के बड़े-बड़े बैनर लगा रही है। दूसरी ओर अवैध ठेकों के दोबारा शुरू होने की एक-दो ख़बरें आने लगी हैं। इलाक़े का विधायक असलम शेख़ फ़ि‍लहाल हज यात्रा पर गया है और हादसा होने के एक महीने बाद तक भी वह या उसके नुमाइन्दे लोगों की सुध लेने नहीं पहुँचे हैं। इस घटना में विधायक किस हद तक संलिप्त रहा होगा, इसका अन्दाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जो कुछेक लोग गिरफ्तार हुए हैं, उनमें से एक सलीम शेख़, विधायक का ख़ास आदमी था और उसके चुनावी प्रचार के लिए मुख्य भूमिका निभाता था।

इस घटना से सरकारी अस्पतालों की व्यवस्था फिर से नंगी हो गयी है। शताब्दी अस्पताल जोकि बस्ती का सबसे निकटवर्ती सरकारी अस्पताल है, उसमें इस तरह की आपातस्थिति के लिए कोई सुविधा नहीं थी। लोगों को इलाज के लिए 10-10 घण्टे इन्तज़ार करना पड़ा। यदि सही समय पर इलाज मिल पाया होता तो शायद काफ़ी जानें बच जातीं। इन सभी मौतों के लिए सरकार, पुलिस प्रशासन व अस्पतालों की बदतर हालत सीधे तौर पर ज़िम्मेदार हैं।

अंजली ने इस हादसे में अपने पति माया हरिजन को खोया है। उनके पति गटर सफ़ाई आदि का काम करते थे।

अंजली ने बताया – “वो जब से गटर सफ़ाई का काम करने लगे तब से शराब पीना शुरू किया था। हादसे वाले दिन उन्होंने भी पी थी लेकिन वो पूरी तरह स्वस्थ थे व बाहर लक्ष्मीनगर चौराहे पर बैठे थे। सुबह 10 बजे वहाँ आये पुलिसकर्मियों ने जब यह पूछा कि उसने भी पी है या नहीं, तो उसने हाँ कर दी। इसके बाद उसको व अन्य 7 लोगों को पुलिस शताब्दी अस्पताल लेकर गयी जहाँ उसको दो इंजेक्शन दिये गये। शाम चार बजे तक उसकी हालत एकदम ठीक थी। इसके बाद शताब्दी अस्पताल के डॉक्टरों ने कहा कि अब इसको नायर अस्पताल लेकर जाओ क्योंकि वहाँ अच्छी मशीनें हैं जिससे इसका इलाज हो जायेगा। नायर अस्पताल तक जाते-जाते रात के 9.30 बज चुके थे। वहाँ ले जाने के बाद उन्होंने सिर्फ़ ग्लूकोज की बोतल चढ़ायी जिसके बाद मेरे पति का साँस फूलने लगा, उल्टी होने लगी। उसके बाद वो उसे आईसीयू लेकर गये जहाँ जाते ही उसकी मृत्यु हो गयी। अगर मेरे पति व उस जैसे कितने ही लोगों को अच्छा इलाज मुहैया करवाया जाता तो उनकी जान बच जाती, लेकिन शताब्दी व नायर अस्पताल के डॉक्टरों ने लोगों को बचाने में बिल्कुल भी ताक़त नहीं लगायी।”

मालवणी के पीड़ित परिवारों ने किया विरोध प्रदर्शन

malwani protestप्रशासन और राजनेताओं की चुप्पी और बेशर्मी से नाराज़ पीड़ित परिवारों ने बिगुल मज़दूर दस्ता और यूनिवर्सिटी कम्युनिटी फ़ॉर डेमोक्रेसी एण्ड इक्वॉलिटी के सहयोग से ‘मालवणी दारूकाण्ड संघर्ष समिति’ गठित की। बिगुल मज़दूर दस्ता के नारायण खराड़े और पीड़ित परिवारों के 11 सदस्यों को लेकर 12 लोगों की इस समिति का गठन हुआ। समिति ने पीड़ितों की मुख्य माँगों के तौर पर हर पीड़ित परिवार को 10 लाख रुपये का मुआवज़ा, अपंग हुए लोगों को 5-5 लाख रुपये का मुआवज़ा, हर पीड़ित परिवार के एक सदस्य को पक्की सरकारी नौकरी, पीड़ित परिवारों को आवास की सुविधा उपलब्ध कराने की माँगें सामने रखीं। समिति के आह्वान पर 30 जून को आज़ाद मैदान पर विशाल प्रदर्शन आयोजित किया गया। प्रदर्शन में लोगों के सामने अपनी बात रखते हुए बिगुल मज़दूर दस्ता के सत्यानारायण ने कहा कि इतनी बड़ी दुर्घटना के बाद भी मुख्यमन्त्री का लोगों से मिलने न आना दिखाता है कि प्रशासन को जन की कितनी चिन्ता है। उन्होंने कहा कि हमें अपनी माँगों को मनवाने के लिए लम्बा संघर्ष चलाना होगा। सत्यानारायण ने कहा कि दो-चार छोटे-मोटे डीलरों और कुछ पुलिसकर्मियों को दोषी बताकर सरकार इस रैकेट में संलिप्त बड़े अधिकारियों और मन्त्रियों को बचाने का काम कर रही है। उन्होंने कहा कि इस पूरी घटना की उच्चस्तरीय जाँच होनी चाहिए और सभी दोषी हत्यारों पर कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए। बिगुल मज़दूर दस्ता के नारायण ने अपनी बात में कहा कि यह पूरी दुर्घटना पुलिस-प्रशासन और सरकार के साथ ही पूरी व्यवस्था को भी कठघरे में खड़ा करती है। उन्होंने कहा कि ग़रीब मज़दूर की ज़िन्दगी का इस बर्बर व्यवस्था में कोई स्थान नहीं है और यह व्यवस्था मज़दूरों को केवल अमीरों को मुनाफ़ा देने वाली मशीन ही समझती है। उन्होंने कहा कि ग़रीबों के लिए अस्पतालों की लचर स्थिति दिखाती है कि सरकार को हमारे स्वास्थ्य और ज़िन्दगी की कितनी चिन्ता है। नारायण ने इस घटना के सन्दर्भ में पुलिस-प्रशासन व सरकार की घृणित भूमिका पर विस्तार से बात रखी। मुम्बई का “प्रगतिशील” दायरा जिसमें तमाम संशोधनवादी और ख़ुद को दलितों का रहनुमा बताने वाले संगठन आते हैं, इस प्रदर्शन से भी ग़ायब ही रहा। अन्त में पीड़ितों ने मुख्यमन्त्री देवेन्द्र फड़नवीस और आबकारी मन्त्री एकनाथ खड़से को अपना ज्ञापन सौंपा और तय किया कि संघर्ष को आगे बढ़ाते हुए इलाक़े के विधायक और सांसद को घेरा जायेगा।

अमित जाधव ने कहा कि उनके पिता पूरी तरह हट्टे-कट्टे थे पर ज़हरीली शराब ने उनकी ज़िन्दगी छीन ली। अस्पताल में उनको सिर्फ़ बेड पर लेटाकर रखा गया व कोई उपचार नहीं दिया गया। मृत्यु के बाद रातभर परिवार के लोगों को शव के लिए इन्तज़ार करवाया गया।

Deepika indulkarदीपिका इन्दुलकर के पति सिद्धेश की ज़िन्दगी भी ज़हरीली शराब ने छीन ली। दीपिका ने कहा – “अगर पुलिस पहले ही अपने कर्तव्य का पालन करती तो इतने सारे लोगों को अपनी ज़िन्दगी नहीं गँवानी पड़ती। पुलिस सिर्फ़ हफ्ता वसूलने में मशगूल रहती है। बेघर लोगों को एक झोपड़ी बनानी हो तो भी ये लोग हफ्ता वसूलने पहुँच जाते हैं। पैसे नहीं देने पर झोपड़ी तोड़ देते हैं। लेकिन इस तरह के अवैध धन्धों को चलने देते हैं। इस पूरे काण्ड में डॉक्टरों ने भी लोगों को बचाने के लिए पूरी तत्परता नहीं दिखायी।”

श्रीमती भालेकर ने कहा – “पति के अस्पताल में दाखि़ल होने पर मानसिक तनाव के कारण मैं भी वहाँ बेहोशहोकर गिर पड़ी जिसके बाद मुझे ऑक्सीजन मास्क लगाकर लेटा दिया गया। जिन लोगों को ज़हरीली शराब का असर था, उन्हें भी सिर्फ़ वैसा ही मास्क लगाकर लेटा रखा था। इस तरह सिर्फ़ ऑक्सीजन मास्क लगाकर इलाज का नाटक शताब्दी अस्पताल के डॉक्टरों ने किया।”

मज़दूर बिगुल, जुलाई 2015


 

‘मज़दूर बिगुल’ की सदस्‍यता लें!

 

वार्षिक सदस्यता - 125 रुपये

पाँच वर्ष की सदस्यता - 625 रुपये

आजीवन सदस्यता - 3000 रुपये

   
ऑनलाइन भुगतान के अतिरिक्‍त आप सदस्‍यता राशि मनीआर्डर से भी भेज सकते हैं या सीधे बैंक खाते में जमा करा सकते हैं। मनीऑर्डर के लिए पताः मज़दूर बिगुल, द्वारा जनचेतना, डी-68, निरालानगर, लखनऊ-226020 बैंक खाते का विवरणः Mazdoor Bigul खाता संख्याः 0762002109003787, IFSC: PUNB0185400 पंजाब नेशनल बैंक, निशातगंज शाखा, लखनऊ

आर्थिक सहयोग भी करें!

 
प्रिय पाठको, आपको बताने की ज़रूरत नहीं है कि ‘मज़दूर बिगुल’ लगातार आर्थिक समस्या के बीच ही निकालना होता है और इसे जारी रखने के लिए हमें आपके सहयोग की ज़रूरत है। अगर आपको इस अख़बार का प्रकाशन ज़रूरी लगता है तो हम आपसे अपील करेंगे कि आप नीचे दिये गए बटन पर क्लिक करके सदस्‍यता के अतिरिक्‍त आर्थिक सहयोग भी करें।
   
 

Lenin 1बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।

मज़दूरों के महान नेता लेनिन

Related Images:

Comments

comments